Paryushan Parv 2020: भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय महामंत्री नरेश बोले, अहंकार का त्याग कर सभी के प्रति विनम्र बनें
पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन दिगंबर जैन समाज ने उत्तम मार्दव धर्म की उपासना की। मार्दव का अर्थ है मान (घमंड) और दीनता-हीनता का अभाव।
देहरादून, जेएनएन। प्रयूषण (दशलक्षण) पर्व के दूसरे दिन दिगंबर जैन समाज ने उत्तम मार्दव धर्म की उपासना की। मार्दव का अर्थ है मान (घमंड) और दीनता-हीनता का अभाव। मार्दव धर्म अपने आप की सही वृत्ति को समझने का जरिया है। यह बताता है कि मनुष्य को अहंकार का त्याग कर सभी से विनम्र भाव से पेश आना चाहिए। इस अवसर पर जैन धर्मशाला स्थित दिगंबर जैन मंदिर के साथ ही रुचिपुरा, सुभाषनगर, डिस्पेंसरी रोड स्थित आदि मंदिरों में श्रीजी का अभिषेक और शांतिधारा का आयोजन किया गया।
कोरोनाकाल के बावजूद शहर में दशलक्षण पर्व को लेकर जैन समाज के अनुयायियों में जबरदस्त उत्साह है। लोग घर में ही श्रीजी का ध्यान और पाठ कर रहे हैं। सोमवार को प्रिंस चौक स्थित जैन भवन के श्री महावीर जिनालय में अमित जैन को शांतिधारा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यहां देव दर्शन के बाद सभी ने घरों में शास्त्रसभा, स्वाध्याय के बाद पूजा की। जैन धर्म के सातवें तीर्थकर 1008 श्री सुपाश्र्वनाथ भगवान का गर्भ कल्याणकर उत्सव मनाया गया। भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय महामंत्री नरेश जैन ने बताया कि किसी भी तरह का घमंड न करना ही उत्तम मार्दव धर्म है।
इंसान को अहंकारी बना देता है धन
भारतीय जैन मिलन की केंद्रीय महिला संयोजक मधु जैन ने अपने आवास पर उत्तम मार्दव की पूजा की। इस दौरान उन्होंने बताया कि धन और शान ओ शौकत इंसान को अहंकारी बना देते हैं। यह समझना जरूरी है कि ये सभी चीजें एक दिन हमें छोड़ देंगी या हमें मजबूरन इन्हें छोड़ना पड़ेगा। महिला जैन मिलन एकता की अध्यक्ष बीना जैन ने कहा कि हम खुद को पहचानें और दुराग्रहों का नाश करने के लिए तप, त्याग और साधना करें।
श्रद्धालुओं ने रखा महालक्ष्मी का व्रत
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आज से श्रद्धालु महालक्ष्मी का व्रत रख रहे हैं। व्रत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 21 मिनट से 26 अगस्त को सुबह 10 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। हिंदी पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी व्रत होता है, जो 16 दिनों तक आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक चलता है। जो लोग 16 दिनों तक महालक्ष्मी का व्रत नहीं रख पाते हैं, वे पहले और आखिरी दिन महालक्ष्मी व्रत रखते हैं। आचार्य विजेंद्र प्रसाद ममगाईं के अनुसार, महालक्ष्मी व्रत को राधा अष्टमी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन राधा का जन्म हुआ था। इस दिन व्रती महालक्ष्मी की पूजा कर उनके नाम का जप करते हैं।