अपनों को खोने के बाद स्वजनों को उनके अंतिम निशां 'फूल' तक मयस्सर नहीं

स्वजनों को उनके अंतिम निशां फूल भी मयस्सर नहीं हो रहे। लोग अंतिम संस्कार के बाद अगले दिन जब श्मशान घाट पहुंचते हैं तब तक वहां इतनी चिता जल चुकी होती हैं कि अपनों की राख तलाशना मुश्किल हो जाता है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 04 May 2021 09:17 AM (IST) Updated:Tue, 04 May 2021 09:17 AM (IST)
अपनों को खोने के बाद स्वजनों को उनके अंतिम निशां 'फूल' तक मयस्सर नहीं
सोमवार को रायपुर कोविड श्मशान घाट पर जमीन पर जलती चितांए।

आयुष शर्मा, देहरादून। कोरोना की दूसरी लहर में अपनों को खोने के बाद स्वजनों को उनके अंतिम निशां 'फूल' (दाह संस्कार के बाद राख के ढेर में मौजूद अस्थियां आदि) भी आसानी से मयस्सर नहीं हो रहे। लोग अंतिम संस्कार के बाद अगले दिन जब श्मशान घाट पहुंचते हैं, तब तक वहां इतनी चिता जल चुकी होती हैं कि अपनों की राख तलाशना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में कुछ लोग अंदाजे से 'फूल' चुनने को मजबूर हो रहे हैं तो कुछ मायूस होकर लौट जा रहे हैं।

सनातन धर्म में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी अस्थियों को चिता से समेटकर गंगा में प्रवाहित करने की परंपरा है। मान्यता है कि इससे अमुक व्यक्ति की आत्मा को संसार से पूरी तरह मुक्ति मिल जाती है अन्यथा वह संसार में ही भटकती रहती है। लेकिन, कोरोना की चपेट में आकर जान गंवाने वालों की आत्मा की मुक्ति के लिए उनके स्वजनों को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। कोरोना की दूसरी लहर में देश में मौतों का आंकड़ा इतनी तेजी से बढ़ा है कि कई श्मशान घाटों में अंतिम संस्कार के लिए जगह कम पड़ जा रही है।

यही हाल दून का भी है। यहां रायपुर स्थित कोविड श्मशान घाट में दाह संस्कार के लिए पहुंचने वाले शवों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हाल यह है कि अब लोग जमीन पर भी अंतिम संस्कार कर रहे हैं। दिन ढलने के बाद घाट में हर तरफ चिताओं की राख के ढेर ही नजर आते हैं। अगले दिन जब लोग फूल चुनने के लिए पहुंचते हैं तो चिताओं की राख के ढेर देखकर भ्रम में पड़ जाते हैं। 

चिताओं के बीच एक हाथ का फासला भी नहीं रख पा रहे

सोमवार को दोपहर करीब साढ़े 12 बजे श्मशान घाट में 14 चिता एक साथ जल रही थीं। इसके अलावा 13 एंबुलेंस शव लिए कतार में खड़ी थीं। दाह संस्कार के लिए लकड़ी देने वाले रोहित ने बताया कि पिछले कुछ दिन से घाट में रोजाना 30 से ज्यादा शव जलाए जा रहे हैं। दाह संस्कार के लिए बने शेड में जगह नहीं मिलने की स्थिति में जमीन पर भी चिता लगाई जा रही है। हाल यह है कि दो चिताओं के बीच एक हाथ का फासला रखना तक संभव नहीं हो पा रहा। 

घाट के बाहर जला दिए शव

कोविड श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए इंतजार स्वजनों पर भारी गुजर रहा है। शनिवार और रविवार को इससे आजिज आकर कुछ व्यक्तियों ने अपने स्वजनों के शव को श्मशान घाट परिसर के बाहर मैदान में ही जला दिया। बावजूद इसके जिम्मेदार यहां व्यवस्था दुरुस्त करने की कोशिश तक नहीं कर रहे।

कफन तक नहीं मिला

सोमवार को श्मशान घाट पहुंचे कुछ लोग अपने को खोने के गम में कफन और अंतिम संस्कार का बाकी सामान लाना भूल गए। ये लोग दोपहर साढ़े 12 बजे यहां पहुंचे थे। इससे पहले 12 बजे तक शहर में लागू कोविड कर्फ्यू के चलते आसपास की सभी दुकानें भी बंद हो चुकी थीं। ऐसे में घाट में मौजूद अन्य व्यक्तियों ने अपने घर से कपड़ा लाकर देने की पेशकश की। उत्तर प्रदेश के इस परिवार ने बताया कि रविवार को दिनभर देहरादून के निजी और सरकारी अस्पताल के चक्कर काटे, लेकिन कहीं बेड नहीं मिला। सुबह उनके स्वजन ने दम तोड़ दिया।

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