इसी जज्बे से सलामत हैं सरहदें, जानिए हरियाणा के लेफ्टिनेंट आस्तिक आर्या की कहानी
लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा। मैं रहूं या ना रहूं पर यह वादा है तुमसे मेरा कि मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा। पंक्तियां देश सेवा को समॢपत सेना की सोच को जाहिर करती है।
जागरण संवाददाता, देहरादून: लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका, कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा। मैं रहूं या ना रहूं पर यह वादा है तुमसे मेरा कि मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा। यह पंक्तियां देश सेवा के लिए समॢपत भारतीय सेना की सोच को जाहिर करती है। जिस देश में बेटे की शहादत को मां गर्व का पल कहे, वहां सेना का ये जज्बा लाजमी भी है।
देश की अलग-अलग भाषाओं, परिस्थितियों और राज्यों से होकर आए युवा भारतीय सैन्य अकादमी की शानदार प्रशिक्षण का हिस्सा बन जाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है लेफ्टिनेंट आस्तिक आर्या की। देश के लिए मर मिटने की यही दीवानगी आस्तिक अपने भाई में भी देख चुके हैं। शायद उसी प्रेरणा से उन्होंने भारतीय सेना में अफसर बनने का लक्ष्य हासिल किया है। आस्तिक यमुनानगर हरियाणा के रहने वाले हैं। उनके बड़े भाई निमित भी सेना में थे। तब आस्तिक की उम्र कम होने के कारण वह सेना को लेकर इतने भिज्ञ नहीं थे, लेकिन बड़े भाई के साथ रहते हुए उन्होंने न केवल देश सेवा के इस जज्बे को जाना और समझा, बल्कि भाई की सीख से पैदा हुई नई सोच की दिशा में आगे बढऩा भी शुरू किया। आस्तिक के भाई साल 2014 में एक प्रशिक्षण के दौरान शहीद हो गए। शहादत की खबर से न केवल आस्तिक के स्वजन, बल्कि पूरे क्षेत्र में दुख की लहर दौड़ पड़ी। खुद को संभालते हुए आस्तिक ने अपने भाई की सीख को याद रखा और उनके बताए रास्ते पर आगे बढ़ते होते हुए अकादमी तक पहुंचे।
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भारतीय सैन्य अकादमी में जेंटलमैन कैडेट अलग-अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि से यहां पहुंचते हैं। हर जेंटलमैन कैडेट की अपनी एक सोच और कहानी होती है। ऐसे में इन युवाओं को एक समान प्रशिक्षण देते हुए एक मजबूत नेतृत्व क्षमता वाला अफसर बनाना किसी चुनौती से कम नहीं होता।
आस्तिक के लिए भी भारतीय सैन्य अकादमी का प्रशिक्षण पूरा करना कम चुनौतीपूर्ण नहीं था, लेकिन अकादमी के अनुभवी प्रशिक्षक इस दौरान जेंटलमैन कैडेटों को पारिवारिक और मैत्रीपूर्ण संबंध के साथ भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार किया।
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