उत्तराखंड: कटाई के बाद अब गेहूं बेचने की चिंता, न मजदूर मिल रहे और न ही खरीदार
रबी की फसल पकने के बाद उत्तराखंड में ज्यादातर किसान गेहूं की कटाई कर चुके हैं। मौसम की मार के बीच अब उन्हें गेहूं बेचने की चिंता सता रही है। कोरोना कर्फ्यू के चलते सीधे बाजार तक उत्पाद पहुंचना मुश्किल है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। रबी की फसल पकने के बाद उत्तराखंड में ज्यादातर किसान गेहूं की कटाई कर चुके हैं। मौसम की मार के बीच अब उन्हें गेहूं बेचने की चिंता सता रही है। कोरोना कर्फ्यू के चलते सीधे बाजार तक उत्पाद पहुंचना मुश्किल है, जबकि सरकारी क्रय केंद्रों पर अभी कोई व्यवस्था नहीं है। किसानों को न तो मजदूर मिल रहे हैं और न ही खरीदार। खलियानों में बारिश के कारण गेहूं खराब होने का खतरा अलग बना हुआ है।
फसल खराब होने की चिंता और पैसे की आवश्यकता को देखते हुए अधिकतर किसान मजबूरी में औने-पौने दाम पर गेहूं बेच रहे हैं, जिस कारण से किसानों को प्रति किवंटल 340 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालांकि प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि सरकार के घोषणा के अनुसार जल्द ही गेहूं की खरीद शुरू कर दी जाएगी।
सरकारी गोदामों में अभी तक कोई व्यवस्था नजर नहीं आ रही है। साथ ही किसानों के सामने मंडी तक गेंहू पहुंचाना भी आसान नहीं। ऐसे में वे खेतों पर ही आसपास के व्यापारियों को सस्ते में उत्पाद बेच रहे हैं। किसानों ने रोष जताया है कि पहले ही उनकी फसलों को मौसम की बेरुखी से नुकसान पहुंचा है और अब फसल काटने के बाद भी उसके खलियानों में ही खराब होने का संकट है।
जौनसार-शिलगांव में ओलावृष्टि व तूफान से तबाह हुई फसलें
मौसम के करवट बदलने से जौनसार-बावर के कई ग्रामीण इलाकों में भारी ओलावृष्टि होने से सैकड़ों किसानों की फसलें नष्ट हो गई। ओलावृष्टि के चलते बगीचों में लगे कई फलदार पेड़ गिर गए। ब्लॉक से जुड़े सीमांत शिलगांव खत के कथियान, भूनाड़, हरटाड़, छजाड़, डांगूठा, ऐठान, पटियूड़ व जौनसार के कोटा-तपलाड़ समेत आसपास के कई ग्रामीण इलाकों में मौसम ने कहर बरपाया। आसमान पर छाए काले बादल शाम को बरस पड़े। जनजातीय क्षेत्र के कई इलाकों में तेज बारिश व तूफान के साथ भारी ओलावृष्टि होने से कृषि-बागवानी पूरी तरह नष्ट हो गई। इस कारण खेती किसानी पर निर्भर सैकड़ों ग्रामीण परिवारों की मेहनत पर पानी फिर गया।
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