उत्तराखंड में 77 करोड़ से बुझेगी जंगलों की प्यास, रोजगार के अवसर भी होंगे सृजित
प्रतिकरात्मक वन रोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) के तहत वनों के पुनरोत्पादन को भूमि एवं मृदा संरक्षण कार्यों के लिए अनुमोदित 77.67 करोड़ की धनराशि जल संरक्षण से संबंधित कार्यों पर खर्च की जाएगी। इसका खाका खींच लिया गया है।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों में इंद्रदेव की मेहरबानी से भले ही जंगलों की आग पूरी तरह बुझ गई हो, लेकिन वन महकमे ने इससे सबक लेते हुए वन क्षेत्रों में जल संरक्षण पर खास फोकस करने की ठानी है। प्रतिकरात्मक वन रोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) के तहत वनों के पुनरोत्पादन को भूमि एवं मृदा संरक्षण कार्यों के लिए अनुमोदित 77.67 करोड़ की धनराशि जल संरक्षण से संबंधित कार्यों पर खर्च की जाएगी। इसका खाका खींच लिया गया है। जनसहभागिता से होने वाले इन कार्यों में आठ से 10 हजार व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में यूं तो हर साल ही फायर सीजन, यानी 15 फरवरी से मानसून के आगमन तक वनों में आग धधकती है, मगर इस मर्तबा तस्वीर दूसरी रही। पिछले साल अक्टूबर से जंगलों के सुलगने का क्रम शुरू हुआ, जो अब जाकर बारिश व बर्फबारी होने पर थमा है। सर्दियों में जंगलों में आग के कारणों की पड़ताल हुई तो बात सामने आई कि इसकी मुख्य वजह वन क्षेत्रों में नमी का बेहद कम होना है। इसे देखते हुए जंगलों में जल संरक्षण के उपायों पर खास जोर दिया जा रहा था। अब वन महकमा इसे धरातल पर उतारने जा रहा है।
वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी के मुताबिक कैंपा से मिली राशि से वन क्षेत्रों में खाल-चाल, चेकडैम, कंटूर ट्रैंच, बड़े तालाब, नौले, धारे, कुंड, ताल जैसे जलस्रोतों का पुनर्जीवीकरण, जल संरक्षण में सहायक पौधों का रोपण, परकुलेशन टैंक जैसे कार्य कराए जाएंगे। इससे जल संरक्षण व वनों के पुनरोत्पादन के साथ ही आगामी वर्ष में वनों की आग से सुरक्षा भी हो सकेगी। उन्होंने कहा कि ये सभी कार्य स्थानीय निवासियों के माध्यम से कराए जाएंगे, जिससे उन्हें रोजगार भी उपलब्ध होगा।
जल संरक्षण को ये होंगे कार्य
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