किसी शिक्षक से कम नहीं पर्यावरण, व्यक्तिगत स्तर पर किया प्रयास करना जरूरी

र्यावरण के बिना जीवन चक्र अकल्पनीय है। आज के संदर्भ में यह ज्वलंत ही नहीं बल्कि बेहद संवेदनशील मुद्दा है। सोशल बलूनी पब्‍ल‍िक स्‍कूल देहरादून के प्रधानाचार्य पंकज नौटियाल का कहना है कि पर्यावरण का संधि विच्छेद परि+आवरण यानि कि हमारे चारों ओर का आवरण।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 05:20 PM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 05:20 PM (IST)
किसी शिक्षक से कम नहीं पर्यावरण, व्यक्तिगत स्तर पर किया प्रयास करना जरूरी
सोशल बलूनी पब्‍ल‍िक स्‍कूल के प्रधानाचार्य पंकज नौटियाल का कहना है आधुनिकीकरण के साथ पर्यावरण का दोहन बढ़ रहा है।

जागरण संवाददाता, देहरादून: पर्यावरण के बिना जीवन चक्र अकल्पनीय है। आज के संदर्भ में यह ज्वलंत ही नहीं बल्कि बेहद संवेदनशील मुद्दा है। इससे जुड़ी समस्याओं को समझने से पहले हमें पर्यावरण को समझना पड़ेगा। सोशल बलूनी पब्‍ल‍िक स्‍कूल देहरादून के प्रधानाचार्य पंकज नौटियाल का कहना है कि पर्यावरण का संधि विच्छेद परि+आवरण यानि कि हमारे चारों ओर का आवरण। मनुष्य एक विशेष समय पर जिस संपूर्ण परिस्थितियों से घिरा हुआ है उसे पर्यावरण कहा जाता है।

हमारे लिए पर्यावरण किसी शिक्षक से कम नहीं, जो हमें रोज कुछ सिखाने की कोशिश करता है, जरूरत है तो सीखने की प्रवृति की। आधुनिकीकरण के साथ पर्यावरण का दोहन भी बढ़ रहा है। हालांकि, हर स्तर पर पर्यावरण संरक्षण को प्रयास भी हो रहे हैं। सरंक्षण का मुद्दा किसी एक राष्ट्र की सरहद तक सीमित नहीं। पर्यावरण के संरक्षण के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास होने जरूरी हैं, लेकिन यह और बेहतर होगा कि इस मुद्दे को भी राष्ट्रवाद से जोड़ा जाए। इससे देश में रह रहे आमजन में यह भावना पैदा होगी कि वो पर्यावरण का संरक्षण कर राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं। मानव का आवश्यकता से अधिक सुविधाभोगी होना पर्यावरण ह्रास का बड़ा कारण है। मनुष्य के लोभ, लालच और विलासिता के चलते प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। परिणाम स्वरूप कोरोना जैसी घातक महामारी समेत आपदाओं का कहर बढ़ता जा रहा है।

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कोरोना जैसी समस्या से निपटने के लिए मनुष्य को प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पारिस्थितिकीय संतुलन जैसे विषयों को समग्रता से समझना होगा। यहां पर मेरे जहन में एक बात आती है, अगर हम मानसिक शारीरिक भावनात्मक रूप से पर्यावरण से जुड़ जाएं तो फिर कर्तव्य, अधिकारों की सीमा रेखा से बाहर चले जाएंगे। हमें स्कूली जीवन से ही छात्र-छात्राओं के मन में पर्यावरण संरक्षण जैसे कर्तव्यों के प्रति जागरूकता पैदा करनी पड़ेगी। एक बार विद्यार्थियों के मन में यह भाव पैदा हो गया तो समाज में परिवर्तन व पर्यावरण के प्रति संवेदनशील अपिहार्य हो जाएगा।

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