लैंड बैंक का खाली खजाना, नहीं खरीदी जा सकी एक इंच भी जमीन
सरकार की एक योजना है लैंड बैंक योजना। जमीनों की खरीद के लिए एक कोष का गठन किया गया। लेकिन इससे आज तक एक इंच भी जमीन नहीं खरीदी नहीं जा सकी है।
देहरादून, विकास गुसाईं। राज्य गठन के बाद नाम दिया गया पर्यटन प्रदेश। पर्यटन से प्रदेश की आर्थिकी को बढ़ाने और लोगों को रोजगार देने की खूब बातें हुई। नई योजनाओं का खाका खींचा गया। कुछ परवान चढ़ी तो कुछ फाइलों में ही कैद हो कर रह गईं। इन्हीं में से एक योजना थी लैंड बैंक योजना। इसके लिए बाकायदा उत्तराखंड पर्यटन भूमि एकत्रीकरण एवं क्रियान्वयन नियमावली को कैबिनेट से मंजूरी दिलाई गई। निर्णय लिया गया कि पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने को सरकारी जमीनों के साथ ही निजी जमीनों का भी संग्रह किया जाएगा। जमीनों की खरीद के लिए एक कोष का गठन किया गया। उम्मीद जताई गई कि इससे रोप वे, नए होटल, रिजॉर्ट, टूरिज्म स्टेट व टूरिज्म सिटी विकसित करने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे। तीन वर्ष से इसके कोष में कुछ राशि भी जमा है लेकिन इससे आज तक एक इंच भी जमीन नहीं खरीदी नहीं जा सकी है।
चुपचाप कैसे हो भूजल संरक्षण
सदानीरा गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड पानी की किल्लत से जूझ रहा है। कारण, यहां का भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। इसे लेकर बातें तो खूब हुईं, लेकिन ठोस योजना बनाने में ही 19 वर्ष बीत गए। पिछले वर्ष सरकार ने जल नीति बनाई। नीति तो अधिसूचित हो गई लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है। दरअसल, जल नीति में भूजल के निरंतर गिरते स्तर को थामने के लिए उपभोग सीमा तय करने पर जोर दिया गया तो कृषि के लिए सूक्ष्म सिंचाई पर। यानी, जल संसाधनों के नियोजन, विकास और प्रबंधन को ढांचा प्रदान करने पर फोकस किया गया। साथ ही सुरक्षित एवं शुद्ध पेयजल, स्वच्छता, मलजल सफाई व पशुधन की जरूरतें, सिंचाई, जलविद्युत परियोजनाओं आदि को समाहित किया गया। बावजूद इसके अभी तक इसे धरातल पर नहीं उतारा जा सका है, जल का अनियंत्रित दोहन जारी है।
नाम का वर्षा जल संरक्षण
प्रदेश में पानी की किल्लत दूर करने के लिए सरकार द्वारा बनाई गई योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं। इसका उदाहरण है वर्षा जल संरक्षण के लिए सरकार द्वारा तय किए गए नियम। सरकार ने कुछ समय पहले तय किया था कि प्रदेश में जितने भी सरकारी व अद्र्ध सरकारी भवन बनेंगे, उनमें वर्षा जल संरक्षण की व्यवस्था की जाएगी। कुछ कार्यालयों ने व्यवस्था की तो कुछ ने नहीं। जिन्होंने यह व्यवस्था की, वहां भी वर्षा जल संरक्षण नहीं हो पा रहा है। कारण, एकत्रित किए गए जल का उपयोग करने के लिए कोई योजना ही नहीं बनाई गई। जब लंबे समय तक पानी टैंक में ही पड़ा रहा तो वह खराब हो गया, कहीं गाद भर गई तो कहीं इसमें कीटाणु आ गए। बीमारी का खतरा अलग। स्थिति यह हो गई है कि छतों से पानी टैंक की जगह सीधा फर्श अथवा नाली में जा रहा है।
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बदस्तूर जारी प्लास्टिक का इस्तेमाल
उत्तराखंड में सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने की तैयारी बीते आठ वर्षों से चल रही है। इसके खतरे बताते हुए इस पर पाबंदी के फरमान जारी हुए, नाम को कार्रवाई हुई, योजनाएं बनाई गईं लेकिन अफसोस इस पर सरकार को आज तक सफलता नहीं मिल पाई। प्रदेश सरकार भी इस बात को समझती है, यही कारण है कि सरकार ने दो जिलों के केवल पांच शहरों को ही 2020 तक सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। शेष 11 जिलों में इसका प्रयोग बदस्तूर जारी रहेगा। जिन पांच शहरों का सरकार ने चयन किया है उनमें देहरादून, ऋषिकेश, नैनीताल, हल्द्वानी और मसूरी शामिल हैं। इनमें तीन शहर देहरादून और दो नैनीताल जिले में हैं। आश्चर्यजनक रूप से हरिद्वार, जहां सबसे अधिक पर्यटक व तीर्थ यात्री आते हैं, उसे सरकार ने प्राथमिकता से बाहर रखा है। इसका मतलब, इन सभी स्थानों पर प्लास्टिक का प्रयोग जारी रहेगा।
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