'मर-खपकर' कोरोना की जांच कराई, अब रिपोर्ट को मारे-मारे फिर रहे
सरकारी मशीनरी कोरोना संक्रमण की रोकथाम में जुटी है या उसकी अनदेखी उल्टे इसे बढ़ाने का काम कर रही है। इस समय कोरोना की जांच कराना जितना चुनौतीभरा है उससे कहीं अधिक मुश्किल उसकी रिपोर्ट प्राप्त करना है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। सरकारी मशीनरी कोरोना संक्रमण की रोकथाम में जुटी है, या उसकी अनदेखी उल्टे इसे बढ़ाने का काम कर रही है। इस समय कोरोना की जांच कराना जितना चुनौतीभरा है, उससे कहीं अधिक मुश्किल उसकी रिपोर्ट प्राप्त करना है। नागरिकों को जांच कराने के हफ्तेभर बाद तक भी यह पता नहीं चल पा रहा है कि वह पॉजिटिव हैं, या निगेटिव। अनिश्चितता की इसी स्थिति में तमाम लोग बाहर घूम रहे हैं। जो व्यक्ति पॉजिटिव आ रहे हैं, वह रिपोर्ट आने तक तमाम जगह संक्रमण बांट दे रहे हैं। जिलाधिकारी डॉ. आशीष श्रीवास्तव बार-बार यह हिदायत दे रहे हैं कि कोरोना की रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर पोर्टल पर अपलोड कर दी जाए। इसके बाद भी सरकारी व निजी लैब के स्तर पर गंभीर अनदेखी की जा रही है।
कोरोना रिपोर्ट डाउनलोड करने के लिए राज्य सरकार ने www.covid19.uk.gov.in का जो लिंक जारी किया है, वह खुलता ही नहीं है। इसके अलावा कोरोना की जांच के समय एसआरएफ आइडी के साथ एसएमएस के जरिये जो लिंक मिलता है, उसमें हफ्तेभर बाद तक भी सिर्फ सैंपल कलेक्शन की ही रिपोर्ट दिखती है। कंट्रोल रूम से वाजिब जवाब नहीं मिलता और लैब व प्रशासन से संपर्क करना मुनासिब नहीं हो पाता है, या वहां संपर्क साध पाना अधिकतर व्यक्तियों के बस की बात नहीं होती। आइए जानते हैं कि किस तरह लोग पहले 'मर-खपकर' जांच करा रहे हैं और फिर रिपोर्ट के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। केस एक: बुखार के बीच लाइन में लगकर जांच कराई, रिपोर्ट का पता नहीं: मैत्री विहार निवासी एक व्यक्ति को तेज बुखार की शिकायत हुई। 27 अप्रैल को वह दून अस्पताल में कोरोना की जांच के लिए गए। वहां जांच कराने वालों की लंबी लाइन थी। एक घंटे खड़े रहने के बाद वह लौट आए। फिर साहस कर अगले दिन तीलू रौतेली स्थित सेंटर में पहुंचे और किसी तरह गिरते-पड़ते जांच कराई। इस बीच वह कोरोना की रोकथाम के लिए बताई गई दवाओं का सेवन करने लगे थे। गनीमत रही कि बुखार में एक सप्ताह बाद कमी आ गई, मगर उनकी रिपोर्ट अब तक नहीं आई। केस : 2 : किट वाले का फोन आ गया, रिपोर्ट का पता नहीं: शास्त्रीनगर निवासी एक परिवार के तीन सदस्यों ने दो मई को जांच कराई थी। सैंपल लेते समय उन्हें बताया गया कि एसएमएस से आने वाले एसआरएफ आइडी के साथ दिए लिंक के जरिये रिपोर्ट पता की जा सकती है। स्थिति यह है कि छह मई तक भी रिपोर्ट नदारद है। इस बीच परिवार के सदस्य तब चौंक जाते हैं, जब उन्हें कोरोना किट बांटने वाले एक होमगार्ड का कॉल आता है। वह कहता है कि आप सब पॉजिटिव हैं और किट भेजनी है। यह स्थिति बताती है कि सैंपल की जांच हो जाने के बाद भी उसका डाटा पोर्टल पर अपलोड नहीं किया जा रहा है। केस : 3 : एसएमएस में दून मेडिकल कॉलेज का पता और जांच एम्स में: पटेलनगर क्षेत्र के एक निजी संस्थान में काम करने वाले व्यक्ति ने तीलू रौतेली में सैंपल दिया। वहां बताया गया कि सैंपल दून मेडिकल कॉलेज की लैब भेजे जा रहे हैं। यदि वहां संपर्क हैं तो जल्द रिपोर्ट पता चल सकती है। अपनी पहुंच का फायदा उठाकर संबंधित व्यक्ति ने दून मेडिकल कॉलेज की लैब में संपर्क किया तो पता चला कि सैंपल एम्स ऋषिकेश भेजे गए हैं। इस व्यक्ति के संपर्क बेहतर थे तो पांच दिन बाद रिपोर्ट पता चल गई। मगर, यह हर किसी के बस की बात नहीं है।
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