उत्तराखंड सरकार को आय और व्यय के बीच बढ़ती खाई पर लगाना होगा अंकुश

उत्तराखंड राज्य के जर्जर होते आर्थिक हालात आने वाले वक्त में और गंभीर हो सकते हैं। सवाल यह है कि क्या सिर्फ पलायन को जिम्मेदार बता नीति-नियंता अपना पल्ला झाड़ सकते हैं। प्रदेश में आज भी स्वास्थ्य शिक्षा बिजली-पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 02 Sep 2021 04:14 PM (IST) Updated:Thu, 02 Sep 2021 04:14 PM (IST)
उत्तराखंड सरकार को आय और व्यय के बीच बढ़ती खाई पर लगाना होगा अंकुश
दस वर्ष की अवधि में वेतन-भत्तों का खर्च तीन गुना बढ़ा।

देहरादून, स्टेट ब्यूरो। उत्तराखंड में जर्जर होती आर्थिकी स्थिति चिंता का विषय तो है ही, इस पर चिंतन की भी जरूरत है। प्रदेश में आय और व्यय के बीच बढ़ती खाई से साफ है कि यदि जल्द ही कठोर कदम न उठाए गए तो आने वाले वक्त में हालात और भी गंभीर हो जाएंगे। बीते दस वर्षो के अंतराल में राज्य के खर्च में 38,470 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई, जबकि आय में महज 10,791 करोड़ रुपये का इजाफा ही किया जा सका। यानी आय सिर्फ ढाई गुना बढ़ी और खर्च साढ़े तीन गुना। इस आय में से एक तिहाई से अधिक खर्च तो वेतन और पेंशन पर ही हो रहा है। इसी दस वर्ष की अवधि में वेतन-भत्तों का खर्च तीन गुना बढ़ा तो पेंशन के मद में साढ़े पांच गुना की वृद्धि हुई।

जाहिर है सरकार मुश्किल में है और इसका हल कर्ज में तलाशा जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बाजार से उधार लेकर खर्च करना प्रदेश को भारी पड़ेगा ही। दरअसल सबसे बड़ी चिंता गैर विकास मदों में बढ़ता व्यय है। ऐसे में विकास कार्यो का सारा दारोमदार केंद्रीय मदद और केंद्र पोषित योजनाओं पर रह गया है। उत्तर प्रदेश से अलग हुए उत्तराखंड को 21 वर्ष होने वाले हैं, इस अरसे में कोई भी सरकार राजस्व संसाधनों में वृद्धि करने में फिसड्डी ही साबित हुई है। सरकारों के वित्तीय प्रबंधन पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। सवाल उठने स्वाभाविक भी हैं। अक्सर देखने में आया है कि सरकारें विकास कार्यो के लिए केंद्र से मिलने वाली धनराशि का भी सदुपयोग नहीं कर पातीं। एक कहावत है कि जितनी चादर हो, उतने ही पैर पसारने चाहिए। सच यह है कि उत्तराखंड ने मानो इस कहावत को बिसरा दिया है।

वोट की फसल काटने को राजनीतिक दल लोकलुभावन घोषणाएं तो कर देते हैं, लेकिन इस पर विचार नहीं करते कि इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए धन की व्यवस्था कैसे होगी। उत्तराखंड में पर्यटन, तीर्थाटन, पनबिजली परियोजना, उद्यानिकी और कृषि जैसे क्षेत्रों पर ध्यान देने की जरूरत है। ये ऐसे सेक्टर हैं जो प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ बन सकते हैं। विडंबना ही है कि प्रदेश में बंजर जमीन का रकबा लगातार बढ़ रहा है। कभी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 15 फीसद की हिस्सेदारी करने वाला कृषि क्षेत्र आज छह फीसद से कम पर सिमट गया है।

सवाल यह है कि क्या सिर्फ पलायन को जिम्मेदार बता नीति-नियंता अपना पल्ला झाड़ सकते हैं। प्रदेश में आज भी स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली-पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। इस क्षेत्र में काम कैसे हो पाएगा, इसके लिए धन की आवश्यकता है और यह तभी संभव होगा जब मितव्ययता के साथ विकास कार्यो के लिए प्राथमिकताएं तय करें।

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