बेड की आस में उखड़ रही मरीजों की सांस, सरकारी और निजी अस्‍पतालों में ऑक्‍सीजन बेड तक मयस्सर नहीं

सरकार कोरोना के इलाज को लेकर भले दावे करे पर हकीकत यह है कि उखड़ती सांसों के बीच मरीज बेड की तलाश में एक से दूसरे अस्पताल तक धक्के खा रहे हैं। व्यवस्था वेंटीलेटर पर जा चुकी है और बेड की जिद्दोजहद मरीजों की जिंदगी पर भारी पड़ रही है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Mon, 03 May 2021 09:05 AM (IST) Updated:Mon, 03 May 2021 09:05 AM (IST)
बेड की आस में उखड़ रही मरीजों की सांस, सरकारी और निजी अस्‍पतालों में ऑक्‍सीजन बेड तक मयस्सर नहीं
दून मेडिकल कॉलेज में महिला को इलाज के लिए लेकर जाते स्वास्थ विभाग के कर्मचारी व परिजन।

जागरण संवाददाता, देहरादून। राज्य सरकार कोरोना के इलाज को लेकर भले लाख दावे करे, पर हकीकत यह है कि उखड़ती सांसों के बीच मरीज बेड की तलाश में एक से दूसरे अस्पताल तक धक्के खा रहे हैं। व्यवस्था वेंटीलेटर पर जा चुकी है और बेड की जिद्दोजहद मरीजों की जिंदगी पर भारी पड़ रही है। 

उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर घातक होती जा रही है। इस महामारी की सबसे ज्यादा मार राजधानी झेल रही है। पिछले एक माह में यहां 35 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। स्थिति यह है कि मरीज को भर्ती कराने के लिए स्वजन एक से दूसरे अस्पताल तक भटक रहे हैं। आइसीयू छोड़ि‍ए, ऑक्सीजन बेड के लिए भी मारामारी मची हुई है। फिलहाल, न तो सरकारी अस्पतालों में बेड खाली हैं और न निजी अस्पतालों में ही। मरीज अस्पताल की इमरजेंसी में या अस्पताल के बाहर एंबुलेंस में बेड मिलने का इंतजार कर रहे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात किस कदर गंभीर हैं।  केस-एक: पिथौरागढ़ निवासी अमित पाटनी कोरोना से जूझ रही अपनी मां को इलाज के लिए दून लेकर आए थे। वह मां को ऑटो में बिठाकर 15-16 अस्पताल में भटके, पर हर अस्पताल ने गेट से ही लौटा दिया। थक-हारकर किसी पहचान वाले से फोन कराने के बाद एक निजी अस्पताल में कुर्सी पर बिठाकर उनकी मां को ऑक्सीजन उपलब्ध कराई गई। खाली होने पर बेड देने का आश्वासन मिला, लेकिन बेड मिलने तक काफी देर हो चुकी थी। केस-दो: प्रेमनगर निवासी राजेंद्र शर्मा की पत्नी कोरोना पॉजिटिव थीं। तबीयत बिगड़ने पर वह उन्हें प्रेमनगर अस्पताल ले गए, लेकिन वहां बेड नहीं मिल पाया। वह दून अस्पताल पहुंचे। वहां भी बेड खाली नहीं था। इसके बाद वह एक-एक कर तमाम निजी अस्पतालों के चक्कर काटते रहे, मगर कहीं भी बेड मयस्सर नहीं हुआ। अंत में राजेंद्र ने पत्नी को कोरोनेशन अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती कराया, लेकिन वह जीवन की जंग हार गईं। केस-तीन: पटेलनगर निवासी युवक की मां कोरोना पीड़ि‍त थीं। वह शनिवार रात अपनी मां को लेकर सरकारी व निजी अस्पतालों के चक्कर काटता रहा। कहीं भी बेड नहीं मिल पाया। किसी तरह दोस्तों ने ऑक्सीजन सिलिंडर की व्यवस्था की, लेकिन रविवार को सुबह उसकी मां का देहांत हो गया।

बेड बढ़ाए, पर इंतजाम नाकाफी 

दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में बेड की संख्या लगातार बढ़ाई जा रही है, लेकिन यह बढ़ोतरी नाकाफी साबित हो रही है। शुरुआत में अस्पताल में 380 बेड की व्यवस्था थी। इनमें 102 आइसीयू, 22 सामान्य और बाकी 256 ऑक्सीजन बेड थे। अब यहां 407 बेड हो गए हैं। इनमें 104 आइसीयू, 22 सामान्य और 281 ऑक्सीजन बेड हैं। दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना का कहना है कि गुंजाइश तलाशी जा रही है, जितना संभव होगा बेड बढ़ाए जाएंगे।

निजी अस्पतालों में भी मारामारी 

देहरादून जिले में कोरोना संक्रमितों की बढ़ती संख्या के कारण इंतजाम पटरी से उतर चुके हैं। निजी अस्पतालों की स्थिति भी दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय सरीखी है। हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट, मैक्स, श्रीमहंत इंदिरेश, कैलाश, अरिहंत, वेडमेड, सीएमआइ में कोविड के लिए एक भी आइसीयू और ऑक्सीजन बेड उपलब्ध नहीं है। इस कारण मरीज यहां-वहां धक्के खाने को मजबूर हैं। 

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