यहां छात्रों और शिक्षकों के लिए तरस रहे हैं नवोदय विद्यालय

उत्तराखंड में नवोदय विद्यालयों के हालात बेहद बुरे हैं। यहां न तो पढ़ने के लिए छात्रों की संख्या पर्याप्त है और न ही पढ़ाने के लिए शिक्षकों की।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Mon, 24 Sep 2018 04:25 PM (IST) Updated:Mon, 24 Sep 2018 04:25 PM (IST)
यहां छात्रों और शिक्षकों के लिए तरस रहे हैं नवोदय विद्यालय
यहां छात्रों और शिक्षकों के लिए तरस रहे हैं नवोदय विद्यालय

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: प्रदेश में प्राथमिक से लेकर माध्यमिक तक राजकीय विद्यालय छात्रसंख्या के संकट से गुजर रहे हैं, शिक्षा के उत्कृष्ट केंद्र के रूप में स्थापित राजीव गांधी नवोदय विद्यालय के हालात भी बुरे हैं। राज्य के 13 जिलों में नवोदय विद्यालयों में भी छात्रों की 37 फीसद सीटें खाली पड़ी हैं। वहीं शिक्षा की गुणवत्ता की हकीकत देखिए, शिक्षकों के 624 पदों में 55 फीसद से ज्यादा रिक्त हैं। बदहाली का आलम ये है कि घटती छात्रसंख्या के चलते कई पर्वतीय जिलों के नवोदय विद्यालयों को नजदीकी या देहरादून के नवोदय विद्यालय में संचालित करने की योजना पर सरकार विचार कर रही है। 

प्रदेश के नवोदय विद्यालय भी राजकीय माध्यमिक विद्यालयों की तरह ही दुर्दशा के शिकार हैं। हालांकि इन पर होने वाला खर्च अपेक्षाकृत काफी ज्यादा है। स्कूल भवन, चाहरदीवारी, आवासीय व भोजन व्यवस्था, कक्षों में बैठने के लिए फर्नीचर, शौचालय समेत भौतिक संसाधनों की दौड़ में नवोदय विद्यालय अन्य सरकारी विद्यालयों से कहीं आगे हैं। आश्चर्यजनक ये है कि इन विद्यालयों में भी छात्रों के लिए तय सीटें भरने में शिक्षा महकमे को कामयाबी नहीं मिल रही है। 13 राजीव गांधी नवोदय विद्यालयों में कुल स्वीकृत छात्रसंख्या 4410 है, जबकि सिर्फ 2757 यानी 62.51 फीसद सीटें ही भरी हैं। शेष रिक्त हैं। प्रवेश परीक्षा के बाद पर्याप्त छात्र नहीं मिल पा रहे हैं। 

आम अभिभावक इन विद्यालयों पर पब्लिक स्कूलों को तरजीह दे रहा है। छात्रसंख्या के ये सरकारी आंकड़े खुद यही तस्दीक कर रहे हैं। परीक्षा में शामिल होने से लेकर उसमें कामयाब होने वाले छात्रों का आंकड़ा इस सच को बेपर्दा कर रहा है। दूरदराज जिलों पिथौरागढ़, चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, बागेश्वर में छात्रसंख्या काफी कम है, लेकिन अन्य जिलों में भी स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। एक भी जिला ऐसा नहीं है, जहां स्वीकृत छात्रसंख्या शत-प्रतिशत पूर्ण हो। देहरादून, नैनीताल और हरिद्वार जैसे जिलों में भी सौ फीसद सीटें भरी नहीं जा सकी हैं। 

इन विद्यालयों में शिक्षकों की सीधी नियुक्ति के बजाय प्रतिनियुक्ति पर तैनाती का प्रावधान है। इसके बावजूद शिक्षकों के पद बड़ी संख्या में रिक्त हैं। उक्त 13 नवोदय विद्यालयों में शिक्षकों के कुल 624 पद हैं। इनमें 347 शिक्षक ही कार्यरत हैं। इनमें प्रतिनियुक्ति पर सिर्फ 133 ही शिक्षक हैं। संविदा व मानदेय पर 214 शिक्षकों से काम लिया जा रहा है। शिक्षकों की कमी पिछले 15 वर्षों से बनी हुई है।

स्पष्ट है कि जब नवोदय विद्यालयों में पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक ही नहीं हैं तो शिक्षा की गुणवत्ता की अपेक्षा किसकदर की जा सकती है। शिक्षक व अन्य स्टाफ न होने की वजह से कई राजीव गांधी नवोदय विद्यालयों के छात्रों को नजदीकी विद्यालयों में शिफ्ट करने की नौबत है। संपर्क करने पर शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि नवोदय विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उत्तराखंड आवासीय विद्यालय समिति के तहत राज्य प्रकोष्ठ का गठन किया गया है। स्वीकृत पदों पर स्थायी नियुक्ति की शीघ्र व्यवस्था की जाएगी। 

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