Guru Purnima 2021: आस्था, श्रद्धा और सादगी से मनाया जा रही गुरु पूर्णिमा, जगह-जगह कार्यक्रम

Guru Purnima 2021 आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानि गुरु पूर्णिमा का पर्व आज मनाया जा रहा है। यह दिन गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह बेहद खास माना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन व्रत पूजा का भी बड़ा महत्व है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 08:59 AM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 08:59 AM (IST)
Guru Purnima 2021: आस्था, श्रद्धा और सादगी से मनाया जा रही गुरु पूर्णिमा, जगह-जगह कार्यक्रम
Guru Purnima 2021: गुरु के आस्था प्रकट करने का पर्व गुरु पूर्णिमा आज, लें आशीर्वाद।

जागरण संवाददाता, देहरादून। Guru Purnima 2021 आस्था, श्रद्धा और सादगी के साथ गुरु पूर्णिमा मनाई गई। मंदिरों में श्रद्धालुओं ने व्रत रख जहां नित्य पूजा के बाद आरती की। वहीं, गुरुद्वारों में भी सुबह नितनेम के बाद कथा कीर्तन हुए। इसके अलावा विभिन्न सामाजिक संगठनों ने गुरु पूर्णिमा पर विभिन्न कार्यक्रम किए।

आषाढ़ माहीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का विशेष महत्व है। सनातन धर्म अनुयायी इस दिन अपने गुरुदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए मंदिर व घरों में पूजा करते हैं। शुक्रवार सुबह को शहर के टपकेश्वर, पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर सहारनपुर चौक, श्याम सुंदर मंदिर पटेलनगर, आदर्श मंदिर पटेलनगर, सनातन धर्म मंदिर प्रेमनगर समेत विभिन्न मंदिरों में पहुंचे श्रद्धालुओं ने गुरु को याद कर पूजा की। गुरु पूर्णिमा पर्व नगर सहित समूचे अंचल में आस्था, श्रद्धा और सादगी से मनाया गया। पर्व पर लोग ने गुरु की आराधना और वंदना कर सुख-समृद्धि की कामना की।

घरों से लेकर मंदिरों तक गुरु पर्व पर विशेष पूजा-अर्चना की गई। सुबह से ही मंदिरों, गुरुद्वारों व आश्रमों में चहल-पहल बनी रही। साफ-सफाई के बाद मंदिरों को फूल-माला से सजाया गया। वहीं भगवान का विशेष श्रृंगार किया गया। शिष्यों ने अपने गुरुओं को आसन प्रदान कर श्रद्धानुसार उनकी पूजा-अर्चना की और आशीर्वाद ग्रहण किया। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से भी शिष्यों ने गुरुओं का आशीर्वचन लिया।

उत्तराखंड विद्वत सभा के प्रवक्ता आचार्य बिजेंद्र प्रसाद ममगाईं के अनुसार, गुरु वंदना, गुरु चरणों की सेवा, गुरु दीक्षा लेने का यह बड़ा पर्व है। इस पूर्णिमा को भगवान के अवतार वेदव्यास का (प्रादुर्भाव) जन्म हुई था। द्वीप के मध्य में तपस्या के चलते वह सांवले हो गए, इसलिए इनका नाम श्रीकृष्ण द्वैपायन वेदों के विभाजन के बाद वेदव्यापस नाम पड़ा। उसी परंपरा को आज भी सनातन धर्म संस्ंकृति का अनुशरण किया जाता है।

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