सेब सड़ गए, नहीं पहुंचे 'उत्तराखंड एप्पल' के कोरुगेटेड बाक्स, एक काश्तकार ने साझा की अपनी पीड़ा
देहरादून के रेंजर्स मैदान में अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव में पहुंचे लाखामंडल के एक काश्तकार विजय सिंह चौहान ने बताया कि उनका सेब दिल्ली की साहिबाबाद मंडी में बिकता है। उन्हें ब्रांडिंग मार्केटिंग व पैकेजिंग के लिए कोई सरकारी मदद नहीं मिलती। उन्होंने त्यूणी से बाक्स खरीदकर खुद ही पैकिंग की।
जागरण संवाददाता, देहरादून। यूं तो सरकार प्रदेश में कृषि-बागवानी को बढ़ावा देने के तमाम दावे कर रही है, लेकिन हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। विभागीय अधिकारी आमजन के लिए तमाम योजनाएं संचालित करने की बात कहते हैं, लेकिन जरूरतमंदों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। काश्तकारों को सरकार की ओर से समय पर न तो कोई सहयोग मिल रहा है और न ही प्रोत्साहन। यही नहीं प्रदेश सरकार की 'उत्तराखंड एप्पल' ब्रांडिंग की महात्वाकांक्षी योजना को भी पलीता लग रहा है। काश्तकारों को समय पर कोरुगेटेड बाक्स नहीं मिल पा रहे हैं और न ही सेब बेचने को ही कोई उचित व्यवस्था बन पा रही है।
देहरादून के रेंजर्स मैदान में शुक्रवार को शुरू हुए अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव में काश्तकारों ने सेब समेत अन्य उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई। यहां पहुंचे लाखामंडल के एक काश्तकार ने दैनिक जागरण से अपनी पीड़ा साझा की। काश्तकार विजय सिंह चौहान ने बताया कि उन्होंने लाखामंडल क्षेत्र में सेब के करीब छह हजार पेड़ लगाए हैं। तीन साल के पेड़ों पर ही इस बार बंपर उत्पादन हुआ है। उनके पास चार किस्म का सेब उपलब्ध है, जो कि ग्रीन स्मिथ, गाला, फ्यूजी और जेरोमाइन है। वह अपना ज्यादातर सेब बेच चुके हैं। उनका सेब दिल्ली की साहिबाबाद मंडी में बिकता है, लेकिन उन्हें ब्रांडिंग, मार्केटिंग व पैकेजिंग के लिए कोई सरकारी सहयोग नहीं मिलता। उन्हें त्यूणी से बाक्स खरीदकर खुद ही पैकिंग कर और दिल्ली तक परिवहन करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि उन्हें सेब के बागीचे विकसित करने के लिए कलम भी मुहैया नहीं कराई गई। वे हिमाचल से कलम लाए थे और अब खुद ही कलम तैयार करते हैं।
सेब बेचने के दो सप्ताह बाद आया बाक्स के लिए फोन
काश्तकार विजय सिंह चौहान ने कहा कि उन्होंने बीते चार अगस्त को दिल्ली में सेब बेच दिए। जबकि, उद्यान विभाग की ओर से 20 अगस्त को उन्हें फोन कर कोरुगेटेड बाक्स के लिए पूछा गया।
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