उत्तराखंड में तेजी से पैर पसार रही कोरोना की दूसरी लहर, वन्यजीवों पर भी मंडराया खतरा

कोरोना की दूसरी लहर जनसामान्य पर तो भारी पड़ ही रही अब वन्यजीवों के लिए भी खतरा पैदा हो गया। हालांकि केंद्र सरकार के निर्देशों के क्रम में संरक्षित क्षेत्रों यथा सभी छह राष्ट्रीय उद्यान सात अभयारण्य चार कंजर्वेशन रिजर्व और दो चिड़ियाघरों को 15 मई तक बंद कर दिया।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 07:06 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 07:06 PM (IST)
उत्तराखंड में तेजी से पैर पसार रही कोरोना की दूसरी लहर, वन्यजीवों पर भी मंडराया खतरा
उत्तराखंड में तेजी से पैर पसार रही कोरोना की दूसरी लहर, वन्यजीवों पर भी मंडराया खतरा। फाइल फोटो

केदार दत्त, देहरादून। उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण की तेजी से पैर पसारती दूसरी लहर जनसामान्य पर तो भारी पड़ ही रही, अब वन्यजीवों के लिए भी खतरा पैदा हो गया है। सूरतेहाल, चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। हालांकि, केंद्र सरकार के निर्देशों के क्रम में राज्य के संरक्षित क्षेत्रों, यथा सभी छह राष्ट्रीय उद्यान, सात अभयारण्य, चार कंजर्वेशन रिजर्व और दो चिड़ियाघरों को 15 मई तक बंद कर दिया गया है। साथ ही वहां खास सतर्कता बरती जा रही है। 

संरक्षित क्षेत्रों में ड्यूटी करने वाले कार्मिकों के लिए आरटीपीसीआर की निगेटिव रिपोर्ट अनिवार्य की गई है। चिड़ियाघरों में कार्मिकों से कहा गया है कि कोविड की गाइडलाइन का पालन करते हुए वन्यजीवों को भोजन उपलब्ध कराएं। निश्चित तौर पर ये उपाय बेहद जरूरी हैं, मगर असल चिंता वन क्षेत्रों की है। यदि वहां कोई वन्यजीव कोरोना संक्रमण की चपेट में आया तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं। लिहाजा, निगरानी तेज करने की जरूरत है। 

चिड़ियाघरों में सुकून का अहसास

प्रदेश के चिड़ियाघरों में इन दिनों वन्यजीव सुकून का अहसास कर रहे हैं। न सैलानियों की भीड़भाड़ और न बाड़ों के इर्द-गिर्द किसी का कोई हस्तक्षेप। कोरोना की गाइडलाइन का पालन करते हुए कर्मचारी उन्हें वक्त पर भोजन मुहैया कराने जरूर जा रहे, मगर वे तुरंत ही लौट भी जाते हैं। दूर से ही बाड़ों में रह रहे बेजबानों पर नजर रखी जा रही है। जाहिर है कि वन्यजीव भी इन दिनों न सिर्फ आराम फरमा रहे, बल्कि बाड़ों में स्वच्छंद विचरण भी कर रहे हैं।

हालांकि, बाड़ों का बंधन अवश्य है, लेकिन वे सुकून का अहसास जरूर कर रहे हैं। फिर चाहे वह नैनीताल का चिड़ियाघरों हो या फिर देहरादून का, दोनों जगह सूरतेहाल एक जैसा ही है। ऐसे में यह बात भी उठने लगी है कि चिड़ियाघरों में सैलानियों की संख्या सीमित करने की जरूरत है। यह प्रबंधन के लिहाज से जरूरी है तो वन्यजीवों के लिए भी।

जलीय जीवों पर लगेंगे 'टैग' 

वन्यजीव विविधता के मामले में धनी उत्तराखंड में जंगली जानवरों के व्यवहार में आई आक्रामकता भी चिंता बढ़ा रही है। इस लिहाज से देखें तो बाघ, गुलदार व हाथी मुसीबत का सबब बने हुए हैं। इनके व्यवहार में आई तब्दीली के मद्देनजर रेडियो कालर लगाकर अध्ययन शुरू कर दिया गया है। इसके लिए दो बाघ, तीन हाथी व आठ गुलदारों पर रेडियो कालर लगाए गए हैं। इस कड़ी में अब जलीय जीव भी जुडऩे जा रहे हैं। असल में लक्सर व हरिद्वार क्षेत्र में मगरमच्छों के हमले की घटनाएं सामने आती रही हैं। 

इसे देखते हुए तीन जलीय जीवों मगरमच्छ, ऊदबिलाव व कछुओं पर सैटेलाइट मानीटर्ड टैग लगाने की तैयारी है। इसकी कवायद अंतिम चरण में है। इस मुहिम के परवान चढ़ने पर इन जलीय जीवों के व्यवहार को लेकर भी तस्वीर साफ हो सकेगी। फिर अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर स्थिति से निबटने को प्रभावी कदम उठाए जा सकेंगे।

समय रहते करनी होंगी तैयारियां

इंद्रदेव की मेहरबानी के बाद भले ही जंगलों पर आग का खतरा फिलवक्त टल गया हो, मगर वन्यजीवों की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक वक्त आने वाला है। यह वक्त मानसून सीजन का। इस दरम्यान वन्यजीव दोहरी मार से जूझते हैं। एक तो जोरदार बारिश और उस पर शिकारियों व तस्करों का मंडराता साया। बरसात के दौरान कब कहां से शिकारी जंगल में धमककर अपनी करतूत को अंजाम दे दें, कहा नहीं जा सकता। इसे देखते हुए मानसून सीजन में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए समय रहते तैयारियां आवश्यक हैं।

हालांकि, मानसून के दौरान लंबी दूरी की गश्त समेत अन्य उपायों के दावे जरूर किए जाते हैं, मगर इनकी कलई तब खुलकर सामने आ जाती है, जब शिकारी जंगल में किसी घटना को अंजाम देकर फुर्र हो जाते हैं। साफ है कि बदली परिस्थितियों में वन महकमे को वन्यजीव सुरक्षा के लिए ठोस रणनीति अख्तियार कर इसे धरातल पर उतारना होगा।

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