वन क्षेत्रों में भू-क्षरण की रोकथाम पर अब रहेगा खास फोकस
उत्तराखंड में अब वन क्षेत्रों में भू-क्षरण की रोकथाम के प्रयासों पर अधिक फोकस करने का निर्णय लिया गया है। हालांकि चार साल पहले राज्य सेक्टर के अंतर्गत शुरू की गई भू-क्षरण की रोकथाम योजना के माध्यम से ये कार्य चल रहे हैं मगर अब इसमें और तेजी लाई जाएगी।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। चमोली जिले में आई आपदा के बाद उत्तराखंड के वन महकमे ने भी सबक लिया है। इसे देखते हुए अब वन क्षेत्रों में भू-क्षरण की रोकथाम के प्रयासों पर अधिक फोकस करने का निर्णय लिया गया है। हालांकि, चार साल पहले राज्य सेक्टर के अंतर्गत शुरू की गई 'भू-क्षरण की रोकथाम' योजना के माध्यम से ये कार्य चल रहे हैं, मगर अब इसमें और तेजी लाई जाएगी।
दरअसल, विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाला उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से भी बेहद संवेदनशील है। अतिवृष्टि, बादल फटने, उच्च हिमालयी क्षेत्र में झीलें बनने, तापमान बढऩे से जंगलों में आग जैसी घटनाओं से उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में वन सपदा को भारी नुकसान पहुंच रहा है। इसका दुष्परिणाम यहां के निवासियों को झेलना पड़ रहा है। भू-क्षरण की वजह से जंगलों को तो नुकसान पहुंच ही रहा मलबा आने से गांवों, सड़कों के लिए भी खतरा बढ़ रहा है।
आपदा की दृष्टि से करीब 400 गांव संवेदनशील श्रेणी में हैं, जबकि हर बरसात में सड़कें बाधित होती रहती हैं। यह ठीक है कि प्राकृतिक आपदा पर किसी का वश नहीं होता, मगर इसके असर को न्यून तो किया ही जा सकता है। जाहिर है कि इसके लिए समय रहते ठोस और प्रभावी कदम उठाए जाने आवश्यक हैं। इस दिशा में जंगलों में भू-क्षरण की रोकथाम के लिए तेजी से कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
इस सबको देखते हुए वर्ष 2017-18 में राज्य सेक्टर में भू-क्षरण रोकथाम योजना शुरू की गई। इसमें पहले वर्ष 20 लाख, फिर वर्ष 2018-19 में 1.40 करोड़ का बजट प्रविधानित किया गया। 2019-20 में भी करीब इतने ही बजट का प्रविधान किया गया। इसके तहत वन क्षेत्रों में भू-क्षरण की रोकथाम के लिए चेकडैम समेत अन्य कदम उठाए जा रहे हैं। अब चमोली जिले में आई आपदा के बाद भू-क्षरण रोकने के उपायों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का निश्चय किया गया है। वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस योजना के अलावा अन्य मदों से भी ये कार्य तेजी से कराए जाएंगे।
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