मानसून के साथ चुनौतियों की दस्तक, बेहतर होगा कि तंत्र अभी से सतर्क हो जाए

इस दफा मानसून ने उत्तराखंड में समय से पहले दस्तक दे दी यानी कि वर्षाकाल थोड़ा लंबा खिंचेगा। किसानी के लिहाज से यह सुखद है। मगर यह बात भी किसी से छिपी नहीं कि बरसात पहाड़ के लिए राहत से ज्यादा मुसीबत लेकर आती है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 08:45 AM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 08:45 AM (IST)
मानसून के साथ चुनौतियों की दस्तक, बेहतर होगा कि तंत्र अभी से सतर्क हो जाए
यह बात भी किसी से छिपी नहीं कि बरसात पहाड़ के लिए राहत से ज्यादा मुसीबत लेकर आती है।

विजय मिश्रा, देहरादून। इस दफा मानसून ने उत्तराखंड में समय से पहले दस्तक दे दी यानी कि वर्षाकाल थोड़ा लंबा खिंचेगा। किसानी के लिहाज से यह सुखद है। मगर, यह बात भी किसी से छिपी नहीं कि बरसात पहाड़ के लिए राहत से ज्यादा मुसीबत लेकर आती है। चंद रोज पहले ही राजधानी के मालदेवता क्षेत्र में बारिश के कारण मलबा घरों और खेतों में घुस गया था। इसके बाद बीती फरवरी में ही जलप्रलय का सामना कर चुके चमोली के रैंणी गांव में रविवार रात भारी बारिश से गौरा देवी म्यूजियम मलबे में दब गया। जोशीमठ मलारी हाईवे का 40 मीटर हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। विभिन्न राजमार्ग भी जगह-जगह अवरुद्ध हो रहे हैं। ये हालात आने वाले दिनों में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच पहाड़ तक आक्सीजन और वैक्सीन की आपूर्ति में भी बाधक बन सकते हैं। बेहतर होगा कि तंत्र इस बारे में अभी से सतर्क हो जाए।

कार्बेट में एक बंगला बना न्यारा

एक बंगला बने न्यारा....। ख्याति प्राप्त गायक कुंदन लाल सहगल का यह गीत आपने सुना हो या न हो, इसकी पहली पंक्ति तो जरूर सुनी या पढ़ी होगी। वन्य जीवों के पसंदीदा वास स्थल कार्बेट नेशनल पार्क में यह तराना काफी समय से गूंज रहा है। असल में पार्क के एक साहब भी इस गीत के नायक जैसा ही ख्वाब पाले थे। वो साहब ठहरे तो उनके लिए संभव और असंभव में क्या विभेद। सो, मातहतों ने भी पार्क के जिस ढिकाला जोन में पत्ता तक गिरने पर छेड़ा नहीं जाता, वहां उनके लिए बंगला खड़ा कर दिया। नाम दिया गया काटेज के रेनोवेशन का। साहब खुश थे। गृह प्रवेश की पूरी तैयारी थी, मगर इससे पहले ही किसी भेदिये ने पूरी कहानी शासन के कान में फूंक दी। अब जांच शुरू हो गई है। फिलहाल, साहब इस जिद्दोजहद में जुटे हैं कि जांच की आंच से कैसे बचा जाए।

अब कार्रवाई से होत का, जब....

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में निजी अस्पतालों में बहार रही है। सरकारी अस्पताल में बेड नहीं मिलने पर हजारों मरीजों को निजी इलाज की तरफ रुख करना पड़ा। इसका निजी अस्पतालों ने खूब फायदा उठाया। इलाज के लिए मनमाना शुल्क वसूला। दूसरी तरफ आम आदमी के लिए हालात मरता क्या न करता वाले थे। अपनी और अपनों की जान बचानी थी, सो हर तरह की अमानवीयता सही। अब राजधानी दून में प्रशासन ने ऐसे अस्पतालों पर शिकंजा कसना शुरू किया है। मरीजों को ज्यादा वसूली गई धनराशि वापस कराई जा रही है। अब तक 18 लाख रुपये वापस कराए जा चुके हैं। खैर, जनता का सवाल यह है कि अब कार्रवाई का क्या फायदा, जब चिडिय़ा चुग गई खेत। यही सख्ती पहले दिखाई होती तो अस्पताल इस कदर असंवेदशील नहीं होते। मुश्किल वक्त में दर-दर हाथ न फैलाने पड़ते। खाली जेब के कारण इलाज से महरूम न होना पड़ता।

...तो ऐसे लगेगा हादसों पर अंकुश

तीन चौथाई से ज्यादा पर्वतीय भूभाग वाला उत्तराखंड प्राकृतिक आपदा के साथ सड़क दुर्घटनाओं के लिहाज से भी बेहद संवेदनशील है। यहां हर वर्ष औसतन 1800 से 2000 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, मगर बीते अप्रैल में ही 516 दुर्घटनाएं हो गईं। दूसरी तरफ, सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए बनाई गई सड़क सुरक्षा समिति मानो तंद्रावस्था में है। आठ माह से इस समिति की बैठक तक नहीं हुई है। यह हाल तब है, जब समिति के अध्यक्ष खुद परिवहन मंत्री हैं। मशीनरी समिति से भी एक कदम आगे है। गत वर्ष अक्टूबर में परिवहन मंत्री ने सड़क सुरक्षा के लिहाज से कई निर्देश दिए थे। 10 माह बीत चुके हैं, मगर अधिकांश निर्देश फाइलों में ही बंद हैं। अब परिवहन आयुक्त ने सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ बढऩे पर चिंता जताई है। खैर, वर्तमान में चिंता जताने से ज्यादा जरूरत है प्रभावी योजना बनाने और उसे धरातल पर उतारने की।

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