निकाय चुनाव: निर्दलीयों ने राजनीतिक दलों को दिखाया आइना

पार्षद व सभासद पदों पर निर्दलीयों के पक्ष में गए इस तरह के नतीजों के जरिये जनता ने बड़े राजनीतिक दलों को आइना दिखाने का काम किया है।

By Edited By: Publish:Wed, 21 Nov 2018 03:00 AM (IST) Updated:Wed, 21 Nov 2018 11:58 AM (IST)
निकाय चुनाव: निर्दलीयों ने राजनीतिक दलों को दिखाया आइना
निकाय चुनाव: निर्दलीयों ने राजनीतिक दलों को दिखाया आइना

देहरादून, विकास गुसाईं। प्रदेश में हुए निकाय चुनावों में निर्दलीयों ने एक बार फिर अपनी चमक बिखेरी है। निर्दलीय प्रत्याशियों ने निकायों में अध्यक्ष पदों पर दमदार प्रदर्शन किया तो सभासद व पार्षद पदों पर बंपर जीत दर्ज की है। खासकर, पार्षद व सभासद पदों पर निर्दलीयों के पक्ष में गए इस तरह के नतीजों के जरिये जनता ने बड़े राजनीतिक दलों को आइना दिखाने का काम किया है। बीते दो चुनावों में भी निर्दलीय प्रत्याशी जनता की पहली पसंद रहे थे। 

वर्ष 2008 में राजनीतिक दलों को दरकिनार करते हुए निर्दलीय प्रत्याशियों ने सबसे अधिक 22 निकाय अध्यक्ष पदों पर कब्जा किया था। वहीं, 2013 के निकाय चुनावों में भी भाजपा और निर्दलीयों ने समान रूप से अध्यक्ष के 22-22 पदों पर कब्जा जमाया था। प्रदेश में हुए 84 निकाय चुनावों में इस बार भी बड़ी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे। इनमें अधिकांश वे रहे जो राजनीतिक दलों से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे। क्षेत्र में अच्छी छवि व पकड़ अच्छी होने के साथ ही जनता की सहानुभूति ने इन प्रत्याशियों के जीत का आधार तय किया। 

निकाय चुनावों के अभी तक के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो निर्दलीय प्रत्याशियों का प्रदर्शन बेहद शानदार रहा है। वर्ष 2008 के निकाय चुनावों में अध्यक्ष के 60 पदों में से सबसे अधिक 22 पद निर्दलीयों के खाते में आए थे। वहीं पार्षद अथवा सभासद के कुल 633 पदों में से 300 पर निर्दलीयों ने ही जीत दर्ज की थी। वर्ष 2013 में हुए निकाय चुनावों में अध्यक्ष के 69 पदों में से निर्दलीयों व भाजपा को बराबर 22 पद मिले थे। 

पार्षद व सभासद के कुल 690 पदों में से आधे से अधिक यानी 369 पर निर्दलीय प्रत्याशियों का कब्जा रहा। इस बार भी निकाय चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशियों ने दमदार उपस्थित दर्ज कराई। यह बात दीगर रही कि अध्यक्ष पदों पर इनका प्रदर्शन बीते वर्षो की तुलना में कुछ कमजोर रहा। 

बावजूद इसके देर शाम तक मिले अध्यक्ष के 78 पद पर मिले नतीजे व रुझानों में निर्दलीय 20 पद जीत चुके थे व एक पर बढ़त बनाए हुए थे। इसी तरह पार्षद व सभासद के पदों पर 429 निर्दलीय जीत चुके थे और 54 पदों पर बढ़त बनाए हुए थे। इससे यह साफ भी हो गया कि वार्ड स्तर पर राजनीतिक दलों की बजाय प्रत्याशी की अपनी छवि ज्यादा असर डालती है।

क्यों जीतते हैं निर्दलीय प्रत्याशी निर्दलीय प्रत्याशियों का जीतने का मुख्य कारण इनका व्यवहार व जनता से सीधा संपर्क होता है। चुनावों के दौरान बड़े राजनीतिक दल हमेशा से ही प्रत्याशियों के चयन में चूक कर जाते हैं, जिसके चलते जनता के बीच रहकर लगातार कार्य करने वाले और जनता के सुख दुख में साथ चलने वाले प्रत्याशी ही अधिकांश बाजी मार जाते हैं।

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