Smart City: परिवहन निगम कार्यशाला में नहीं बनेगी ग्रीन बिल्डिंग, जानिए वजह
परिवहन निगम कार्यशाला की भूमि पर बनने वाली ग्रीन बिल्डिंग पर शासन ने रोक लगा दी है। लगातार विवाद जमीन के ऊंचे भाव और हाईकोर्ट के रुख को देखते हुए सरकार ने ग्रीन बिल्डिंग के लिए नया स्थान चिह्नित कर लिया है।
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। स्मार्ट सिटी के तहत परिवहन निगम कार्यशाला की भूमि पर बनने वाली ग्रीन बिल्डिंग पर शासन ने रोक लगा दी है। लगातार विवाद, जमीन के ऊंचे भाव और हाईकोर्ट के रुख को देखते हुए सरकार ने ग्रीन बिल्डिंग के लिए नया स्थान चिह्नित कर लिया है। अब ग्रीन बिल्डिंग का निर्माण कलक्ट्रेट की जमीन पर किया जाएगा। ग्रीन बिल्डिंग को लेकर स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से रोडवेज को कार्यशाला की जमीन के लिए दिए गए 20 करोड़ रुपये भी वापस मांग लिए गए हैं। रोडवेज को एक-दो दिन के भीतर ही यह रकम लौटानी है।
स्मार्ट सिटी के तहत 204 करोड़ रुपये की लागत से छह मंजिला ग्रीन बिल्डिंग का निर्माण कराया जाना है, जिसमें कलक्ट्रेट समेत जिले के सभी प्रमुख सरकारी कार्यालय होंगे। सरकार ने इसके लिए रोडवेज की हरिद्वार रोड स्थित कार्यशाला की जमीन का चयन किया था। पिछले साल दिसंबर में सचिव शहरी विकास ने कार्यशाला की जमीन स्मार्ट सिटी के नाम ट्रांसफर करने के आदेश भी दे दिए थे। इसके लिए रोडवेज को बतौर एडवांस 20 करोड़ रुपये स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से दिए गए थे।
इस फैसले के खिलाफ रोडवेज के कर्मचारी संगठन सड़कों पर उतर आए और जमीन के बाजारी भाव देने की मांग की। कर्मचारी संगठन आइएसबीटी का स्वामित्व भी मांग रहे थे। इसी बीच जनवरी में उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन इस मामले में हाईकोर्ट चली गई। हाईकोर्ट ने कार्यशाला की जमीन ट्रांसफर करने पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी थी। सरकार पिछले कुछ दिनों से मामले का हल निकालने के प्रयास कर रही थी। रोडवेज के कर्मचारी संगठनों से भी बातचीत की गई। रोडवेज कर्मचारी यूनियन कार्यशाला की जमीन के बाजारी भाव या फिर इसके बदले आइएसबीटी का स्वामित्व और 100 करोड़ रुपये की डिमांड कर रही थी।
दूसरी तरफ, सरकार की ओर से जमीन के बाजार भाव को भी दरकिनार करते हुए रोडवेज को सर्किल रेट के हिसाब से करीब 58 करोड़ के भुगतान की तैयारी की जा रही थी। इस मामले में रोडवेज के शेष कर्मचारी संगठन भी आंदोलन कर लगातार सरकार पर दबाव बना रहे थे। कर्मचारियों के विरोध को देखते हुए सरकार ने इस मामले में प्रतिपूर्ति के फैसले पर मुख्य सचिव ओमप्रकाश की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर विवाद का हल निकालने के निर्देश दिए थे।
उच्चस्तरीय कमेटी में वित्त सचिव अमित नेगी, शहरी विकास सचिव शैलेश बगोली, जिलाधिकारी और स्मार्ट सिटी सीईओ डॉ. आशीष श्रीवास्तव समेत एमडीडीए उपाध्यक्ष व रोडवेज के प्रबंध निदेशक रणवीर सिंह चौहान भी सदस्य हैं। कमेटी की पिछले दिनों कई दफा बैठक हुई। जिसमें वित्त विभाग ने आइएसबीटी और कार्यशाला शिफ्टिंग का खर्च देने से इनकार कर दिया था। विवादों को देखते हुए सरकार ने कार्यशाला की जमीन को ही ग्रीन बिल्डिंग के लिए निरस्त कर दिया है। इसकी सूचना रोडवेज मुख्यालय को भेज दी गई है।
नहीं मिल सकता आइएसबीटी का स्वामित्व
परिवहन निगम को आइएसबीटी का स्वामित्व देने में तकनीकी अड़चन आड़े आ गई है। सरकार ने रैमकी के साथ अप्रैल 2003 में पीपीपी मोड में आइएसबीटी का 20 साल का अनुबंध किया था। जून 2004 में आइएसबीटी का लोकार्पण हुआ। तभी से रैमकी कंपनी इसका संचालन कर रही है। करार की शर्तों के मुताबिक 2023 तक आइएसबीटी रैमकी के पास ही रहेगा।
पत्र को बनाया था आधार
हाईकोर्ट में कर्मचारी यूनियन ने राजस्व परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष एस. रामास्वामी के उस पत्र को पेश किया था, जो उन्होंने परिवहन मंत्री को एक नवंबर 2019 को भेजा था। रामास्वामी ने कार्यशाला की भूमि का बाजार भाव करीब 285 करोड़ बताया था। साथ ही यह भी कहा था कि सरकार बाजार भाव या भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत जमीन ले सकती है। पत्र में बताया गया था कि निगम की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और कर्मचारियों को वेतन तक नहीं मिल रहा।
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रोडवेज के प्रबंध निदेशक रणवीर चौहान ने बताया कि सरकार ने ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण के लिए रोडवेज कार्यशाला की जमीन के बदले दूसरे स्थान का चयन कर लिया है। इसलिए स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से रोडवेज को पिछले साल दिसंबर में दिए गए 20 करोड़ रुपये लौटाए जा रहे हैं। वहीं, स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ और जिलाधिकारी डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने बताया कि स्मार्ट सिटी के तहत बनने वाली ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण के लिए अब कलक्ट्रेट परिसर की जमीन का चयन किया गया है। स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से रोडवेज प्रबंधन को दिए गए 20 करोड़ रुपये वापस देने का पत्र भेजा गया है।