ठंडे बस्ते में : उत्‍तराखंड में नए जिलों के लिए नई सरकार पर नजर

अलग राज्य बनने पर उत्‍तराखंड में 13 जिले शामिल किए गए। कुछ वक्‍त बाद नए जिलों के गठन की बात उठी। उत्‍तराखंड में अब तक पांच सरकारें आ चुकी हैं पर नए जिलों का गठन नहीं हो पाया। अब आने वाली नई सरकार पर नजरें टिकी है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 22 Oct 2021 09:05 AM (IST) Updated:Fri, 22 Oct 2021 09:05 AM (IST)
ठंडे बस्ते में : उत्‍तराखंड में नए जिलों के लिए नई सरकार पर नजर
कई बार नए जिलों के गठन की बात कही गई। लेकिन नए जिलों का गठन नहीं हो पाया है।

विकास गुसाईं, देहरादून। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने पर इसमें 13 जिले शामिल किए गए। कुछ समय बाद विकास को रफ्तार देने के लिए नए जिलों के गठन की बात उठी। कहा गया कि छोटी प्रशासनिक इकाइयां बनने से विकास गति पकड़ेगा। प्रदेश में अब तक अंतरिम समेत पांच सरकारें आ चुकी हैं, लेकिन नए जिलों का गठन नहीं हो पाया है। ऐसे में नजर अब आने वाली नई सरकार पर टिक गई है। दरअसल, नए जिलों के गठन की घोषणा वर्ष 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने की। उन्होंने कोटद्वार, यमुनोत्री, रानीखेत और डीडीहाट को नया जिला बनाने की घोषणा की। इसका शासनादेश भी जारी हुआ। वर्ष 2012 में कांग्रेस सत्ता में आई तो उसने इस शासनादेश पर अमल करने की बजाय एक नई समिति बनाई, जिसने जिलों के गठन के मानकों को शिथिल करने का निर्णय लिया, लेकिन अब तक भी इस मामले में कोई फैसला नहीं हो पाया।

सरकारी स्कूलों को अभी नहीं मिले प्रधानाचार्य

उत्तराखंड अब तेजी से शिक्षा के बड़े केंद्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। दूसरे राज्यों से विद्यार्थी यहां पढ़ने आ रहे हैं। इसके उलट यहां सरकारी स्कूलों के हाल बहुत अच्छे नहीं हैं। स्थित यह है कि इंटरमीडिएट स्कूलों में प्रधानाचार्यों के पद बड़ी संख्या में रिक्त चल रहे हैं। सरकार ने तदर्थ पदोन्नति देकर इन पदों को भरने का प्रयास तो किया, लेकिन इसमें पूरी सफलता नहीं मिली। वर्ष 2018 में सरकार ने प्रधानाचार्यों के आधे पद सीधी भर्ती से भरने का निर्णय लिया। कहा गया कि शेष पद विभागीय पदोन्नति से भरे जाएंगे। शिक्षकों ने इसका विरोध किया। इस पर शासन ने निर्णय लिया कि सबकी सहमति के आधार पर एक उचित प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। इस पर कई बार मंथन हो चुका है, लेकिन फैसला होना बाकी है। स्थिति यह है कि इंटरमीडिएट स्कूलों में आज भी व्यवस्था के तौर पर प्रधानाचार्य तैनात हैं।

तो स्मार्ट सिटी में लगेंगे स्मार्ट मीटर

पानी के उपयोग में मितव्ययता बरतने को प्रदेश में सरकार ने स्मार्ट मीटर लगाने का निर्णय लिया। कहा गया कि जो जितना पानी इस्तेमाल करेगा, उसे उतना ही भुगतान भी करना होगा। जनजागरूकता के लिए जल ही जीवन है, जल संचय, जीवन संचय जैसे स्लोगन भी दिए गए। वर्ष 2016 में पानी के लिए स्मार्ट मीटर लगाने का खाका खींचा गया। इसके बाकायदा टेंडर तक आमंत्रित किए गए। योजना के अनुसार मीटर में डाटा डिजिटल रिकार्ड के रूप में रखा जाएगा। स्मार्ट मीटर का एक फायदा यह होगा कि इसकी रीडिंग लेने के लिए कर्मचारियों को घरों के भीतर नहीं जाना होगा। रिमोट से ही सारी रीडिंग मिल जाएगी। योजना परवान चढ़ती इससे पहले ही एशियन डेवलपमेंट बैंक के सहयोग से आमंत्रित किए गए टेंडर राजनीतिक कारणों से निरस्त हो गए। अब स्मार्ट सिटी का काम चल रहा है, तो स्मार्ट मीटर लगने की उम्मीद फिर बलवती हो रही है।

टूरिस्ट गाइड योजना पर नहीं बढ़े कदम

उत्तराखंड की नैसर्गिक सुंदरता बरबस ही पर्यटकों को आकर्षित करती रही है। यहां बड़ी संख्या में देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। बावजूद इसके प्रदेश के कई पर्यटन स्थल ऐसे हैं, जहां जानकारी के अभाव में पर्यटक नहीं पहुंच पाते। इन परिस्थितियों में टूरिस्ट गाइड की जरूरत महसूस होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने स्थानीय युवाओं को टूरिस्ट गाइड के रूप में प्रशिक्षित करने का निर्णय लिया। कहा गया कि इससे युवाओं को रोजगार मिलेगा और वे प्रदेश से बाहर नहीं जाएंगे। इससे पलायन पर भी रोक लग सकेगी। योजना के अंतर्गत कौशल विकास विभाग के माध्यम से प्रशिक्षण देने की व्यवस्था भी की गई। प्रदेश में पर्यटन ने रफ्तार तो पकड़ी मगर टूरिस्ट गाइड के प्रशिक्षण के लिए बनाई गई योजना रफ्तार नहीं पकड़ पाई। बीते वर्ष कोरोना के कारण इस योजना पर कोई काम नहीं हो पाया। अब योजना बिसरा दी गई है।

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