Subhash Chandra Bose Jayanti 2021: नेताजी के आह्वान पर केसरी चंद ने 24 साल की उम्र में उठाए थे हथियार

Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के वीर सपूत शहीद केसरी चंद ने नेताजी के आह्वान पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाए थे। उनकी स्मृति में हर साल तीन मई को चकराता के रामताल गार्डन में आयोजित होने वाले शहीद मेले में हजारों लोग जुटते हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 22 Jan 2021 07:44 PM (IST) Updated:Sat, 23 Jan 2021 07:42 AM (IST)
Subhash Chandra Bose Jayanti 2021: नेताजी के आह्वान पर केसरी चंद ने 24 साल की उम्र में उठाए थे हथियार
चकराता के रामताल गार्डन में वीर शहीद केसरीचंद की लगी मूर्ति।

संवाद सूत्र, साहिया (देहरादून)। Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 वीर सपूत शहीद केसरी चंद ने नेताजी सुभाष चंद बोस के आह्वान पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाए थे। उनकी याद में जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में हर साल तीन मई को चकराता के रामताल गार्डन में आयोजित होने वाले शहीद मेले में हजारों लोग जुटते हैं। इस दौरान पौराणिक लोक संस्कृति की झलक दिखाते कार्यक्रमों की छटा भी बिखरती है।

स्वतंत्रता आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति देने वाले रणबांकुरों में जौनसार-बावर (देहरादून) के ग्राम क्यावा निवासी वीर केसरी चंद का नाम भी आदर से लिया जाता है। इस वीर ने नेताजी सुभाष चंद बोस के आह्वान पर मात्र 24 साल की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाए थे। इसके बाद तीन मई 1945 को ब्रिटिश हुकूमत ने इस महानायक को फांसी पर लटका दिया।

एक नवंबर 1920 को चकराता तहसील के क्यावा गांव में पंडित शिवदत्त के घर जन्मे केसरी चंद के अंदर बचपन से ही देशभक्ति का जज्बा था। गांव में प्राथमिक शिक्षा के बाद केसरी चंद को 12वीं की पढ़ाई के लिए देहरादून स्थित डीएबी कॉलेज भेजा गया। लेकिन, वह बीच में ही पढ़ाई छोड़कर दस अप्रैल 1941 को वह बतौर सूबेदार रॉयल इंडियन आर्मी के सर्विस कोर में भर्ती हो गए। 

29 अक्टूबर 1941 को केसरी चंद को द्वितीय विश्व युद्ध के मोर्चे पर भेज दिया गया। इसी बीच नेताजी ने युवाओं का आजाद हिंद फौज में आने का आह्वान किया। केसरी चंद को जैसे ही यह बात मालूम पड़ी वह भी आजाद हिंद फौज का हिस्सा बन गए। वर्ष 1944 में आजाद हिंद फौज म्यांमार होते हुए मणिपुर की राजधानी इम्फाल पहुंची। इसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने केसरी चंद को इम्फाल का पुल उड़ाते हुए पकड़ लिया। 

केसरी चंद पर देशद्रोह का मुकदमा चला और 12 फरवरी 1945 को उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। इस वीर ने अंग्रेजी हुकूमत के सामने दया की भीख नही मांगी और हंसते-हंसते तीन मई 1945 को फांसी का फंदा चूम लिया। उनकी याद में हर साल तीन मई को चकराता क्षेत्र के रामताल गार्डन में शहीद केसरी मेले का आयोजन होता है। इसमें जौनसार-बावर के अलावा हिमाचल प्रदेश, गढ़वाल व पछवादून के हजारों लोग भाग लेते हैं।

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