विरासत कार्यक्रम: गोवा के लोकनृत्य तलगड़ी पर झूमे दर्शक

विरासत कार्यक्रम में गोवा के मशहूर नृत्य तलगड़ी के नाम रही। जब गोवा से आए कलाकारों ने तलगड़ी नृत्य शुरू किया तो मैदान में मौजूद दर्शक भी झूमने पर मजबूर हो गए।

By Edited By: Publish:Sat, 19 Oct 2019 10:21 PM (IST) Updated:Sun, 20 Oct 2019 01:23 PM (IST)
विरासत कार्यक्रम: गोवा के लोकनृत्य तलगड़ी पर झूमे दर्शक
विरासत कार्यक्रम: गोवा के लोकनृत्य तलगड़ी पर झूमे दर्शक

देहरादून, जेएनएन। कौलागढ़ स्थित आंबेडकर मैदान में चल रहे विरासत कार्यक्रम में गोवा के मशहूर नृत्य तलगड़ी के नाम रही। जब गोवा से आए कलाकारों ने तलगड़ी नृत्य शुरू किया तो मैदान में मौजूद दर्शक भी झूमने पर मजबूर हो गए। इधर, ध्रुपद गायन और वायलिन वादन ने भी दर्शकों का मन मोह लिया।

विरासत में गोवा से आए इंद्रेश्वर यूथ ग्रुप के कलाकारों ने वहां का लोकप्रिय नृत्य तलगड़ी पेश किया। ढोल की थाप पर लहराते हुए रंगीले फूलों से सजे नर्तकों ने ऐसा समां बांधा कि हल्के सर्द मौसम में दर्शकों में भी जोश भर गया और वे भी थिरकने लगे। वाद्य यंत्र गुलुमद पर संदीप गूंकर एवं गौरेश पड़कर, शमेल पर अजय गूंकर, कसड़ा पर गौरेश पड़कर एवं दिलकुश वेलिप ने शानदार प्रस्तुति दी।

तलगड़ी गोवा का लोकनृत्य है। यह आमतौर पर बसंत के मौसम से जुड़े त्योहारों और अनुष्ठानों के दौरान किया जाता है। यह पीढ़ियों से चला आ रहा है। तलगड़ी दो शब्दों ताल और गादी से मिलकर बना है। ताल का अर्थ है ताल जबकि गादी का अर्थ है मनुष्य। इस नृत्य में नर्तकों को तंग धोती पहनाई जाती है और फूलों से सजाया जाता है। इन फूलों को स्थानीय भाषा-बोली में आबोली कहा जाता है। 

जैसे ही संगीत बजता है, नर्तक मंडली बना कर एक रंगीन कपड़े को लहराते हुए नृत्य करते हैं। इसमें विभिन्न क्रियाओं जैसे पायल एवं ब्लाउज पहनना और बांसुरी बजाना आदि का उपयोग किया जाता है। इस नृत्य में समय के साथ-साथ कई अन्य गतिविधियों को भी आत्मसात किया गया है। इससे पूर्व क्राफ्ट वर्कशाप हुई। इसमें दून प्रेसीडेंसी, एसजीआरआर, पॉलीटेक्निक बीएस नेगी, एमकेपी, हिमज्योति समेत अन्य स्कूल कॉलेज के 200 विद्यार्थियों ने टाई एंड डाई का प्रशिक्षण लिया। वर्कशॉप कि शुरुआत राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता अरशद ने की। वह निफ्ट संस्थान में भी प्रशिक्षण दे चुके हैं। उनका शिल्प गुरु अवार्ड के लिए भी नामांकन हुआ है।

अनूठी शैली में वायलिन बजाकर जीता श्रोताओं का दिल

वायलिन वादक अनुप्रिया देवताले ने वायलिन से मधुर धुन बजाकर श्रोताओं को संगीत के रस में डूबो दिया। वह महान सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान और सारंगी वादक पंडित राम नारायण की शिष्या हैं। उनकी खुद की एक अनूठी शैली है। वह गायकी के तत्वों को पेश करती हैं, जो मुखर गायकी और तंत्रकारी यानी वाद्य लयबद्ध पैटर्न है, यह ऐसा तरीका है जो पूरे उपमहाद्वीप में नहीं पाया जाता है। वह पहली भारतीय संगीतकार हैं जिन्हें 2004 में लाहौर में उस्ताद सलामत अली और नजाकत अली खान पुरस्कार से नवाजा गया। आल इंडिया रेडियो की ए श्रेणी की कलाकार हैं।

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ध्रुपद गायन से झंकृत हुए मन के तार

ध्रुपद गायक की शुरुआत अभिजीत सुखादने ने राग पुरिया धनाश्री से की। मध्यलय अलाप, द्रुतलय अलाप सुनाया। सूलताल में ‘ऐसी छवि तेरी समझत नहीं’ बैजू महाराज का सुंदर अति नवीन प्रवीण महाचतुर मृगनयनी गाकर श्रोताओं को शास्त्रीय संगीत के भंवर में डूबो दिया। उनके साथ गायन में अनुज प्रताप सिंह, यखलेश बघेल, सुदीप भदौरिया, आदित्य शर्मा, तानपुरा पर आकांक्षा एवं योगिनी और पखावज पर अंकित पारिख ने साथ दिया। अभिजीत ग्वालियर के पहले ध्रुपद गायक हैं। उन्होंने उस्ताद जिया फरिद्दुदिन्न दागर से ध्रुपद गायन का प्रशिक्षण लिया।

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