ज्ञान गंगा : दोबारा कालेज बंद करने के फरमान जारी करने की मजबूरी
कोरोना संक्रमण के तेजी से रफ्तार पकड़ने से शिक्षक और सरकारी कार्मिक तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं। हालात संभालने के लिए सरकार को एक के बाद एक अहम फैसले लेने पड़ रहे हैं। स्कूल और डिग्री कालेजों को बंद करने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। कोरोना संक्रमण के तेजी से रफ्तार पकड़ने से शिक्षक और सरकारी कार्मिक तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं। हालात संभालने के लिए सरकार को एक के बाद एक अहम फैसले लेने पड़ रहे हैं। स्कूल और डिग्री कालेजों को बंद करने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा। सरकार के फरमान के बावजूद विभागों को ये आदत पड़ चुकी है, जब तक उनके विभाग से संबंधित आदेश जारी नहीं होंगे, तब तक वह किसी आदेश को मानेंगे ही नहीं। दरअसल मुख्य सचिव ने बीती 20 अप्रैल को सभी प्राइमरी, जूनियर और माध्यमिक स्कूलों के साथ डिग्री कालेज और विश्वविद्यालयों को भी बंद रखने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद प्राइमरी से माध्यमिक तक सभी सरकारी व निजी स्कूल बंद कर दिए गए, लेकिन दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में कई सरकारी डिग्री कालेजों में पढ़ाई बदस्तूर चलती रही। बाद में मजबूर होकर उच्च शिक्षा विभाग को भी कालेज बंद करने के आदेश जारी करने पड़े।
उच्च शिक्षा पर कोरोना का कहर
कोरोना काल में डिग्री कालेज छात्रों की पढ़ाई को बड़ा नुकसान हो ही रहा है, लेकिन महामारी ने दो प्राचार्यों समेत छह कार्मिकों की जिंदगी को भी लील लिया है। कई शिक्षक जीवन रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उच्च शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा है। इसी हफ्ते राजकीय डिग्री कालेज गंगोलीहाट, पिथौरागढ़ के प्राचार्य डा चंद्र प्रकाश, राजकीय डिग्री कालेज टनकपुर, चंपावत के प्राचार्य डा गुड्डी प्रकाश और राजकीय पीजी कालेज रुद्रपुर के एसोसिएट प्रोफेसर डा भगवती जोशी कोरोना से जंग हार गए। बीते महीने राजकीय डिग्री कालेज अगरोड़ा, टिहरी के नवनियुक्त सहायक प्रोफेसर डा जितेंद्र शाह, राजकीय पीजी कालेज हल्द्वानी की डा महिमा जोशी और राजकीय डिग्री कालेज रिखणीखाल, पौड़ी के समूह-ग कार्मिक राजू महामारी का शिकार हो चुके हैं। उच्च शिक्षा क्षेत्रीय कार्यालय और रूसा कार्यालय के कई कार्मिक कोरोना संक्रमित हैं। उच्च शिक्षा प्रमुख सचिव आनंद बर्द्धन कुछ दिन पहले ही इस संक्रमण से उबरे हैं।
चुनावी साल में तबादलों की आस
प्रदेश में तबादलों को लेकर सबसे ज्यादा अलर्ट मास्साब रहते हैं। कोरोना की वजह से स्कूल-कालेज भले ही बंद हों, शिक्षा के दोनों निदेशालयों प्रारंभिक और माध्यमिक में कामकाज प्रभावित है। अप्रैल में शिक्षा समेत सभी विभागों का ध्यान कोरोना संक्रमण पर ज्यादा रहा है। ऐसे में तबादलों को लेकर भी विभागीय प्रक्रिया भी सुस्त पड़ी है। इससे सबसे ज्यादा खलबली मास्साब में मची हुई है। लिहाजा जुगत भिड़ाई गई कि तबादलों को लेकर कार्यवाही को धक्का मारकर आगे बढ़ाया जाए। दरअसल इस बार सरकार पहले ही आदेश जारी कर यह साफ कर चुकी है कि इस बार तबादले होंगे। पिछला सत्र तबादलों के लिहाज से शून्य रहा है। सरकार ये भी बता चुकी है कि इस साल सिर्फ 10 फीसद तबादले होंगे। दरअसल अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावी साल में मिला यह सुनहरा मौका शिक्षक हाथ से जाने देना नहीं चाहते हैं।
हजारों शिक्षकों को वेतन के लाले
प्रदेश में कार्मिकों के वेतन पर जब भी संकट आता है तो इसकी सबसे ज्यादा मार केंद्रपोषित परियोजना समग्र शिक्षा अभियान के तहत चिहि्नत शिक्षकों को भुगतनी पड़ती है। कमोबेश इसी हाल से सहायताप्राप्त अशासकीय विद्यालयों के शिक्षकों का होता है। नया वित्तीय वर्ष शुरू होने पर वेतन के भुगतान में शुरुआती दिक्कतें आम हैं। सरकारी कार्मिक इसके आदी हो चुके हैं। पहले महीने का वेतन देर से मिला। कार्मिकों की तुलना में शिक्षकों को इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। इस बीच कोरोना की मार सचिवालय में शिक्षा के अनुभागों पर भी पड़ी। वेतन जारी होने में देरी हुई तो शिक्षक संगठनों ने हो-हल्ला मचाया। शिक्षा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने अनुसचिवों और ऊपर के अधिकारियों की मदद से अनुभागों को खुलवाकर वेतन की फाइल मूव कराईं। इसके बाद वेतन की धनराशि जारी हुई। इस सबके बावजूद प्रदेश में करीब दस हजार शिक्षकों को अब भी वेतन नहीं मिल पाया है।
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