बड़े दबाव झेलने लायक नहीं पर्यटन नगरी मसूरी की जमीन

पर्यटन नगरी मसूरी की जमीन बड़े निर्माण का दबाव झेलने लायक नहीं है। यहां की 15 फीसद जमीन भूस्खलन के लिहाज से अति संवेदनशील जोन में है।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Tue, 01 Sep 2020 05:45 PM (IST) Updated:Tue, 01 Sep 2020 06:05 PM (IST)
बड़े दबाव झेलने लायक नहीं पर्यटन नगरी मसूरी की जमीन
बड़े दबाव झेलने लायक नहीं पर्यटन नगरी मसूरी की जमीन

देहरादून, जेएनएन। पर्यटन नगरी मसूरी की जमीन बड़े निर्माण का दबाव झेलने लायक नहीं है। यहां की 15 फीसद जमीन भूस्खलन के लिहाज से अति संवेदनशील जोन में है। शेष भूभाग भी संवेदनशील, मध्यम संवेदनशील व कम संवेदनशील की श्रेणी में है। यहीं की जमीन की क्षमता का आकलन वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के अध्ययन में किया गया। 

वाडिया संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. विक्रम गुप्ता ने बताया कि मसूरी क्षेत्र की जमीन की क्षमता का आकलन करने के लिए करीब 84 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर अध्ययन किया गया। इस दौरान सेटेलाइट मैपिंग के अलावा धरातल पर भी स्थिति का आकलन किया। पता चला कि भूस्खलन के लिहाज से अति संवेदनशील 15 फीसद भूभाग के अलावा 29 फीसद भाग मध्यम संवेदनशील, जबकि 56 फीसद हिस्सा कम संवेदनशील है। हालांकि, भूस्खलन का खतरा अधिक व कम रूप में हर जगह बना है। इसकी मुख्य वजह यह पाई गई कि मसूरी के पहाड़ क्रोल लाइम स्टोन के बने हैं। पत्थरों के अधिकांश हिस्से फ्रैक्चर्ड व आपस में जुड़े हुए हैं। इस तरह के पत्थरों की क्षमता निम्न स्तर की होती है और यहां पहाड़ी की ढलान 60 डिग्री तक होने के चलते खतरा भी उसी अनुपात में अधिक है। 

वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. गुप्ता ने सुझाव दिया कि मसूरी में बड़े स्तर के निर्माण नहीं किए जाने चाहिए। यह अच्छी बात है कि वर्ष 1995 से ही यहां बड़े निर्माण की मनाही है। शायद इसी कारण यहां कोई बड़ी त्रासदी नहीं हुई। इस प्रतिबंध को बरकरार रखे जाने की जरूरत है। 

यहां की जमीन सबसे अधिक संवेदनशील 

लंढौर बाजार, कैम्पटी फॉल, खट्टापानी, भट्ठा घाट, भट्ठा गांव, जॉर्ज एवरेस्ट।   

नगर पालिका क्षेत्र फ्रीज जोन, फिर भी अनदेखी 

वर्ष 1995 में अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय जारी शासनादेश में मसूरी के बड़े क्षेत्र को फ्रीज जोन घोषित किया गया था। वर्तमान में यह जोन मसूरी नगर पालिका क्षेत्र में है। यहां तभी से 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल पर ही निर्माण की अनुमति दी जाती है। हालांकि, निर्माण पर अंकुश फ्रीज जोन के बाहर भी लागू है, मगर यहां 150 वर्गमीटर क्षेत्रफल पर निर्माण किया जा सकता है।

इस लिहाज से देखा जाए तो मसूरी में बड़े निर्माण नहीं किए जा सकते हैं, मगर वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद यहां बड़ी संख्या में होटल, गेस्टहाउस आदि का निर्माण कर लिया गया। मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) के ही रिकॉर्ड में 900 से अधिक अवैध निर्माण दर्ज किए गए हैं। इनमें 600 से अधिक आवासीय निर्माण हैं, जबकि 300 के करीब व्यावसायिक। 

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218 फॉरेस्ट नोटिफाइड एरिया तक निर्माण 

मसूरी क्षेत्र में वर्ष 1966 में घोषित किए गए 218 फॉरेस्ट नोटिफाइड एरिया भी हैं और निर्माण का प्रतिबंध यहां भी लागू है। बावजूद इसके इस क्षेत्र में तमाम निर्माण कर लिए गए हैं। 

 नैनीताल व शिमला के पहाड़ भी हैं कमजोर 

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. विक्रम गुप्ता का कहना है कि नैनीताल व शिमला के पहाड़ भी कमजोर हैं। यहां भी भूस्खलन का खतरा बना हुआ है। वाडिया संस्थान इन दोनों शहरों का भी सर्वे कर रहा है, जिसकी रिपोर्ट जल्द जारी की जाएगी। 

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