स्कूलों से कब दूर होगा अंधेरा, दो हजार से अधिक स्कूलों में विद्युत कनेक्शन नहीं

प्रदेश में दो हजार से अधिक स्कूल ऐसे हैं जिनमें विद्युत कनेक्शन नहीं हैं। इस कारण इन स्कूलों के छात्र कंप्यूटर शिक्षा व विज्ञान सीखने के लिए बुनियादी प्रयोग से वंचित चल रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 10 Jul 2020 10:53 AM (IST) Updated:Fri, 10 Jul 2020 10:18 PM (IST)
स्कूलों से कब दूर होगा अंधेरा, दो हजार से अधिक स्कूलों में विद्युत कनेक्शन नहीं
स्कूलों से कब दूर होगा अंधेरा, दो हजार से अधिक स्कूलों में विद्युत कनेक्शन नहीं

देहरादून, विकास गुसाईं। शिक्षा से विद्यार्थियों की जिंदगी में उजाला भरने वाले सरकारी स्कूलों में अभी तक अंधेरा पसरा हुआ है। प्रदेश के पर्वतीय व ग्रामीण क्षेत्रों में दो हजार से अधिक स्कूल ऐसे हैं, जिनमें विद्युत कनेक्शन नहीं हैं। विद्युत कनेक्शन न होने के कारण इन स्कूलों के छात्र कंप्यूटर शिक्षा व विज्ञान सीखने के लिए बुनियादी प्रयोग से भी वंचित चल रहे हैं। इन स्कूलों में बिजली पहुंचाने के लिए तमाम जतन किए गए। अफसोस, कोई भी अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए। इसका मुख्य कारण यहां की भौगोलिक स्थिति बताई गई। पर्वतीय क्षेत्रों में स्कूलों तक कनेक्शन पहुंचाने में विभाग काफी परेशानियां गिनाता रहा है। इस कारण यहां सोलर ऊर्जा पैनल लगाने का निर्णय लिया गया। स्कूल बंद होने पर यहां किसी के न रुकने के कारण बंदरों द्वारा इसे तोड़ने के खतरे गिनाए गए। इस सबके बावजूद अभी तक इसकी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं तलाशी जा सकी है।

ऐसे कैसे रुक पाएंगी सड़क दुर्घटनाएं

प्रदेश में बरसात शुरू होते ही सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ बढ़ जाता है। बावजूद इसके सड़कों के रखरखाव के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। स्थिति यह है कि प्रदेश में 2017 से अभी तक चिह्नित 1874 दुर्घटना संभावित स्थलों में से 1252 पर काम नहीं हुआ है। इनमें 300 स्थल ऐसे हैं, जहां 100 मीटर से गहरी खाई है और यहां क्रैश बैरियर भी नहीं लगे हैं। चारधाम ऑल वेदर रोड बनाने के दौरान कई स्थानों पर रास्ता तैयार करने के लिए पहाड़ काटे गए हैं। यहां नए डेंजर जोन बन रहे हैं। वजह यह कि नए क्षेत्र में कटान के बाद मिट्टी को ठहराव के लिए तीन साल का समय चाहिए होता है। सड़क दुर्घटना के बीते वर्ष के आंकड़ों पर ही नजर डालें तो 1352 सड़क दुर्घटनाओं में 867 लोगों की मौत हुई। दुर्घटना संभावित क्षेत्रों को ठीक करने में लापरवाही अब चिंता का सबब बन रही है।

कब पटरी पर आएंगी संचार सेवाएं

जमाना फोर जी का है। फाईव जी की दिशा में तेजी से कदम बढ़ रहे हैं। बावजूद इसके सामरिक दृष्टि से बेहद अहम उत्तराखंड के सीमांत गांव आज भी संचार सेवाओं से महरूम हैं। यहां इंटरनेट कनेक्टिविटी तो दूर, मोबाइल फोन पर बात करने तक के लिए ही पर्याप्त सिग्नल नहीं आते। सालों से सीमांत क्षेत्र के लोग संचार सेवाओं को दुरुस्त करने की मांग कर रहे हैं लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं। इसका नतीजा यह है कि नेपाल सीमा से लगे क्षेत्रों में उत्तराखंड के लोग बेहतर संचार सेवाओं के लिए नेपाल की मोबाइल कंपनियों के सिम का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह कदम देश की सुरक्षा के लिए भी घातक साबित हो सकता है। प्रदेश सरकार इन क्षेत्रों में बेहतर नेटवर्क पहुंचाने के लिए फाइबर केबल बिछाने की बात कह रही है लेकिन इसके लिए केंद्र की मदद की दरकार है।

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पौधारोपण नीति, अभी लंबा है इंतजार

उत्तराखंड में भले ही प्रतिवर्ष औसतन डेढ़ करोड़ से ज्यादा पौधे रोपे जा रहे हैं, लेकिन इनका सर्वाइवल रेट बहुत कम है। इसका मुख्य कारण प्रदेश की अपनी पौधारोपण नीति का न होना है। जो नीति प्रदेश में नाममात्र को लागू है, वह उत्तर प्रदेश के जमाने से ही चली आ रही है। इस नीति में प्रविधान है कि विभागीय पौधारोपण में रोपित पौधों की तीन साल तक देखभाल होगी। ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसका एक बड़ा कारण पर्याप्त बजट समेत अन्य संसाधनों का अभाव होना है। परिणामस्वरूप पौधे रोपने के बाद इन्हें अपने हाल पर छोड़ने की परिपाटी भारी पड़ रही है। राज्य गठन के 19 साल बाद भी पौधारोपण की नीति में बदलाव न होना अपने आप में आश्चर्यजनक है। नतीजतन, राज्य में पिछले 19 वर्षो में रोपे गए पौधों की बदौलत हरियाली का दायरा कहीं अधिक बढ़ना चाहिए था, लेकिन ऐसा कहीं नजर नहीं आता।

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