उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन हेतु जनोपयोगी पहल, ज्यादा से ज्यादा जनोपयोगी शोध जरूरी

आपदा से निपटने के मद्देनजर आधुनिक तकनीकी का अधिक से अधिक उपयोग करने के साथ ही जनोपयोगी शोध कार्य निरंतर जारी रखने की जरूरत है। ज्यादा से ज्यादा जनोपयोगी शोध होंगे तो इसका फायदा उत्तराखंड के साथ ही देश को भी मिलेगा।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Fri, 06 Aug 2021 02:03 PM (IST) Updated:Fri, 06 Aug 2021 02:03 PM (IST)
उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन हेतु जनोपयोगी पहल, ज्यादा से ज्यादा जनोपयोगी शोध जरूरी
आपदा प्रबंधन हेतु जनोपयोगी पहल जरूरी।(फोटो: दैनिक जागरण)

देहरादून, राज्य ब्यूरो। दैवीय आपदा पर किसी का वश नहीं है, लेकिन बेहतर प्रबंधन से इसके असर को न्यून किया जा सकता है। इस लिहाज से उत्तराखंड ने एक पहल की है। जनसामान्य को भूकंप की चेतावनी देने के उद्देश्य से सरकार ने आइआइटी रुड़की के वैज्ञानिकों के माध्यम से उत्तराखंड भूकंप अलर्ट एप तैयार कराया है। बुधवार को इसे लांच किया गया। यह एप राज्य में कहीं भी भूकंप आने पर तुरंत अलर्ट कर देगा, ताकि सतर्कता बरतते हुए जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके। उत्तराखंड भूकंप के अति संवेदनशील जोन पांच एवं संवेदनशील जोन चार के अंतर्गत है। ऐसे में जरूरी है कि यहां विशेष एहतियात बरती जाए। अति संवेदनशील जोन पांच की बात करें तो इसमें रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली व उत्तरकाशी जिले शामिल हैं। ऊधमसिंह नगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी व अल्मोड़ा जोन चार में हैं, जबकि देहरादून व टिहरी जिले ऐसे हैं, जो दोनों जोन के अंतर्गत आते हैं। हालांकि भूकंप का पूर्वानुमान बताने वाली कोई तकनीक अभी विकसित नहीं हुई है, लेकिन भूकंप आने पर इसके असर को न्यून करने की दिशा में तो कदम बढ़ाए जा सकते हैं।

इसे देखते हुए आइआइटी रुड़की के विज्ञानी लंबे समय से कोशिशों में जुटे थे और अब उत्तराखंड भूकंप अलर्ट एप के रूप में इसकी परिणति सामने आई है। आइआइटी के विज्ञानियों ने भूकंप की दृष्टि से उत्तराखंड के जिलों में कई उपकरण लगाएं हैं, जो इस एप से कनेक्ट हैं। निर्धारित परिमाण से अधिक का भूकंप आने पर यह एप तुरंत अलर्ट जारी कर देगा। यद्यपि इसका समय कम होगा, मगर संभावित जान-माल की क्षति को न्यून करने के लिए लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होगा। निश्चित रूप से इसका फायदा राज्यवासियों को मिलेगा। इसी तरह का अर्ली वार्निग सिस्टम अन्य क्षेत्रों में भी विकसित करने की जरूरत है। अतिवृष्टि, बादल फटने की निरंतर हो रही घटनाओं से भी उत्तराखंड त्रस्त है। हालांकि इसके लिए डाप्लर रडार महत्वपूर्ण है। इनमें से एक मुक्तेश्वर में लग चुका है, जबकि सुरकंडा में इसकी स्थापना का कार्य जारी है। डाप्लर रडार से मौसम का सटीक पूर्वानुमान मिलता है। लिहाजा इससे मिलने वाली जानकारियां भी आमजन तक पहुंचें, इसके लिए भी भूकंप अलर्ट एप जैसी पहल की जरूरत है। आपदा से निबटने के मद्देनजर आधुनिक तकनीकी का अधिक से अधिक उपयोग करने के साथ ही जनोपयोगी शोध कार्य निरंतर जारी रखने होंगे। इसके लिए सरकार को आइआइटी समेत अन्य संस्थानों से बेहतर समन्वय स्थापित कर कदम उठाने होंगे। ज्यादा से ज्यादा जनोपयोगी शोध होंगे तो इसका फायदा उत्तराखंड के साथ ही देश को भी मिलेगा।

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