हिमालय दर्शन से वंचित होते सैलानी, ठंडे बस्ते में चली गई यह योजना

प्रदेश सरकार ने वर्ष 2014 में हिमालय दर्शन योजना का खाका खींचा। इस योजना के अनुसार ऐसे सैलानियों को हेलीकॉप्टर के जरिये प्रदेश के नैसर्गिंक सौंदर्य का दीदार कराया जाएगा। शुरुआत में योजना अच्छी चली लेकिन धीरे-धीरे पटरी से उतरती चली गई।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 15 Jan 2021 08:20 AM (IST) Updated:Fri, 15 Jan 2021 01:50 PM (IST)
हिमालय दर्शन से वंचित होते सैलानी, ठंडे बस्ते में चली गई यह योजना
पांच वर्ष पहले शुरू की गई हिमालय दर्शन योजना शुरूआती दौर पर चलने के बाद अचानक रूक गई है।

विकास गुसाईं, देहरादून। प्रदेश की हिमाच्छादित चोटियां बरबस ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। उत्तराखंड भ्रमण के दौरान हर सैलानी की इन्हें नजदीक से देखने की तमन्ना रहती है। पर्वतीय मार्गों के कारण इन तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं होती। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने वर्ष 2014 में हिमालय दर्शन योजना का खाका खींचा। इस योजना के अनुसार ऐसे सैलानियों को हेलीकॉप्टर के जरिये प्रदेश के नैसर्गिंक सौंदर्य का दीदार कराया जाएगा। योजना के लिए तब तीन हेलीकॉप्टर अनुबंधित किए गए। ये सप्ताह के आखिरी दो दिनों में संचालित होते थे। देहरादून के सहस्रधारा हेलीपैड से उड़ान भर ये हेलीकॉप्टर हिमालय के अलग-अलग हिस्सों की सैर कराते थे। शुरुआत में योजना अच्छी चली लेकिन धीरे-धीरे पटरी से उतरती चली गई। मौजूदा सरकार में इसे आगे बढ़ाने की बात हुई। टेंडर तक आमंत्रित किए गए। इसके बाद कोरोना संक्रमण के कारण योजना ठंडे बस्ते में चली गई।

धरातल पर नहीं उतरा प्लास्टिक पार्क

देश-विदेश में प्लास्टिक के तेजी से बढ़ते उपयोग को देखते हुए प्रदेश में केंद्र सरकार की मदद से प्लास्टिक पार्क खोलने की योजना बनाई गई। इसके लिए बाकायदा ऊधमसिंह नगर के सितारंगज में 30 एकड़ जमीन तलाशी गई। कहा गया कि इस पार्क में प्लास्टिक उत्पाद बनाने वाले उद्योगों को स्थापित किया जाएगा। सिडकुल इस पार्क की अवस्थापना का कार्य करेगा। इसकी लागत तकरीबन 92 करोड़ रुपये आंकी गई। इसमें से 40 करोड़ केंद्र सरकार को वहन करना है। दरअसल, उत्तराखंड में प्लास्टिक पार्क बनाने की योजना वर्ष 2016 में बनी थी। इसके लिए तब 50 एकड़ जमीन भी तलाशी गई थी। हालांकि, निवेशक न मिलने के कारण मामला ठंडे बस्ते में चला गया। प्रदेश में वर्ष 2018 में निवेशक सम्मेलन के बाद कई प्लास्टिक उद्योगों ने प्रदेश में अपने उद्योग लगाने की इच्छा जताई । बीते वर्ष इस पर तेजी से काम हुआ, लेकिन मामला फिर अटक गया है।

बस अड्डों के निर्माण को बजट

प्रदेश में नए बस अड्डों के निर्माण व पुराने बस अड्डों के विस्तारीकरण की कवायद सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रही है। आलम यह कि बस अड्डों के निर्माण व विस्तारीकरण की मुख्यमंत्री की 12 घोषणाओं की फाइल इधर से उधर ही घूम रही है। इनमें से चार बस अड्डों को जमीन ही चिह्नित नहीं हो पाई है। इनमें मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र का बस अड्डा भी शामिल है। दरअसल, स्थानीय लोगों की मांग पर प्रदेश के 12 स्थानों पर बस अड्डों के निर्माण और विस्तारीकरण की घोषणा की गई थी। इसे देखते हुए शासन ने बजट की व्यवस्था सुनिश्चित करने की कार्यवाही भी की। कहीं जमीन न मिलने तो कहीं प्रस्ताव पारित न होने के कारण इनका काम नहीं हो पाया। रही-सही कसर कोरोना काल में पूरी हो गई। शासन ने नए निर्माण कार्यों के लिए वित्तीय सहायता पर रोक लगा दी। तब से इनका निर्माण रुका हुआ है।

योजना है, मगर नहीं संवरे गांव

प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटन को गति देने का सपना अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। राज्य गठन के बाद सभी सरकारों ने इसके लिए तमाम योजनाएं बनाई। कुछ चलीं, कुछ फाइलों में गुम होकर रह गईं। ऐसी ही एक योजना थी ग्रामीण पर्यटन उत्थान योजना। इस योजना के अंतर्गत गांवों में पर्यटन विकास के साधन विकसित किए जाने थे। शुरुआती चरण में 38 गांवों का चयन किया गया। कहा गया कि देशी-विदेशी पर्यटकों को ग्रामीण परिवेश से परिचित कराने के साथ ही स्थानीय लोगों को पर्यटन गतिविधियों के माध्यम से स्वरोजगार उपलब्ध कराया जाएगा। पर्यटकों को गांवों तक लाने से लेकर इनकी सूरत संवारने के काम में सरकार सहयोग करेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। मौजूदा सरकार इसके स्थान पर होम स्टे योजना ले आई है। इस योजना से स्वरोजगार तो मिल रहा है लेकिन गांवों की सूरत संवारने को सरकार का सहयोग अभी भी अपेक्षित है।

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