उत्तराखंड में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना पर अभी ठिठके हुए हैं कदम, जानिए वजह

परिवहन निगम ने सरकारी योजनाओं में लगातार हो रहे खर्च को देखते हुए मुफ्त यात्रा के स्थान पर डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) योजना शुरू करने का प्रस्ताव बनाया। कारण बताया कि इससे निगम को बार-बार इस मद के पैसे के लिए सरकार के सामने गुहार नहीं लगानी पड़ेगी।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Fri, 26 Feb 2021 12:45 PM (IST) Updated:Fri, 26 Feb 2021 12:45 PM (IST)
उत्तराखंड में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना पर अभी ठिठके हुए हैं कदम, जानिए वजह
उत्तराखंड में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना पर अभी ठिठके हुए हैं कदम।

विकास गुसाईं, देहरादून। परिवहन निगम ने सरकारी योजनाओं में लगातार हो रहे खर्च को देखते हुए मुफ्त यात्रा के स्थान पर डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) योजना शुरू करने का प्रस्ताव बनाया। कारण बताया कि इससे निगम को बार-बार इस मद के पैसे के लिए सरकार के सामने गुहार नहीं लगानी पड़ेगी। प्रस्ताव कैबिनेट में भी पहुंचा लेकिन इस पर सहमति नहीं बन पाई। तब से ही यह मामला लंबित चल रहा है। दरअसल, परिवहन निगम में इस समय विभिन्न योजनाओं के तहत मुफ्त यात्रा का प्रविधान है। इसके तहत विधायक, मान्यता प्राप्त पत्रकार, स्कूली छात्राएं, वरिष्ठ नागरिक आदि निगम की बसों में मुफ्त यात्रा करते हैं। निगम को इसका भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है, लेकिन यह कभी समय पर नहीं मिलता। इससे निगम को कई बार अपने कार्मिकों को समय पर वेतन देने में खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अफसोस निगम का यह प्रस्ताव अभी फाइलों में ही कैद है।

उत्तराखंड को आखिर कब मिलेगी अंतरराष्ट्रीय उड़ान 

उत्तराखंड का नैसर्गिक सौंदर्य देश-दुनिया के पर्यटकों को अपनी ओर बरबस ही आकर्षित करता रहा है। हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते भी हैं लेकिन इनमें से अधिकांश दिल्ली, मुंबई अथवा बेंगलुरू उतरने के बाद उत्तराखंड का रुख करते हैं। ऐसे में उत्तराखंड को सीधे अंतरराष्ट्रीय हवाई सेवाओं से जोड़ने योजना बनी। मकसद, विदेशी पर्यटक सीधे उत्तराखंड आएं और फिर यहां की हेली सेवाओं के जरिये फूलों की घाटी, हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं की खूबसूरती निहारें, पर्यटन स्थलों की सैर करें। इससे न केवल उत्तराखंड विश्व में अपनी अलग पहचान बनाएगा, बल्कि तेजी से पर्यटन डेस्टिनेशन के रूप में भी उभरेगा। योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए केंद्र से सहयोग लेने की बात कही गई। इसे हिमालयन फ्लाइट का नाम दिया गया। अफसोस कि प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के हवाई अड्डे न होने के कारण यह योजना परवान नहीं चढ़ पाई है। हालांकि, इसके लिए प्रयास लगातार किए जा रहे हैं। 

हर सर को चाहिए एक अदद छत

हर हाथ को काम और हर सर को छत। यह हर सरकार का वादा होता है और एक आदर्श समाज का सपना भी, जहां हर किसी को बिना दूसरे पर बोझ बने अपना जीवन जीने का मौका मिले। उत्तराखंड के लिए भी वर्षों पहले ऐसी एक योजना शुरू की गई। कहा गया कि सभी ग्रामीण आवासहीन परिवारों को आवास दिलाए जाएंगे। योजना में कई ग्रामीणों को आवास मिले भी। बावजूद इसके अभी भी प्रदेश में हजारों परिवार ऐसे हैं, जिन्हें अपनी छत नसीब नहीं हो पाई है। इनकी संख्या 80 हजार के आसपास है। ये वे परिवार हैं जो प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) में शामिल नहीं हो पाए थे। पंजीकरण के बावजूद विभिन्न कारणों से इन्हें आवास नहीं मिल पाया। प्रदेश सरकार ने इन्हें योजना का लाभ देने के लिए केंद्र में भी दस्तक दी। केंद्र सरकार ने आश्वासन तो दिया, मगर यह अभी तक पूरा नहीं हो पाया है।

डबल इंजन हेलीकाप्टर पर कोरोना का ब्रेक 

प्रदेश सरकार का डबल इंजन हेलीकाप्टर खरीदने का ख्वाब अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। इस पर अभी तक कोरोना का ब्रेक लगा हुआ है। दरअसल, आपदा समेत विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों को देखते हुए प्रदेश सरकार ने नया डबल इंजन हेलीकाप्टर खरीदने का निर्णय लिया। अभी तक आपात कार्यों के लिए किराए के हेलीकॉप्टर लिए जा रहे हैं। अभी स्थिति यह है कि कभी इनके मिलने में देरी होती है, तो कभी किराये को लेकर विवाद रहता है। शासन में अभी तक किराये को लेकर आपरेटर व विभाग के बीच अंतिम निर्णय नहीं हो पाया। बीते वर्ष मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में सरकार ने डबल इंजन हेलीकाप्टर खरीदने का निर्णय लिया। जब तक खरीद पर कदम आगे बढ़ते तब तक कोरोना ने दस्तक दे दी। ऐसे में सरकार का सारा फोकस स्वास्थ्य सेवाओं पर लगा रहा। इस कारण हेलीकाप्टर खरीद प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हो पाई है।

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