नजरिया : कोरोना थोड़ा थमा और अनदेखी शुरू, शारीरिक दूरी के नियम का नहीं रख रहे ख्याल
त्योहारी सीजन आते ही बाजार में भीड़ बढ़ने लगी है। इसके साथ ही कोविड प्रोटोकाल की गाइडलाइन हवा हो गई है। लोग शारीरिक दूरी के नियम का ख्याल नहीं रख रहे। लोगों के चेहरे से मास्क गायब है। अनदेखी का यही आलम सिस्टम में है।
विजय मिश्रा, देहरादून। हर किसी को मालूम है कि फिलहाल कोरोना से बचाव की एक ही दवा है, इसका टीका। विडंबना यह है कि कोरोना के चरम पर दौड़भाग कर वैक्सीन लगवाने वाले कुछ लोग अब दूसरी डोज में लापरवाही दिखा रहे हैं। राजधानी दून में प्रशासन ने ऐसे व्यक्तियों को दोबारा टीकाकरण केंद्र तक लाने के लिए अनूठी पहल की है। टीकाकरण मेला के रूप में। यह कदम तारीफ के काबिल है। ऐसी ही गंभीरता कोविड प्रोटोकाल का पालन कराने को भी दिखाई जानी चाहिए। क्योंकि, त्योहारी सीजन में बाजार में भीड़ बढ़ने के साथ कोविड प्रोटोकाल की गाइडलाइन हवा हो चुकी है। उत्साह में लोग शारीरिक दूरी के नियम का ख्याल नहीं रख रहे। मास्क भी शत प्रतिशत चेहरों पर नहीं दिख रहा। अनदेखी का यही आलम सिस्टम में भी है। कोई भी ऐसे व्यक्तियों को टोकने की जहमत नहीं उठा रहा। यह स्थिति कभी भी चुनौती खड़ी कर सकती है।
सरकार दायित्व समझी, आप भी समझें
उत्तराखंड के सरकारी मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस की फीस कम करने का सरकार का फैसला सराहनीय है। हालांकि, कम फीस में पढ़ाई की सुविधा पाने के लिए विद्यार्थियों को बांड भरना होगा। पूर्व में भी यह व्यवस्था लागू थी। तब बांड के अनुसार एमबीबीएस करने वाले विद्यार्थियों को पांच वर्ष तक सरकारी मेडिकल कालेज और स्वास्थ्य केंद्रों में सेवा देना अनिवार्य था। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य था चिकित्सकों की कमी को दूर करना, मगर वर्ष 2018 के बाद यह व्यवस्था समाप्त करनी पड़ी। वजह यह कि दूरस्थ क्षेत्रों में सेवा की बात आते ही बांड भरने वाले विद्यार्थी गायब हो गए। अब सरकार यह व्यवस्था फिर बहाल कर रही है तो इस बात की भी पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए कि विद्यार्थी बांड की शर्तों का पालन करें। इस सुविधा का लाभ लेने वाले विद्यार्थियों को भी राज्य के प्रति अपना दायित्व समझना होगा। पहाड़ के अस्पतालों में चिकित्सकों और संसाधनों का अभाव किसी से छिपा नहीं है।
अस्पताल में भी दलालों का राज
दून मेडिकल कालेज चिकित्सालय यानी राज्य का सबसे बड़ा चिकित्सा संस्थान। संसाधनों ही नहीं चिकित्सकों और स्टाफ की संख्या के मामले में भी। इन दिनों यहां मरीजों को बरगलाकर निजी अस्पताल ले जाने वाले कुछ दलाल सक्रिय हैं। यह जानकारी मिलने के बाद से अस्पताल प्रशासन चिंतित है। जांच भी बैठा दी गई है। इससे इतर अस्पताल प्रशासन को ऐसी नौबत आने की वजह पर भी मंथन करना चाहिए। आखिर दलाल मरीजों को बरगलाने में कैसे सफल हो रहे हैं। जाहिर है कि अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्था ही जिम्मेदार है। चंद रोज पहले की बात है, एक युवती को समुचित इलाज नहीं मिलने पर उसकी मां को स्वास्थ्य मंत्री को फोन करना पड़ा था। इसके बाद इमरजेंसी में एक मरीज हड्डी वाले डाक्टर के इंतजार में घंटों तड़पती रही। अस्पताल में ऐसे मामले रोज नुमाया होते हैं। दलाल इसी का फायदा उठा रहे हैं। इसलिए व्यवस्था सुधारने पर जोर देना चाहिए।
समयबद्ध बनो, नंबर वन बनना है
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य को देश में नंबर वन बनाना चाहते हैं। इस दिशा में फैसले भी लिए जा रहे हैं। इसी क्रम में सरकार ने वन विभाग के माध्यम से एक लाख ईको प्रेन्योर प्रशिक्षित करने की घोषणा की थी। इससे ऐसे उद्यमी तैयार किए जाने हैं, जिससे रोजगार के साथ सतत विकास और पर्यावरण का संरक्षण भी हो सके। यानी ज्यादा से ज्यादा हाथों को काम देने के साथ प्राकृतिक नेमत को सहेजा भी जा सकेगा। गढ़वाल मंडल में इस घोषणा को अब तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। मुख्य वन सरंक्षक ने इस संबंध में जल्द से जल्द प्रभागवार कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं। सरकारी महकमों की योजनाओं में लेटलतीफी का यह पहला मामला नहीं है। 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन संपदा भी रोजगार का अच्छा जरिया बन सकती है। बस, सरकारी महकमों को ऐसी योजनाओं के प्रति गंभीरता दिखानी होगी।
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