ऋषिकेश में गंगा तट पर प्रवासी परिंदे डालने लगे डेरा, आसन बैराज में भी बढ़ी संख्या
राजाजी की खूबसूरत वादियां और नदी तट प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा प्रवास स्थल है। इस बार देर से ही पर पार्क क्षेत्र में गंगा नदी का तट प्रवासी पक्षियों से गुलजार होने लगा है।
देहरादून, जेएनएन। नैसर्गिक सुंदरता और वन्यजीवों की मौजूदगी के लिए मशहूर राजाजी टाइगर रिजर्व की खूबसूरत वादियां और नदी तट प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा प्रवास स्थल है। इस बार देर से ही सही लेकिन पार्क क्षेत्र में गंगा नदी का तट प्रवासी पक्षियों की आवाजाही से गुलजार होने लगा है। यहां कई जगहों पर प्रवासी पक्षियों ने डेरा जमा लिया है। इससे राजाजी के पर्यटन व्यवसाय में नए पंख लगने की उम्मीद बढ़ गई है।
राजाजी टाइगर रिजर्व की मोतीचूर, गौहरी और चीला रेंज के बीच नदी तट पर प्रवासी पक्षियों का बसेरा शुरू हो गया है। कई जगहों पर मौजूद इन पक्षियों को पूरे दिन पानी में जल क्रीड़ा और तट पर विश्राम करते देख सकते हैं। हालांकि पिछले सालों के मुकाबले अभी तक यह संख्या काफी कम है। इससे पक्षी प्रेमी चिंतित भी है। जानकारों का कहना है कि इसकी वजह गंगा नदी में जलस्तर कम होना और मौसम में अनापेक्षित बदलाव हो सकता है। नंवबर में अधिक सर्दी नहीं पड़ी।
इन पक्षियों को गहरे पानी वाली जगह अधिक पसंद होती हैं और कई जगहों पर बांध बनने से नदियों का प्राकृतिक बहाव स्थल प्रभावित हुआ है। वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य एशिया से पक्षी तो आए हैं, लेकिन इस बार गंगा किनारे इनकी संख्या कम है। इसका कारण नदी में पानी का कम होना हो सकता है और इस वजह से पक्षी आस-पास की दूसरी जगहों को चले जाते हैं। आसन बैराज व देहरादून की दूसरी जगहों पर पक्षी काफी संख्या में मौजूद हैं।
हजारों किलोमीटर की यात्रा करते हैं परिंद
पंक्षी, नदियां और हवा के झोंके सरहद इन्हें नहीं रोक सकती, यह ध्येय वाक्य प्रचलित भी है। प्रतिवर्ष शीतकाल में मध्य एशिया से विभिन्न प्रजाति के यह पक्षी हजारों किलोमीटर की यात्रा तय कर राजाजी टाइगर रिजर्व में प्रवास के लिए आते हैं। नंवबर से लेकर करीब मार्च महीने तक यहां रहते हैं। इनमें चकोर, वॉल क्रीपर, सैंड पाइपर, जलकाग, सुर्खाब, साइबेरियन पक्षी मुख्य हैं। पार्क क्षेत्र में ऋषिकेश से लेकर हरिद्वार तक गंगा व दूसरी सहायक नदियों के किनारों पर प्रवास करते हैं।
वहीं, वन्यजीव प्रतिपालक दिनेश प्रसाद उनियाल का कहना है कि प्रवासी परिंदों को गहरा पानी, नम भूमि और शीत ऋतु पसन्द है। गंगा किनारे यह बड़ी संख्या में आते हैं। जैसे-जैसे मौसम सर्द होगा इन परिंदों के आने का सिलसिला भी बढ़ता जाएगा।
आसन वेटलैंड में प्रवासी परिदों संख्या पहुंची 5000
देश के पहले कंजरवेशन रिजर्व आसन वेटलैंड में प्रवास पर आए परिंदों की संख्या बढ़कर पांच हजार हो गई है। आसन झील में हर तरफ परिंदे ही परिंदे नजर आ रहे हैं, जिन्हें पर्यटक बोटिंग के साथ कैमरों में कैद कर रहे हैं। साथ ही जीएमवीएन के आसन पर्यटन स्थल पर भी बर्ड वाचिंग के लिए टावर बनाया गया है।
पक्षी प्रेमियों के लिए विशेष आकर्षण के केंद्र प्लास फिश इगल ने अभी तक अपना आशियाना नहीं बनाया है। ईगल फरवरी में अपना आशियाना तैयार करते हैं, ईगल को सेमल का पेड़ ही आशियाना बनाने के लिए उपयुक्त लगता है। वर्तमान में 31 प्रजातियों के पलास फिश ईगल, रुडी शेलडक, कामन पोचार्ड, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, फ्यूरीजीनस पोचार्ड, टफ्ड डक, गैडवाल, यूरोशियन विजन, मैलार्ड, स्पाट बिल्ड डक, नार्थन शावलर, नार्थन पिनटेल्स, कामन कूट, कामन टील, कामन मोरहेन, लिटिल ग्रेब, रेड नेप्ड इबिश, लिटिल कारमोरेंट, इंडियन कारमोरेंट, ग्रेट कारमोरेंट, लिटिल इग्रेट, पर्पल हेरोन, ग्रे हेरोन, बार हेडेड गीज, ग्रे लेग गीज, रेड बिल्ड लिओथ्रिक्स, रस्टी टेल्ड फ्लाई केचर, माउंटेन हॉक ईगल, बफ्फ बार्ड वार्बलर, रिफोस गोरगेटेड फ्लाईकेचर के करीब 5000 परिंदे उत्तराखंड के मेहमान बन चुके हैं।
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इसके अलावा अन्य प्रजातियों के परिंदे भी ठंड बढ़ने के साथ ही प्रवास पर आ जाएंगे। चकराता वन प्रभाग की टीम ने प्रवास पर आए परिंदों की गणना की। सोने से दमकते पंखों वाले रुडी शेलडक यानि सुर्खाब पक्षी सबसे ज्यादा संख्या में है। चकराता वन प्रभाग के डीएफओ दीप चंद आर्य के निर्देश पर आसन रेंजर जवाहर सिंह तोमर ने परिंदों की सुरक्षा को रात दिन की गश्त भी तेज कर दी है।
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