रिवर बैंक फिल्ट्रेशन तकनीक से मिलेगा शुद्ध पेयजल, उत्तराखंड में धरातल पर उतारी जाएगी योजना; जानें- इसके बारे में

नदियों और गाड-गदेरों के प्रदेश उत्तराखंड में सीधे नदी से पेयजल उपलब्ध कराने में तमाम चुनौतियां सामने आती हैं और पानी की शुद्धता पर भी काफी काम करना पड़ता है। वहीं भूजल पर भी निर्भरता को एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 01:10 PM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 01:10 PM (IST)
रिवर बैंक फिल्ट्रेशन तकनीक से मिलेगा शुद्ध पेयजल, उत्तराखंड में धरातल पर उतारी जाएगी योजना; जानें- इसके बारे में
रिवर बैंक फिल्ट्रेशन तकनीक से मिलेगा शुद्ध पेयजल।

जागरण संवाददाता, देहरादून। नदियों और गाड-गदेरों के प्रदेश उत्तराखंड में सीधे नदी से पेयजल उपलब्ध कराने में तमाम चुनौतियां सामने आती हैं और पानी की शुद्धता पर भी काफी काम करना पड़ता है। वहीं, भूजल पर भी निर्भरता को एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता। इन सबके बीच एक आसान तकनीक है, रिवर बैंक फिल्ट्रेशन। जिसके माध्यम से नदी के किनारों की जमीन से शुद्ध पेयजल निकाला जा सकता है। इस योजना को धरातल पर उतारने के लिए उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकास्ट) ने ब्रेन स्ट्रोमिंग सत्र का आयोजन किया।

राजपुर रोड स्थित एक होटल में आनलाइन व आफलाइन माध्यम से आयोजित कार्यक्रम में यूकास्ट के महानिदेशक डा. राजेंद्र डोभाल ने कहा कि नदी के किनारों पर जमीन के भीतर (भूजल की सीमा तक नहीं) पानी उपलब्ध होता है। यह पानी प्राकृतिक रूप से शुद्ध रहता है। रिवर बैंक फिल्ट्रेशन तकनीक से इस पानी को निकाला जा सकता है। जर्मनी में इसी तकनीक से पेयजल की 17 फीसद आपूर्ति की जाती है। उत्तराखंड में नदी किनारों के करीब 90 हजार किलोमीटर भाग पर रिवर बैंक फिल्ट्रेशन तकनीक से काम किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि तकनीक को धरातल पर उतारने व पेयजल दक्षता की दिशा में काम करने के लिए जल्द सेंटर आफ एक्सीलेंस फार इंटीग्रेटेड वाटर टेक्नोलॉजी की स्थापना की जाए।

ब्रेन स्ट्रोमिंग सत्र में राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (रुड़की) के पूर्व वरिष्ठ विज्ञानी डा. एनसी घोष ने देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रिवर बैंक फिल्ट्रेशन की जरूरत व लाभ पर व्याख्यान दिया। वहीं, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डा. गोपाल कृष्णन ने बताया कि रिवर बैंक फिल्ट्रेशन तकनीक को किस तरह लागू किया जा सकता है। इस अवसर पर उत्तराखंड जल संस्थान के महाप्रबंधक आरके रोहेला, जल संस्थान के विशेष कार्याधिकारी सुबोध कुमार, सचिव अप्रेजल एलके अदलखा, अधीक्षण अभियंता मनीष सेमवाल, यूकास्ट के संयुक्त निदेशक डॉ. डीपी उनियाल, यूकास्ट के समन्वयक डा. प्रशांत सिंह आदि ने भी विचार रखे।

पांच-छह मीटर पर मिल जाता है पानी

यूकास्ट महानिदेशक डा. राजेंद्र डोभाल के मुताबिक रिवर बैंक फिल्ट्रेशन तकनीक के माध्यम से नदी किनारे की जमीन पर अधिकतम पांच-छह मीटर पर पानी मिल जाता है। लिहाजा, भूजल दोहन की स्थिति पैदा नहीं होती। नदी किनारे की जगह होने के चलते यह हिस्सा रीचार्ज होता रहता है।

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