उत्तराखंड: बिना पर्यवेक्षकों के कैसे होगी सड़क सुरक्षा, अब तक धरातल पर नहीं उतर पाया ये आदेश

हाईकोर्ट द्वारा दो साल पूर्व हर ब्लाक में जांच के लिए प्रवर्तन दलों की तैनाती के आदेश अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए हैं। इसका कारण परिवहन विभाग में प्रवर्तन संवर्ग की नियमावली का अस्तित्व में न आना और इस कारण नई भर्तियों का न हो पाना है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Tue, 15 Jun 2021 06:18 PM (IST) Updated:Tue, 15 Jun 2021 11:04 PM (IST)
उत्तराखंड: बिना पर्यवेक्षकों के कैसे होगी सड़क सुरक्षा, अब तक धरातल पर नहीं उतर पाया ये आदेश
बिना पर्यवेक्षकों के कैसे होगी सड़क सुरक्षा, अब तक धरातल पर नहीं उतर पाया ये आदेश।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। हाईकोर्ट द्वारा दो साल पूर्व हर ब्लाक में जांच के लिए प्रवर्तन दलों की तैनाती के आदेश अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए हैं। इसका कारण परिवहन विभाग में प्रवर्तन संवर्ग की नियमावली का अस्तित्व में न आना और इस कारण नई भर्तियों का न हो पाना है। ऐसे में परिवहन विभाग चुनिंदा प्रवर्तन दलों के बूते ही पूरे प्रदेश में प्रवर्तन के कार्य संचालित कर रहा है।

हाईकोर्ट ने दो साल पहले पर्वतीय क्षेत्रों में हो रही दुर्घटनाओं का संज्ञान लेते हुए प्रदेश के हर ब्लाक तक प्रवर्तन दलों की तैनाती के निर्देश दिए थे। विभाग में क्योंकि सहायक संभागीय अधिकारी प्रवर्तन के बेहद सीमित पद हैं, इस कारण विभाग ने प्रवर्तन संवर्ग की सेवा नियमावली बनाने का निर्णय लिया। इस नियमावली में प्रवर्तन सिपाहियों की संख्या बढ़ाने के साथ ही इनकी पदोन्नति के नए पद भी बनाए गए। इस नियमावली में प्रवर्तन संवर्ग में प्रवर्तन सिपाही, प्रवर्तन पर्यवेक्षक और वरिष्ठ प्रवर्तन पर्यवेक्षक के पद सृजित किए गए।

पहले इस संवर्ग में प्रवर्तन सिपाही के बाद प्रवर्तन पर्यवेक्षक का पद था। वरिष्ठ प्रवर्तन पर्यवेक्षक पद सृजित करने से सिपाहियों के सामने पदोन्नति के नए रास्ते खुलने की उम्मीद भी जगी थी। यह नियमावली शासन के समक्ष लाई गई और कुछ संशोधनों के साथ कैबिनेट ने भी इसे पारित कर दिया। इस नियमावली में सिपाही से प्रवर्तन पर्यवेक्षक और फिर प्रवर्तन पर्यवेक्षक पद से वरिष्ठ प्रवर्तन पर्यवेक्षक पद पर पदोन्नति के लिए अर्हताएं भी तय की गई।

इसके साथ ही इनके पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में सेवा करने की अवधि तय की गई। नई भर्ती में गरीब सवर्ण आरक्षण की व्यवस्था भी की गई। कैबिनेट से पारित होने के बाद शासन को केवल इसका आदेश जारी करना था, मगर ऐसा हुआ नहीं। दरअसल, यह फाइल जब मंजूरी के लिए मुख्यमंत्री के पास गई तो उन्होंने इसमें कुछ संशोधन सुझाए। इस बीच प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हो गया। इसके बाद से ही इस नियमावली पर कोई काम नहीं हो पाया है।

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