सीएम त्रिवेंद्र को आया गुस्सा, कहा- अफसर गलतफहमी न पालें; जनप्रतिनिधि उनसे ऊपर हैं और रहेंगे

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मीडिया के सामने एलान कर दिया कि अफसर कतई गलतफहमी न पालें। जनप्रतिनिधि उनसे ऊपर हैं और रहेंगे।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Mon, 06 Jul 2020 09:15 AM (IST) Updated:Mon, 06 Jul 2020 09:15 AM (IST)
सीएम त्रिवेंद्र को आया गुस्सा, कहा- अफसर गलतफहमी न पालें; जनप्रतिनिधि उनसे ऊपर हैं और रहेंगे
सीएम त्रिवेंद्र को आया गुस्सा, कहा- अफसर गलतफहमी न पालें; जनप्रतिनिधि उनसे ऊपर हैं और रहेंगे

देहरादून, विकास धूलिया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कूल माइंडेड माने जाते हैं। जल्दी रिएक्ट नहीं करते। अब पानी ही सिर के ऊपर से गुजर जाए तो फिर कोई कैसे सब्र रखे। ऐसा ही कुछ हुआ। दरअसल, उत्तराखंड में ब्यूरोक्रेसी की मनमानी कुछ ज्यादा ही है। आमआदमी की बिसात क्या, मंत्री तक इनके रवैये से नाखुशी जाहिर करते रहे हैं। पिछले साढ़े तीन महीने से कोरोना के चक्कर में सब अस्त-व्यस्त है। सब कुछ अफसरों के ही हाथ, तो गड़बड़ी होनी ही थी। नियम कायदों के अनुपालन के फेर में न मंत्रीजी का चेहरा याद रहा और न विधायकजी की सूरत, बस हो गई हिमाकत। अब सिस्टम पटरी पर लौटने लगा तो शिकायत मुखियाजी तक पहुंची, आ गए फ्रंटफुट पर। मीडिया के सामने एलान कर दिया। अफसर कतई गलतफहमी न पालें, जनप्रतिनिधि उनसे ऊपर हैं और रहेंगे। आप यूं समझें कि केवल औकात शब्द के इस्तेमाल से परहेज किया, बाकी असल मतलब वही था।

एक राज्य, दो राजधानी, तीन विधानभवन

उत्तराखंड, 53483 वर्ग किलोमीटर में फैला छोटा सा राज्य। माली हालत भी बेहतर नहीं, फिर भी अब तीसरे विधानभवन के लिए सरकार ने कवायद शुरू कर दी है। चौंकिए नहीं, बात सोलह आने सच है। दरअसल, नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड बना तो राजधानी का मसला हल नहीं हो पाया। नतीजतन, देहरादून को अस्थायी राजधानी बनाया गया। विधानभवन, सचिवालय समेत अन्य जरूरी ढांचा यहां अस्तित्व में आ चुका है। इस बीच राज्य आंदोलन की जनभावनाओं का केंद्र रहे गैरसैंण को भी राजधानी के हिसाब से विकसित करने की कसरत हुई। अब जबकि, गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया जा चुका है तो देहरादून का राजधानी बनना भी तय माना जा रहा है। इसी कड़ी में अब सरकार ने पूर्व में प्रस्तावित रायपुर क्षेत्र में विधानभवन, सचिवालय भवन की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही किजब राज्य की माली हालत खराब है तो यह पूरी कवायद क्यों।

बैलगाड़ी पर हरदा, कांग्रेस हुई बेपर्दा

हरदा, यानी हरीश रावत। पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव। तीन महीने लॉकडाउन में दिल्ली में फंसे रहे, कुछ ही दिन पहले लौटे। 14 दिन का क्वारंटाइन पूरा किया और उतर पड़े मैदान में। पहले दिन शिव की आराधना करने निकले तो उनके वाहन नंदी से संचालित वाहन, यानी बैलगाड़ी पर सवार हो गए। न न भक्तिभावना नहीं, पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों को लेकर भाजपा सरकार पर निशाना जो साधना था। खूब होहल्ला, मुकदमा तक दर्ज, लेकिन जनाब अगले दिन सीएम आवास कूच कर गए। खैर, मुख्यमंत्री की अपील पर इन्होंने आंदोलन तो टाल दिया लेकिन मामला बैकफायर कर गया। अब सुना है आलाकमान इस पर नाखुश है कि पार्टी में हर कोई अलग-अलग ढपली क्यों बजा रहा है। सुर चकराता से छिड़ता है तो तान हल्द्वानी से ली जाती है। उस पर हरीश रावत राजधानी में अपने अनूठे करतबों से पूरी महफिल लूट रहे हैं।

मंत्रीजी, आपके जज्बे को बस सलाम

बार्डर पर चीन की गुस्ताखी के बाद सरकार सख्त है। चीनी सामान और मोबाइल एप्स का बहिष्कार किया जा रहा है। अपने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज भला देशभक्ति के इस जज्बे से कैसे अछूते रहते। केंद्र ने 59 चीनी एप्स पर पाबंदी लगाई तो अपने मंत्रीजी एक्टिव हुए। फरमान जारी किया कि राज्य में जितनी भी पर्यटन योजनाएं हैं, उनमें से चीनी कंपनियों को तुरंत बाहर किया जाए।

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सचिव को आदेश दे डाला कि बताएं, राज्य में पर्यटन के क्षेत्र में कितनी योजनाओं में चीन का पैसा लगा है। खूब सुर्खियां बटोरी मंत्रीजी ने, वाहवाही भी लूटी। अफसोस, यह बस दो दिन ही चला। दरअसल, महकमे ने मंत्रीजी को इत्तिला की कि सूबे में तो एक भी पर्यटन योजना में चीन की पार्टनरशिप नहीं है। अब मंत्रीजी चीनी राष्ट्रपति को रामायण भिजवाकर उन्हें इतिहास से सबक लेने की सीख देने में जुटे हैं। देखते हैं  इसका हश्र क्या होता है।

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