ऋषिकेश में 56 वर्षों में दूसरी बार हुआ ऐसा, जब रावण के पुतले को गंगा में करना पड़ा प्रभावित

वैश्विक महामारी कोरोनावायरस संक्रमण का असर तीर्थ नगरी में पिछले 56 वर्षों से मनाए जा रहे दशहरा पर्व पर भी साफ नजर आ रहा है। इस अवधि में दूसरी बार ऐसा हो रहा है जब रावण का पुतला दहन ना करके गंगा में प्रभावित करना पड़ा है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 12:44 PM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 12:44 PM (IST)
ऋषिकेश में 56 वर्षों में दूसरी बार हुआ ऐसा, जब रावण के पुतले को गंगा में करना पड़ा प्रभावित
ऋषिकेश में दूसरी बार ऐसा हुआ जब रावण का पुतला दहन ना करके गंगा में प्रभावित करना पड़ा है।

ऋषिकेश, जेएनएन। वैश्विक महामारी कोरोनावायरस संक्रमण का असर तीर्थ नगरी में पिछले 56 वर्षों से मनाए जा रहे दशहरा पर्व पर भी साफ नजर आ रहा है। इस अवधि में दूसरी बार ऐसा हो रहा है जब रावण का पुतला दहन ना करके गंगा में प्रभावित करना पड़ा है। इससे पूर्व उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर में रामपुर तिराहा कांड के बाद हालात बिगड़ गए थे। प्रशासन ने सुभाष क्लब दशहरा कमेटी को रावण का पुतला बनाने के बाद भी आयोजन की अनुमति नहीं दी थी। जिस पर पुतले को गंगा में प्रभावित करना पड़ा था। इस वर्ष दशहरा में यही सब दोहराया जा रहा है। इस बार कारण बना है कोरोना काल। प्रशासन ने 10 फीट का पुतला बनाने और 50 व्यक्तियों के कार्यक्रम में शामिल होने की अनुमति प्रदान की है। दशहरा कमेटी के द्वारा 10 फीट का पुतला बनाया गया है। जिसकी विधिवत पूजा अर्चना के पश्चात से गंगा में प्रभावित किया गया।

आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय परंपराओं के निर्वहन के रूप में तीर्थ नगरी ऋषिकेश की अपनी अलग पहचान रही है। यहां रामलीला कमेटी आईडीपीएल के द्वारा सर्वप्रथम 1964 में रावण पुतला दहन का कार्यक्रम शुरू किया गया था। 56 वर्ष पूर्व असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक इस पर्व पर रंग भरने का काम मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश निवासी रियाजुद्दीन ने रावण का पुतला बनाकर किया था। तब से अब तक उन्हीं का परिवार इस परिवार परंपरा को निभाता आ रहा है। अब इस परंपरा को उनके पुत्र शफीक अहमद निभा रहे हैं।

सुभाष क्लब दशहरा कमेटी ऋषिकेश के तत्वावधान में रविवार को असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक दशहरा पर्व सादगी और परंपरा के साथ मनाया गया। त्रिवेणी घाट आरती स्थल पर रावण का 10 फुट ऊंचा पुतला बनाया गया था। मुजफ्फरनगर निवासी शफीक अहमद ने ही पुतले का निर्माण किया। मुजफ्फरनगर से पुतले को यहां लाया गया। उनके साथ कुंभकरण और मेघनाथ के भी ढाई ढाई फीट ऊंचे पुतले बनाए गए।। रावण के पुतले का विधिवत पूजन कर मां गंगा की जलधार में प्रवावित किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक राहुल शर्मा, दशहरा कमेटी के अध्यक्ष ललित सक्सेना महंत विनय सारस्वत, राकेश शर्मा, मधु जोशी, अमित वत्स, दीपक जाटव, विश्वास जोशी, मनोज कुमार गुप्ता, हीरालाल शर्मा, विजय सिंघल, पंकज जायसवाल, दिनेश उपाध्याय, दीपक भटनागर, योगेश शर्मा, संजय शर्मा केशव पोखरियाल उपस्थित रहे।

1970 में बना था सबसे ऊंचा पुतला

आईडीपीएल कॉलोनी से 1964 में ऋषिकेश क्षेत्र में रावण पुतला दहन की शुरुआत हुई थी। रामलीला कमेटी ने वर्ष 1970 में सबसे ऊंचा 75 फुट का रावण का पुतला बनाया था। इस दौरान कुंभकरण का पुतला 60 फुट और मेघनाद का पुतला 55 फुट का बनाया गया था। मुजफ्फरनगर निवासी की रियाजुद्दीन ने पुतले यहीं पर बनाए थे। 2006 में उनके इंतकाल के बाद उनके पुत्र शफीक अहमद इस काम को कर रहे हैं। शफीक अहमद ने बताया कि वह त्रिवेणी घाट में अब तक रावण का पुतला 60 फीट, कुंभकरण और मेघनाथ का पुतला 55 फुट का बनाते आए हैं। ऋषिकेश त्रिवेणी घाट आईडीपीएल और लक्ष्मण झूला में अब तक वह उनका परिवार ही पुतले बनाता आया है।

27 वर्ष से त्रिवेणी घाट में हो रहा है आयोजन

त्रिवेणी घाट में दशहरा मेला का आयोजन सुभाष कलब दशरथ बेटी ऋषि किसके द्वारा किया जाता है। कमेटी के अध्यक्ष ललित सक्सेना ने बताया कि इस वर्ष हमारा यह 27 वां कार्यक्रम है। चार दिन पूर्व तक कार्यक्रम को लेकर असमंजस बना हुआ था। किंतु शासन के द्वारा गाइडलाइन जारी किए जाने के बाद दशहरा कमेटी ने इस परंपरा को जारी रखने का निर्णय लिया। चार दिन के अंतराल में मुजफ्फरनगर से शफीक अहमद के द्वारा 10 फुट का पुतला बनवाया गया है।

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल प्रस्तुत करने वाले मुजफ्फरनगर निवासी रियाजुद्दीन का परिवार इस वर्ष कार्यक्रम का आयोजन ना होने से बेहद दुखी है। रावण पुतला दहन के दौरान राम जी की सेना के लिए आतिशबाजी लाइट व अन्य तैयारी करने वाले रहीम के बंदे शफीक अहमद बेहद व्यथित है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष पुतला ना बनता तो 56 वर्षों से चली आ रही हमारे परिवार की परंपरा भी प्रभावित होती। जिसे लेकर हम दुखी भी थे। चार दिन पूर्व जब पुतला बनाने की अनुमति मिली तो मन को इस बात का संतोष हुआ कि भले ही पुतला छोटा बन रहा है मगर परंपरा तो दशहरा पर्व पर पुतला बनाने की जीवित है। उन्होंने कहा कि अगले वर्ष सब अच्छा होगा और हम दोगुनी तैयारी के साथ ऋषिकेश वासियों के साथ दशहरा मनाएंगे।

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