ठंडे बस्ते में : निजी अस्पतालों की मनमानी के बीच क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट की जरूरत

कोरोना महामारी के दौर में निजी अस्पतालों की मनमानी के बीच क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट एक बार फिर चर्चा में है। अफसोस यह कि प्रदेश में वर्ष 2015 में पारित होने के बाद इस एक्ट को निजी अस्पतालों में लागू नहीं किया जा सका है। इसका अस्तित्व कागजों पर ही है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 01:12 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 01:12 PM (IST)
ठंडे बस्ते में : निजी अस्पतालों की मनमानी के बीच क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट की जरूरत
कोरोना महामारी के दौर में निजी अस्पतालों की मनमानी के बीच क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट एक बार फिर चर्चा में है।

विकास गुसाईं, देहरादून। कोरोना महामारी के दौर में निजी अस्पतालों की मनमानी के बीच क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट एक बार फिर चर्चा में है। अफसोस यह कि प्रदेश में वर्ष 2015 में पारित होने के बाद भी इस एक्ट को निजी अस्पतालों में लागू नहीं किया जा सका है। इसका अस्तित्व कागजों पर ही है। लागू करने से पहले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) इसमें संशोधन चाहता है। इस मसले पर दोनों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन हल नहीं निकल पाया। इस एक्ट का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि इसमें कई सख्त प्रविधान रखे गए हैं। निजी अस्पताल यदि मौजूदा एक्ट को अपनाते हैं तो कई मामलों में उनकी सीधी जिम्मेदारी तय हो जाएगी। निजी अस्पतालों, डाक्टरों व नर्सिंग होम की मनमानी पर अंकुश लगेगा, जबकि आम जनता के लिए स्वास्थ्य सेवाएं और ज्यादा सुलभ व सस्ती हो जाएंगी। कोरोना काल में इसकी सख्त जरूरत महसूस हो रही है।

लैंड बैंक बिना निवेश मुश्किल

राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश बनाने की बात चलती रही है। इसके लिए सरकारों ने पर्यटन से जुड़ी अवस्थापना सुविधाओं को विकसित करने का निर्णय लिया, कई योजनाएं भी बनीं। एक निर्णय यह लिया गया कि सरकार यहां निवेशकों को जमीन मुहैया कराएगी, ताकि वे पर्यटन के क्षेत्र में निवेश करें। इसके लिए पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में लैंड बैंक बनाने की योजना बनी। इसके लिए कैबिनेट के जरिये उत्तराखंड पर्यटन भूमि एकत्रीकरण एवं क्रियान्वयन नियमावली को मंजूरी दी गई। नियमावली में यह प्रविधान किया गया कि लैंड बैंक में निजी व सरकारी, दोनों ही तरह की भूमि को शामिल किया जाएगा। निजी भूमि की खरीद के लिए बाकायदा कोष भी बना। इसमें कुछ पैसा टोकन मनी के रूप में रखा गया। कहा गया कि इससे नए टोल, रिजार्ट, रोपवे आदि बनाने में मदद मिलेगी। चार वर्ष पूर्व गठित यह कोष जस का तस है।

औद्योगिक कारीडोर पर अभी अड़ंगा

प्रदेश में औद्योगिक गतिविधियां को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2019 में निवेश सम्मेलन में खूब बातें हुईं। निवेशकों को सुविधाएं देने को तमाम योजनाएं बनाने पर चर्चा हुई, लेकिन अधिकांश अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाई हैं। इनमें अमृतसर-कोलकाता कारीडोर योजना भी बेहद अहम योजना है। यह कारीडोर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार व झारखंड होते हुए कोलकाता तक पहुंचेगा। इस योजना में उक्त राज्यों के 21 से अधिक शहर जोड़े जाने प्रस्तावित हैं। विशेष यह कि कारीडोर मार्ग के 200 किमी के दायरे में औद्योगिक क्षेत्र भी विकसित होने हैं। उत्तराखंड ने इसके लिए ऊधमसिंह नगर को चिह्नित किया। जिले के खुरपिया व पराग फार्म को इसमें लिया। नियमानुसार औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए 4500 एकड़ जमीन की जरूरत है। चिह्नित स्थान पर केवल 2500 हेक्टेयर जमीन है। ऐसे में प्रदेश सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर इसमें कुछ छूट देने का अनुरोध किया है।

योजना बदली और लाभार्थी वंचित

प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही कन्याओं के लिए चलाई जाने वाली योजना का नाम बदल दिया गया। अमूमन नाम बदलने से योजना में बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता, लेकिन इस बार ऐसा हुआ। पात्र 39 हजार से अधिक बालिकाएं इसका लाभ लेने से वंचित रह गईं। दरअसल, 2017 में नई सरकार बनने के बाद महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग ने कन्याओं के लिए संचालित की जा रही विभिन्न योजनाओं को एकीकृत करने का निर्णय लेते हुए नंदा गौरा के नाम से नई योजना शुरू की। इससे पहले इस योजना का नाम कन्या हमारा अभिमान योजना था। इस योजना के तहत कन्या को जन्म के समय 5000 ओर एक वर्ष बाद 10000 रुपये दिए जाने का प्रविधान था। जब योजना बदली उस समय वर्ष 2015-16 और 2016-17 में 39000 चयनित बालिकाओं को धनराशि जारी की जानी थी। नाम बदलने के बाद इन आवेदनों को दरकिनार कर दिया गया।

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