Haridwar Kumbh Mela 2021: 11 साल के अंतराल में आए दिव्य कुंभ ने भव्यता के साथ लिया विराम

Haridwar Kumbh Mela 2021 तमाम उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए चैत्र पूर्णिमा के प्रतीकात्मक शाही स्नान के साथ हरिद्वार कुंभ ने अनौपचारिक तौर पर विराम ले लिया है। अब सिर्फ औपचारिकता बाकी है। यह कुंभ इस मायने में खास माना जाएगा कि इसका आयोजन विश्वव्यापी कोविड-19 महामारी के बीच हुआ।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Wed, 28 Apr 2021 09:05 AM (IST) Updated:Wed, 28 Apr 2021 09:05 AM (IST)
Haridwar Kumbh Mela 2021: 11 साल के अंतराल में आए दिव्य कुंभ ने भव्यता के साथ लिया विराम
हरकी पैड़ी पर शाही करते निरंजनी और आनंद अखाड़ा के संत-महात्मा।

जागरण संवाददाता, देहरादून। Haridwar Kumbh Mela 2021 तमाम उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए चैत्र पूर्णिमा के प्रतीकात्मक शाही स्नान के साथ हरिद्वार कुंभ ने अनौपचारिक तौर पर विराम ले लिया है। अब सिर्फ औपचारिकता बाकी है। कुंभ को दिव्य एवं भव्य बनाने में सरकार के साथ ही मेला अधिष्ठान, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, सभी 13 अखाड़ों, प्रशासन, पुलिस, अर्द्धसैनिक बल, स्वयंसेवी संस्थाओं, विभिन्न विभागों व नागरिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 83 साल बाद पहली बार 11 साल के अंतराल में आया यह कुंभ इस मायने में खास माना जाएगा कि इसका आयोजन विश्वव्यापी कोविड-19 महामारी के बीच हुआ। इसी के चलते कुंभ की साढ़े तीन माह की अवधि को घटाकर एक माह तक सीमित कर दिया गया। साथ ही यह भी कोशिश रही कि मेले में भीड़ न जुटे और साधु-संत, श्रद्धालु व अन्य लोग कोविड गाइडलाइन का अनिवार्य रूप से पालन करें।

वैसे तो हरिद्वार कुंभ को वर्ष 2022 में आयोजित होना था, लेकिन ग्रहचाल के कारण यह एक वर्ष पूर्व ही आ गया। अब फिर 83 साल बाद 22वीं सदी की शुरुआत में दोबारा ऐसा मौका आएगा। इस दृष्टि से 21वीं सदी का यह ऐतिहासिक कुंभ था। बीते वर्ष दिसंबर तक कोरोना संक्रमण की ऐसी स्थिति नहीं थी, इसलिए सरकार एवं मेला अधिष्ठान ने 14 जनवरी को मकर संक्रांति स्नान से ही कुंभ मेले की रूपरेखा तय की थी। लेकिन, समय के साथ स्थितियां बदलती गईं और कुंभ शुरू करने की तिथि पहले 27 फरवरी और फिर 11 मार्च और आखिर में एक अप्रैल से करनी पड़ी। इस तरह साढ़े तीन माह तक चलने वाला कुंभ मेला महज एक माह तक सिमट गया। बावजूद इसकी दिव्यता एवं भव्यता में सरकार, मेला अधिष्ठान, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व अखाड़ों ने कोई कमी नहीं आने दी। इसकी झलक महाशिवरात्रि पर्व पर 11 मार्च को हुए सातों संन्यासी अखाड़ों के स्नान के दौरान देखने को मिली।

इस स्नान को पूर्व में कुंभ का पहला शाही स्नान घोषित किया गया था, लेकिन बाद में सरकार की ओर से इसे सिर्फ पर्व स्नान माना गया। हालांकि, संन्यासी अखाड़ों ने पूरी शान-ओ-शौकत से शाही अंदाज में ही यह स्नान किया और मेला अधिष्ठान का भी इसमें पूरा सहयोग रहा। एक अप्रैल से जब कुंभ की विधिवत शुरुआत हुई तो उत्तराखंड भी कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ चुका था और बढ़ गई थीं सरकार एवं मेला अधिष्ठान की चुनौतियां। अच्छी बात यह रही कि अखाड़ा परिषद व अखाड़ों के सहयोग से इन चुनौतियों से भी पार पा लिया गया। इसकी बानगी 12 व 14 अप्रैल के पहले व दूसरे शाही स्नान और 13 अप्रैल के चैत्र प्रतिपदा स्नान के दौरान देखने को मिली।  

कोविड गाइडलाइन के अनुपालन को मेला अधिष्ठान व प्रशासन की सख्ती के चलते बाहर से कम ही संख्या में श्रद्धालु हरिद्वार पहुंचे और घाटों पर भी भीड़ नहीं जुटी। अखाड़ों में साधु-संतों की संख्या जरूर अधिक रही, लेकिन उन्होंने भी व्यवस्थित होकर स्नान किया। 14 अप्रैल के शाही स्नान (कुंभ का मुख्य स्नान) के बाद कोरोना संक्रमण की चुनौतियां बढ़ती देख अखाड़ों ने भी सरकार की भावना को समझते हुए 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा पर अंतिम शाही स्नान प्रतीकात्मक करने का निर्णय लिया। इसकी झलक मंगलवार को हरकी पैड़ी पर देखने को मिली। सभी अखाड़े से चुनिंदा साधु-संत ही स्नान के लिए पहुंचे और सभी ने कोविड गाइडलाइन का भी पूरी तरह अनुपालन किया। देखा जाए तो अखाड़ों की यह सादगी भी दिव्यता एवं भव्यता का एहसास करा गई। कुंभ को वैसे तो 30 अप्रैल को विसर्जित होना है, लेकिन अंतिम शाही स्नान के साथ उसका अनौपचारिक समापन मंगलवार को ही हो गया।

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