कैदियों की आरटीआइ से जेल अधिकारी त्रस्त, मांग रहे अजीबोगरीब सूचनाएं
Right To Information जिला कारागार में बंद कैदियों के आरटीआइ में अजीबोगरीब सूचनाएं मांगे जाने से जेल अधिकारी परेशान हैं।
देहरादून, सुमन सेमवाल। Right To Information जिला कारागार में बंद कैदियों के आरटीआइ में अजीबोगरीब सूचनाएं मांगे जाने से जेल अधिकारी परेशान हैं। कोई कैदी जेल की कैंटीन के लाभ से लेकर चाय बनाने में प्रयुक्त सामग्री की जानकारी मांग रहा है तो कोई खेल और व्यायाम के नियमों के बारे में जानना चाहता है। एक कैदी ऐसा भी है, जिसने अपने एक्सरे के बाद दी गई दवा पर ही सवाल खड़े कर दिए।
लोक सूचनाधिकारी ने आवेदक कैदियों को मांगी गई जानकारी भेजी, मगर वे इसे भ्रामक करार देकर अपील में चले गए। विभागीय अपीलीय और जेल अधीक्षक ने अपील का निस्तारण कर दिया, पर इसके बाद कैदियों ने सूचना आयोग में अपील लगा दी। राज्य सूचना आयुक्त ने प्रकरण की सुनवाई कर अपील का निस्तारण किया, तब जाकर जेल अधिकारियों ने राहत की सांस ली। अभी भी आरटीआइ की तमाम अर्जियां लंबित हैं, जिन पर अधिकारी माथापच्ची कर रहे हैं। आइए हाल में सूचना आयोग में निस्तारित की गई तीन अपील पर नजर डालते हैं।
केस एक
जिला कारागार में बंद करण यादव ने जेल की बंदी कल्याणकारी कैंटीन को वर्ष 2016-17 से 2018-19 में अर्जित लाभ की जानकारी मांगी। साथ ही पूछा कि जो 200 मिलीलीटर मात्रा की चाय अधिकतम 10 फीसद लाभ पर आठ रुपये में दी जा रही है, उसे बनाने में कौन-कौन सी सामग्री कितनी मात्रा में प्रयुक्त की जा रही है। सूचना दी गई कि तीन साल की अवधि में जेल को 15 लाख रुपये का मुनाफा हुआ और बंदियों के कल्याण में अब तक आठ लाख रुपये खर्च किए गए हैं। इससे संतुष्ट न होकर कैदी ने यह भी पूछ लिया कि बाकी का बजट कहां खर्च किया गया। आयोग ने यह सूचना भी 15 दिन के भीतर उपलब्ध कराने के निर्देश के साथ अपील निस्तारित कर दी।
केस दो
अल्मोड़ा कारागार से 26 अगस्त 2019 को देहरादून जेल शिफ्ट किए गए कैदी पाल सिंह ने यह जानकारी चाही कि उसे उस विशेष नियम की जानकारी दी जाए, जिसका हवाला देकर उसे खेलने और व्यायाम करने से रोका जा रहा है। सूचना के अधिकार के तहत लगाई अर्जी में उसने यह भी उल्लेख किया कि वह मधुमेह से पीड़ित है, लिहाजा उसका व्यायाम करना जरूरी है। जेल में डंबल, बैडमिंटन रैकेट, वॉलीबॉल आदि उपलब्ध हैं, फिर भी उसे इन चीजों से वंचित रखा जा रहा है। बंदी परेड के समय जेल अधीक्षक के समक्ष भी इस मांग को उठाया गया था, तब भी किस आदेश से यह सामग्री मुहैया नहीं कराई जा रही। जेल प्रशासन ने इस तरह की बातों को नकारा था और सूचना आयोग इस अपील का निस्तारण 18 जून को कर चुका था। फिर भी कैदी ने बिना बताए दूसरी अपील दाखिल कर दी। मामला पकड़ लिया गया और इसे जब स्वत: निस्तारित माना गया तो अधिकारियों ने राहत की सांस ली।
केस तीन
कैदी कुलदीप त्यागी इस बात से खिन्न है कि उसके अस्वस्थ होने के समय बिना एक्सरे और परामर्श के उसे दवाइयां क्यों दी गई। सूचना आयोग में पहुंचे इस मामले में आयुक्त सीएस नपलच्याल ने पाया कि मांगी गई सूचना का जेल कार्यालय के रिकॉर्ड से कोई संबंधी नहीं है। फिर भी न्यायहित में उन्होंने कैदी के चिकित्सा परीक्षण की फाइल का अवलोकन किया और जेल अधिकारियों से जवाब मांगा।
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उन्होंने पाया कि कैदी का मत है कि जब उसे एम्स ऋषिकेश ले जाया गया, तो बिना एक्सरे व परामर्श के उसे दवाइयां क्यों दी गई। हालांकि, जेल अधिकारियों ने प्रमाण सहित यह बताया कि एक्सरे किया गया है और परामर्श के बाद आवश्यक दवाइयां भी दी गई। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि कैदी के इलाज पर एम्स ऋषिकेश को एक लाख 60 हजार रुपये आरटीजीएस से भेजे गए हैं। आयोग ने भी जवाब को उपयुक्त पाते हुए अपील का निस्तारण कर दिया।