खनन के भंडारण पर निर्धारित फीस न लेने से 3.18 करोड़ का नुकसान

तीन खनिज भंडारणकर्ताओं से निर्धारित शुल्क न लेने और इसकी वसूली न किए जाने से 3.18 करोड़ के राजस्व का नुकसान किया गया है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Wed, 11 Dec 2019 04:54 PM (IST) Updated:Wed, 11 Dec 2019 04:54 PM (IST)
खनन के भंडारण पर निर्धारित फीस न लेने से 3.18 करोड़ का नुकसान
खनन के भंडारण पर निर्धारित फीस न लेने से 3.18 करोड़ का नुकसान

देहरादून, राज्य ब्यूरो। खनन विभाग द्वारा तीन खनिज भंडारणकर्ताओं से निर्धारित शुल्क न लेने और इसकी वसूली न किए जाने से 3.18 करोड़ के राजस्व का नुकसान किया गया है। वहीं, स्टोन क्रशर मालिकों से विनियमितीकरण शुल्क और नवीनीकरण शुल्क की वसूली न करने से सरकार को 1.86 करोड़ की हानि हुई। 

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कैग)की रिपोर्ट में खनन विभाग की इस लापरवाही का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शासन ने खनन के खनिज भंडारण के लिए नियत आवेदन शुल्क तय किया था। कैग ने जब भंडारणकर्ताओं के दस्तावेजों की जांच की तो यह पाया कि हरिद्वार के एक प्रकरण में एक आवेदक से 32 हजार घनमीटर भंडारण के लिए 19 लाख रुपये लेना था, जिसे जमा करने का कोई प्रमाण नहीं मिला। इसी तरह हरिद्वार के ही एक अन्य मामले में 2.50 लाख घनमीटर भंडारण के लिए 1.50 करोड़ रुपये देय था, जिसे जमा करने का भी कोई दस्तावेज नहीं मिला। 

पौड़ी जनपद के एक मामले में आवेदक ने तीन लाख घनमीटर भंडारण का आवेदन किया और जमा एक लाख रुपये किए, जबकि इसके लिए 1.50 करोड़ रुपये जमा करने थे। इन तीनों मामलों में विभाग को 3.18 करोड़ का नुकसान हुआ। स्टोन क्रशर मामले में कैग ने पाया कि क्रशर प्लांट विनियमितीकरण के 26 मामलों में न तो 1.21 करोड़ का शुल्क जमा किया गया और न ही इन्होंने वार्षिक नवीनीकरण शुल्क जमा कराया। कैग द्वारा मामला उठाने पर देहरादून और हल्द्वानी में तीन स्टोन क्रशर मालिकों से 12.25 लाख विनियमितीकरण शुल्क और 6.75 लाख वार्षिक नवीनीकरण शुल्क वसूला गया। शेष मामलों में 1.67 करोड़ के शुल्क की प्राप्ति नहीं की गई थी। कैग ने इस मामले से शासन को अवगत कराया था जिस पर अभी तक जवाब नहीं मिला है। 

विलंब के घुन से वन विभाग को करोड़ों की चपत 

वन महकमा विभिन्न कार्ययोजनाओं की तैयारियों में विलंब की प्रणालीगत समस्या से जूझ रहा है। कैग रिपोर्ट में ये बात कही गई है। रिपोर्ट में उल्लेख है कि 24 कार्ययोजनाओं में से विभाग किसी को भी समय पर तैयार नहीं कर पाया। विलंब की समस्या से निजात पाने को राष्ट्रीय कार्ययोजना संहिता-2014 में निर्दिष्ट स्थायी कार्ययोजना इकाइयां भी स्थापित नहीं की गई। विलंब के चलते करोड़ों की चपत लगी है। 

यह भी पढ़ें: राजाजी टाइगर रिजर्व के ईको सेंसिटिव जोन में खनन की कवायद, पढ़िए पूरी खबर

रिपोर्ट के अनुसार कार्ययोजना की तैयारी व अनुमोदन में विलंब के कारण दो प्रभागों में पेड़ कटान की गतिविधि बंद करनी पड़ी। इससे 75.37 करोड़ की रॉयल्टी नहीं मिल पाई। साल वनों में आवरण खोलने की प्रकिया न करने के कारण विभाग 330.12 करोड़ का राजस्व प्राप्त नहीं कर पाया। दो प्रभागों में वृक्ष पातन को पेड़ चिह्नित न करने के कारण 27.90 करोड़ की रॉयल्टी से हाथ धोना पड़ा। 

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में 65 खनन पट्टों पर मुहर लगने का रास्ता साफ

यही नहीं, वन विकास निगम द्वारा पेड़ों का कटान न किए जाने से 14.28 करोड़ की रॉयल्टी नहीं मिली। 2013 से 2018 की अवधि में यूकेलिप्टस की रॉयल्टी के त्रुटिपूर्ण निर्धारण से 31.39 करोड़ की हानि हुई। रिपोर्ट के अनुसार बदरीनाथ और टिहरी प्रभागों में लीसा विदोहन की समय सीमा का पालन न करने से 2.39 करोड़, योग्य चीड़ वृक्षों को लीसा उत्पादन कार्ययोजना में शामिल न करने से 2.47 करोड़, उपखनिज से त्रुटिपूर्ण दरों पर अभिवहन शुल्क वसूलने के कारण 72.27 लाख की हानि हुई। 

यह भी पढ़ें: हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में गंगा में नहीं होगा खनन, पढ़िए पूरी खबर

chat bot
आपका साथी