लोस चुनाव की बिसात पर लड़ी गई निकाय की जंग
देहरादून प्रदेश में अगले वर्ष 2019 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव की जंग खासी रोचक होने जा रही है। 84 शहरी निकायों में छोटी सरकार के गठन के लिए हुए चुनावी दंगल के नतीजों के रुझान यही कुछ बयां कर रहे हैं।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून
प्रदेश में अगले वर्ष 2019 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव की जंग खासी रोचक होने जा रही है। 84 शहरी निकायों में छोटी सरकार के गठन के लिए हुए चुनावी दंगल के नतीजों के रुझान यही कुछ बयां कर रहे हैं। अधिकतर निकायों में सत्तारूढ़ दल भाजपा ने दबदबा कायम रखा है, लेकिन कांग्रेस ने भी प्रदेश की सियासत पर वापस पकड़ बनाने के संकेत दे दिए हैं। दोनों ही दलों ने लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर नगर निकायों की जंग की रणनीति को अंजाम दिया।
प्रदेश में सात नगर निगमों और 39 नगर पालिका परिषदों व 38 नगर पंचायतों के लिए हुए चुनाव को लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर लिया जा रहा है। इस वजह से दोनों ही दल दबाव में दिखाई दिए। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव में भाजपा ने तीन चौथाई से ज्यादा बहुमत लेकर कांग्रेस को तकरीबन हाशिये पर धकेलने में कसर नहीं छोड़ी थी। भाजपा पर निकाय चुनाव में भी प्रचंड बहुमत का यही प्रदर्शन दोहराने का दबाव तो कांग्रेस के सामने नगर निकाय चुनाव के जरिये बेहतर प्रदर्शन और पुरानी फॉर्म वापस पाने की चुनौती रही है। निकाय चुनाव की जंग को दोनों ही दलों ने लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बिछाई गई बिसात पर लड़ा। इस लिहाज से निकाय चुनाव के नतीजे ने दोनों ही राष्ट्रीय दलों भाजपा और कांग्रेस के लिए ढाढ़स बंधाने वाले माने जा रहे हैं। इसमें भाजपा ने शहरों में बनने वाली छोटी सरकारों पर अपना दखल बनाए रखा है। नगर निगमों से लेकर पंचायतों तक भाजपा ने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पर बढ़त बनाए रखी है। भाजपा इसे लोकसभा चुनाव के लिए बढ़त का मनोविज्ञान मान रही है।
टक्कर के लिए जमीन तैयार
वहीं निकाय चुनावों की लड़ाई के लिए कांग्रेस करो या मरो के रूप में रही है। पार्टी रणनीति साफ है, शहरों में गठित होने वाली छोटी सरकारों के जरिये सूबे की सियासत में दमदार मौजूदगी का अहसास कराना। निकाय चुनाव में पार्टी जनता के बीच अपनी पकड़ जितना मजबूत साबित करेगी, भविष्य में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए यह प्राणवायु का काम करेगा। इस रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरी कांग्रेस ने नगर निगमों में पहली बार दमदार मौजूदगी का अहसास कराया है। चुनाव नतीजे गवाही दे रहे हैं कि सातों निगमों में कांग्रेस ने भाजपा को कांटे की टक्कर के लिए मजबूर कर दिया। कांग्रेस अपने इस प्रदर्शन के आधार पर ये मानकर चल रही है कि शहरों में दबदबे की इस जंग में उसके प्रदर्शन से लोकसभा चुनाव में उसका मनोबल काफी बढ़ा है।
टिकट में जनप्रतिनिधियों को दी थी तरजीह
दोनों ही दलों ने संगठन के साथ निकाय चुनाव में विधायकों के साथ ही विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों को भी झोंका। पहले निकाय चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में विधानसभावार प्रदर्शन को निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा से जोड़ने की रणनीति कारगर रही। टिकट तय करने में विधायक, मंत्री, पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक से लेकर सांसद व पूर्व सांसद की पसंद और नापसंद को तरजीह दी गई। इसके बाद पसंदीदा उम्मीदवारों को जिताने के लिए जनप्रतिनिधि अंतिम दौर तक खुद मशक्कत में जुटे रहे।