पर्यावरण और विकास के सामंजस्य से उद्योग पकड़ेंगे रफ्तार

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योगों के परवान चढ़ने की उम्मीद जगी है। वह भी पर्यावरण और विकास के मध्य बेहतर सामंजस्य के साथ।

By Edited By: Publish:Sat, 25 Jan 2020 09:56 PM (IST) Updated:Mon, 27 Jan 2020 03:23 PM (IST)
पर्यावरण और विकास के सामंजस्य से उद्योग पकड़ेंगे रफ्तार
पर्यावरण और विकास के सामंजस्य से उद्योग पकड़ेंगे रफ्तार

देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योगों के परवान चढऩे की उम्मीद जगी है। वह भी पर्यावरण और विकास के मध्य बेहतर सामंजस्य के साथ। जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम में किए गए बदलाव की बदौलत यह संभव होने जा रहा है। इससे कृषि आधारित उद्योगों के लिए न सिर्फ आसानी से भूमि की उपलब्धता की राह खुली है, बल्कि जैविक व हर्बल खेती भी बंजर पड़े खेतों में लहलहाएगी। चाय बागानों के विकास से हॉर्टी टूरिज्म उद्योग का आकार लेगा तो खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योगों को जमीन मिलने से कृषि उत्पाद व फल बेकार नहीं जाएंगे। वहीं, हर साल जंगलों में आग की बड़ी वजह बनने वाले पिरूल (चीड़ की पत्तियां) से बिजली बनेगी। साथ ही सौर ऊर्जा के जरिए विद्युत संकट दूर करने का प्रयास है। इससे किसानों व विकासकर्ताओं के साथ ही राज्य की आर्थिकी भी संवरेगी। इसके साथ ही स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए क्षेत्र भी खुलेंगे।

संवरेंगे राज्य में चाय बागान 

नए कानून से प्रदेश में चाय बागानों की सूरत संवरेगी। दरअसल, यहां 11 पर्वतीय जिलों के 38 विकासखंडों में बंजर और खाली पड़ी भूमि पर चाय बागान विकसित करने को निजी व सरकारी 6238 हेक्टेयर भूमि चिह्नित की जा चुकी है। वर्तमान में 1319 हेक्टेयर भूमि में लगे चाय बागानों से 3385 किसान जुड़े हैं। नए कानून से अब शेष भूमि पर बागान स्थापित होने से करीब 12 हजार किसानों के लाभान्वित होने की उम्मीद है। 

सौर व पिरूल से बिजली

ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार सौर व पिरुल के जरिए वैकल्पिक ऊर्जा की दिशा में प्रयास कर रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के संयत्र स्थापित करने की दिशा में भूमि की उपलब्धता समस्या बनी हुई थी। बेकार पड़ी नापभूमि के लिए खातेदारों से सामंजस्य के साथ ही वन भूमि हासिल करने में ऐड़ि‍यां रगड़नी पड़ रही हैं। इस कारण निवेशकों के लिए यहां काम करना मुश्किल हो रहा था। अब यहां केवल न सौर ऊर्जा का उत्पादन हो सकता है, बल्कि संयत्रों के नीचे की जमीन पर खेती भी हो सकती है। इस प्रोजेक्ट की खास बात ये है कि बिजली की जो दरें नियामक आयोग तय करेगा, उत्तराखंड पावर कारपोरेशन को उसी दर से बिजली खरीदनी होगी। प्रदेश में अभी 200 मेगावाट से ज्यादा सौर ऊर्जा और 85 किलोवाट क्षमता की पिरूल बायोमास ऊर्जा उत्पादन की परियोजनाओं का काम लंबित है। 

सुधरेगी मत्स्य व पशुपालन की दशा

प्रदेश में पशुपालन और मत्स्य पालन के क्षेत्र में आपार संभावनाएं हैं। मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते अभी तक यह रफ्तार नहीं पकड़ पा रहे थे। अब निजी निवेशकों के लिए द्वार खुलने से इन क्षेत्रों में भी संभावनाएं जगी हैं। प्रदेश सरकार ने पशुपालन के क्षेत्र में हाल ही में आस्ट्रेलियन मरीनो भेड़ आयात की हैं। ये स्थानीय भेड़ों की तुलना में किसानों की आय में तीस गुना तक बढ़ोतरी कर सकती हैं। वहीं, मत्स्य पालन के क्षेत्र में ट्राउट  व पंगेशियस फार्मिंग की अपार संभावनाएं हैं। अभी प्रदेश में इनका उत्पादन क्रमश: 40 व 50 टन है। जिसे आसानी से बढ़ाया जा सकता है। 

औद्यानिकी पर्यटन देगा संबल

भूमि संबंधी दिक्कतें दूर होने के बाद अब राज्य में हॉर्टी टूरिच्म (औद्यानिकी पर्यटन) भी संबल देगा। इसके लिए अब निजी क्षेत्रों में उद्यान लगाने के साथ ही इन्हें पर्यटकों के लिए भी खोला जाएगा। सैलानी न केवल उद्यानों का लुत्फ उठा पाएंगे, बल्कि यहां से वह उत्पाद भी खरीद सकेंगे। ऐसे में कृषि की दशा भी कुछ हद तक सुधरेगी

एससी, नौटियाल (निदेशक उद्योग) का कहना है कि नए कानून से कृषि आधारित उद्योगों के लिए आसानी से जमीन मिल सकेगी। इस जमीन पर वैज्ञानिक तरीके से खेती होगी। इससे प्रदेश में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। 

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