कुलपति ने पलटे मृत्युंजय के आदेश

जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड आयुर्वेद विवि फिर एक बार सुर्खियों में है। इस बार मामला पूर्व

By JagranEdited By: Publish:Thu, 26 Apr 2018 09:54 PM (IST) Updated:Thu, 26 Apr 2018 09:54 PM (IST)
कुलपति ने पलटे मृत्युंजय के आदेश
कुलपति ने पलटे मृत्युंजय के आदेश

जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड आयुर्वेद विवि फिर एक बार सुर्खियों में है। इस बार मामला पूर्व कुलसचिव डॉ. मृत्युंजय मिश्रा के विभिन्न आदेश व शासन को भेजे पत्रों से जुड़ा है। दो दिन के लिए कुलसचिव रहे मिश्रा ने हटने से पहले विवि में खरीद, नियुक्ति आदि पर सवाल उठा इसकी जाच की सिफारिश शासन से की थी। गुरुवार को विवि के कुलपति ने उनकी ओर से जारी तमाम पत्र व आदेश निरस्त कर दिए।

दिल्ली से स्थानिक आयुक्त के प्रभार से मुक्त कर शासन ने डॉ. मृत्युंजय मिश्रा को आयुर्वेद विवि के कुलसचिव पद पर नियुक्त किया था। शासन से नियुक्ति पत्र प्राप्त कर वह पुलिस की मौजूदगी में विवि पहुंचे और एकतरफा कार्यभार ग्रहण कर लिया। इसके बाद अगले ही दिन उन्होंने आयुर्वेद विवि में की गई नियुक्तियों, परीक्षा संबंधी कार्य और बीते वित्तीय वर्ष में किए गए खरीद-भुगतान जैसे मामलों की उच्चस्तरीय जाच की माग राजभवन और शासन से की। चार पृष्ठों की इस रिपोर्ट में नियुक्तियों से लेकर खरीद और उप कुलसचिव की निुयक्ति पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। इसके अगले ही दिन उन्हें कुलसचिव पद से हटा कर सचिवालय में अटैच कर दिया गया। अब विवि के कुलपति प्रो. अभिमन्यु कुमार ने आदेश जारी कर कहा है कि डॉ. मृत्युंजय मिश्रा के तमाम पत्र व आदेश निरस्त किए जाते हैं। कुलपति प्रो. अभिमन्यु कुमार ने बताया कि जो भी आख्या या पत्र शासन या राजभवन को जाता है, उसमें कुलपति का अनुमोदन चाहिए होता है। लेकिन, इस प्रक्रिया में ऐसा नहीं किया गया। दूसरा जब विवि ने उन्हें कुलसचिव का चार्ज ही नहीं दिया तो वह कैसे तमाम आदेश दे सकते हैं। वहीं, डॉ. मृत्युंजय मिश्रा का कहना है कि उन्होंने शासन और राजभवन को जाच संबंधी पत्र इसलिए भेजा, क्योंकि तमाम मामलों में घपलों का संदेह था। अब इसे कुलपति ने खारिज किया है तो मामला और ज्यादा संदेहास्पद हो गया है। उन्होंने कहा कि यदि जाच की जाती तो मामलों की न सिर्फ संदेहास्पद स्थिति साफ होती, बल्कि विवि की कार्यप्रणाली भी पारदर्शी रहती।

प्रभारी कुलसचिव को कर दिया था कार्यमुक्त: पूर्व कुलसचिव डॉ. मृत्युंजय मिश्रा ने प्रभारी कुलसचिव डॉ. राजेश अधाना की नियुक्ति पर भी सवाल खड़े किए थे। उनकी नियुक्ति प्रक्रिया को दूषित बताकर डॉ. अधाना को कार्यमुक्त कर दिया था। जिस पर कुलपति ने कहा था कि मिश्रा को कुलसचिव का कार्यभार ही नहीं दिया गया। ऐसे में इस आदेश को कोई मायने नहीं हैं।

चिकित्साधिकारियों को असंबद्ध करने को भी भेजा था पत्र

कभी चिकित्साधिकारियों की संबद्धता को जायज ठहराने वाले पूर्व कुलसचिव डॉ. मृत्युंजय मिश्रा को अब उनकी मौजूदगी भी अखरने लगी है। दरअसल, विवि के मुख्य परिसर व ऋषिकुल-गुरुकुल की मान्यता बचाने के लिए प्रदेशभर से तमाम चिकित्साधिकारी फैकल्टी के तौर पर संबद्ध किए गए हैं। अपने दो दिन के कार्यकाल में मिश्रा ने शासन को पत्र भेज कहा है कि इनकी अब आवश्यकता नहीं है। फैकल्टी के कई पद भरे जा चुके हैं और कुछ की प्रक्रिया चल रही है। ताज्जुब इस बात का है कि जिनकी कभी उन्हें स्वयं जरूरत थी, अब उन्हीं की संबद्धता को वह तमाम तर्क देकर गलत ठहरा रहे हैं।

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