दस दिन के भीतर देनी होगी बीमा धनराशि
दुर्घटनाग्रस्त वाहन को ठीक नहीं कराना व समय पर बीमा राशि जारी नहीं करना क्रमश वाहन विक्रेता एजेंसी और बीमा कंपनी को भारी पड़ गया।
जागरण संवाददाता, देहरादून: दुर्घटनाग्रस्त वाहन को ठीक नहीं कराना व समय पर बीमा राशि जारी नहीं करना क्रमश: वाहन विक्रेता एजेंसी और बीमा कंपनी को भारी पड़ गया। स्थायी लोक अदालत ने इसे लापरवाही मानते हुए वाहन विक्रेता एजेंसी और बीमा कंपनी पर 45-45 हजार रुपये का जुर्माना ठोका है। इसके साथ ही वाहन विक्रेता एजेंसी को आदेश दिया गया है कि वह वाहन की मरम्मत में खर्च हुई धनराशि बीमा कंपनी से लेकर उपभोक्ता को अदा करे।
शिकायतकर्ता जितेंद्र सिंह निवासी देहरादून ने इसी वर्ष स्थायी लोक अदालत में प्रार्थना पत्र दाखिल किया था। इसमें उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में एमजी देहरादून ग्रैंड वाइक्लस प्राइवेट लिमिटेड से एमजी हेक्टर कंपनी का वाहन खरीदा था। जिसका बीमा आइसीआइसीआइ लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी से कराया। बीमा 29 सितंबर 2021 तक वैध था। इसी दरमियान तीन अक्टूबर 2020 को जितेंद्र परिवार के साथ बदरीनाथ धाम की यात्रा पर गए। वहां गोविंदघाट में वाहन के ऊपर पहाड़ी से एक बड़ा पत्थर गिर गया। इससे वाहन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। चार अक्टूबर को इसकी सूचना एमजी हेक्टर कंपनी के टोल फ्री नंबर पर दी, मगर वहां से संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इसके बाद जितेंद्र ने कंपनी को ईमेल किया। कंपनी ने पांच अक्टूबर को दुर्घटनाग्रस्त वाहन को संबंधित एजेंसी के शोरूम में मंगवा लिया। वहीं, इंश्योरेंस कंपनी ने यह जानकारी मिलने पर 12 अक्टूबर को हिमांशु शर्मा को इसके लिए जांच अधिकारी नियुक्त किया। हालांकि, कई माह बीतने के बाद भी न तो शिकायतकर्ता का इंश्योरेंस क्लेम स्वीकृत किया गया और न ही वाहन की मरम्मत हुई। इंश्योरेंस कंपनी ने अपने जवाब में कहा कि वाहन डीडी मोटर्स के नाम से खरीदा गया है। ऐसे में शिकायतकर्ता ने किस हैसियत से वाद दायर किया, यह स्पष्ट नहीं है।
इस मामले में सोमवार को स्थायी लोक अदालत के अध्यक्ष राजीव ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाया। इसमें उन्होंने कहा कि इंश्योरेंस कंपनी ने दुर्घटना के छह महीने बाद तक बीमा दावा स्वीकार नहीं किया। जब 14 अप्रैल 2021 को इंश्योरेंस कंपनी ने वाहन सही करने की अनुमति दे दी तो एमजी हेक्टर और संबंधित वाहन विक्रेता एजेंसी ने लापरवाही की। कुछ बिंदुओं के आधार पर वाहन को सही नहीं किया गया। ऐसे में शिकायतकर्ता ने अपने खर्च पर वाहन ठीक कराया। अदालत ने कहा कि वाहन की मरम्मत में जो खर्च आया है, उसे वाहन विक्रेता एजेंसी संबंधित इंश्योरेंस कंपनी से स्वीकृत कराकर शिकायतकर्ता को 10 दिन के भीतर उपलब्ध कराए।