आइआइटी रुड़की ने पराली से बनाई एक ऐसी बैटरी, जो कम लागत पर चलेगी ज्यादा; प्लांट भी लगेगा
आइआइटी रुड़की के पूर्व छात्रों ने रिचार्जेबल बैटरी के मामले में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने प्रदूषण का पर्याय समझी जाने वाली पराली से बैटरी बनाने की तकनीक विकसित की है। इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी।
रीना डंडरियाल, रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के पूर्व छात्रों ने रिचार्जेबल बैटरी के मामले में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने प्रदूषण का पर्याय समझी जाने वाली पराली से बैटरी बनाने की तकनीक विकसित की है। इससे न केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि पराली से होने वाले प्रदूषण की समस्या से भी निजात मिल जाएगी। यही नहीं, पराली जलाने से कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर को भी खत्म किया जा सकेगा। पूर्व छात्रों के स्टार्ट अप (कंपनी) इंडी एनर्जी ने आइआइटी रुडकी में भौतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर योगेश शर्मा की अगुआई में यह शोध किया।
प्रोफेसर योगेश शर्मा बताते हैं कि बैटरी बनाने के लिए कोबाल्ट, निकल और लिथियम जैसे रासायनिक तत्वों की जरूरत होती है। चीन के पास ही इनकी उपलब्धता है। ऐसे में बैटरी उत्पादन के क्षेत्र में भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर है। भारत को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए आइआइटी रुड़की के पूर्व छात्रों के स्टार्ट अप ने यह तकनीक विकसित की है। उनके अनुसार, भारत में लिथियम का विकल्प खोजकर ऐसी तकनीक विकसित करने वाली इंडी एनर्जी संभवत: पहली कंपनी होगी। उन्होंने बताया कि पराली से कार्बन बनाने के लिए भारत सरकार की ओर से अनुमति मिल गई है और पेटेंट करा लिया गया है।
(पराली से बैटरी बनाने की तकनीक खोजने वाले आइआइटी रुड़की के स्टार्ट अप इंडी एनर्जी की टीम। साभार-टीम)
लिथियम की जगह सोडियम आयन बैटरी
प्रोफेसर शर्मा के मुताबिक, रासायनिक प्रक्रिया का इस्तेमाल कर नमक से सोडियम और पराली से कार्बन बनाया जाएगा। इन दोनों को मिलाकर सोडियम आयन बैटरी तैयार की जाएगी। पराली से बनने वाली सोडियम आयन बैटरी का प्रयोग मोबाइल, इलेक्ट्रिक वाहन, सोलर स्ट्रीट लाइट आदि में किया जा सकेगा। प्रोफेसर योगेश शर्मा के अनुसार, एक किलो पराली का प्रयोग करके चार आइफोन की बैटरी बनाई जा सकती है। एक आइफोन की बैटरी की क्षमता लगभग दो-तीन हजार एमएएच होती है।
(आइआइटी रुड़की के स्टार्ट अप इंडी एनर्जी की टीम की ओर से पराली से बनाया गया कार्बन। साभार-टीम)
500 एमएएच की बैटरी बनाई, अब लगेगा प्लांट
प्रोफेसर शर्मा ने बताया कि आइआइटी रुड़की लैब में 500 एमएएच की बैटरी बनाने का प्रयोग किया गया, जो सफल रहा। स्टार्ट अप ने 10000 एमएएच तक की बैटरी बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत पराली से कार्बन बनाने के लिए आइआइटी रुड़की परिसर में प्लांट स्थापित किया जाएगा। दिसंबर तक इस पर काम शुरू हो जाएगा। पराली लेने के लिए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों से संपर्क किया जा रहा है।
(अनुसंधान एवं विकास के प्रमुख एवं आइआइटी रुड़की के भौतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर योगेश शर्मा। जागरण)
ऐसे बनेगा पराली से कार्बन
कार्बन तैयार करने के लिए पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाएगा। इसके बाद केमिकल से प्रोसेस करके भट्ठी में एक निश्चित तापमान पर गर्म करके इससे कार्बन बनाया जाएगा। उनके अनुसार, उत्तर भारत में हर साल करीब 14-15 लाख मीट्रिक टन पराली जलाई जाती है।
सस्ती और ज्यादा चलेगी
इंडी एनर्जी के सीईओ आकाश सोनी का कहना है कि इस बैटरी की कीमत लिथियम बैटरी के मुकाबल कम होगी। यह ज्यादा समय तक भी चलेगी। मसलन रिक्शा चालकों को लिथियम बैटरी हर साल बदलनी पड़ती है, लेकिन यह बैटरी तीन से पांच साल तक चलेगी।
आइआइटी कर रहा सहयोग
प्रोफेसर योगेश शर्मा ने बताया कि इस तकनीक के विकास में आइआइटी रुड़की का सहयोग मिल रहा है। संस्थान के निदेशक प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी स्टार्ट अप को प्रोत्साहित कर बढ़ावा दे रहे हैं। तकनीक विकसित करने वाली टीम में इंडी एनर्जी कंपनी के सीईओ एवं आइआइटी रुड़की के पूर्व छात्र आकाश सोनी, को-फाउंडर एवं चीफ बैटरी साइंटिस्ट अशित साहू, को-फाउंडर एवं चीफ मैटीरियल साइंटिस्ट डा. नागेश कुमार शामिल हैं।
दुनियाभर में तीन लाख करोड़ का है बैटरी कारोबार
दुनियाभर में बैटरी का सालाना कारोबार करीब तीन लाख करोड़ रुपये का है। भारत में यह लगभग 30 हजार करोड़ रुपये का होने का अनुमान है। यहां हर साल करीब 30 मिलियन टन पराली जलाई जाती है। यदि इससे सोडियम आयन बैटरी बनाई जाए तो 10 हजार गीगा वाट बैटरी बन जाएंगी। जो पूरी दुनिया के इस्तेमाल के लिए काम आ सकती है।