उत्तराखंड में पिरुल भी बन रहा विद्युत उत्पादन का जरिया, छह निजी उद्यमियों ने लगाया विद्युत उत्पादन सयंत्र
उत्तराखंड में करीब 16 फीसद हिस्से में चीड़ के वनों का फैलाव है। चीड़ के जंगलों से हर साल 23.66 लाख मीट्रिक टन पिरुल निकलता है। वनों में आग के फैलाव का बड़ा कारण बनने वाली चीड़ की पत्तियां (पिरुल) अब बिजली उत्पादन का बड़ा जरिया बन रही हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून: वनों में आग के फैलाव का बड़ा कारण बनने वाली चीड़ की पत्तियां (पिरुल) अब बिजली उत्पादन का बड़ा जरिया बन रही हैं। प्रदेश में इससे सफलतापूर्वक बिजली बनाई जा रही है। प्रदेश में पिरुल से विद्युत के उत्पादन के लिए निजी उद्यमियों ने छह सयंत्र स्थापित किए हैं। इनमें से 64065 यूनिट बिजली बन चुकी है। इससे उद्यमियों को चार लाख की आमदनी हुई है। प्रदेश सरकार ने इन्हें प्रोत्साहन देने के लिए सब्सिडी भी प्रदान की है।
उत्तराखंड में करीब 16 फीसद हिस्से में चीड़ के वनों का फैलाव है। चीड़ के जंगलों से हर साल 23.66 लाख मीट्रिक टन पिरुल निकलता है। गर्मियों के दौरान पिरुल जंगलों में आग के फैलाव की बड़ी वजह बनता है। अम्लीय गुण होने के कारण इसे भूमि के लिए बेहतर नहीं माना जाता। साथ ही चीड़ वनों में पिरुल की परत बिछी होने के कारण वहां बारिश का पानी जमीन में नहीं समा पाता। इस सबको देखते हुए सरकार ने पिरुल का व्यावसायिक उपयोग करने का निर्णय लिया, जिससे पिरुल को जंगल से हटाया जा सके और यह आर्थिकी को बढ़ाने में भी योगदान दे। इस क्रम में पिरुल से बिजली, कोयला निर्माण और बायलर के ईंधन के रूप में इसके उपयोग की इकाइयां स्थापित की जा रही हैं।
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इस कड़ी में कुमाऊं क्षेत्र के डीडीहाट, पिथौरागढ़, रामगढ़, नैनीताल, डूंडा उत्तरकाशी, थलीसैंण पौड़ी और इवालबाग, अल्मोड़ा में पिरुल से बिजली बनाने की यूनिटें लग चुकी हैं। अब यह सफलतापूर्वक बिजली बनाने का कार्य कर रही हैं। सरकार ने सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग के तहत इन्हें सब्सिडी देने का भी निर्णय लिया है। इसके तहत इन्हें 40 फीसद तक सब्सिडी दी गई है।
वैकल्पिक ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि सरकार पिरुल से विद्युत उत्पादन को लगातार बढ़ावा दे रही है। इसके लिए उद्यमियों को सब्सिडी भी दी जा रही है।