उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं पर नहीं लगा ब्रेक, पिछले साल लाकडाउन के बावजूद हुए 1041 हादसे
उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ ही रहा है। दुर्घटनाओं पर रोक के तमाम दावों व प्रयासों के बावजूद इसमें खास सफलता नहीं मिल पा रही है। स्थिति यह कि प्रदेश में चिह्नित 2179 दुर्घटना स्थलों में से अभी तक 1110 पर काम ही शुरू नहीं हो पाया।
विकास गुसाईं, देहरादून। उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ ही रहा है। दुर्घटनाओं पर रोक के तमाम दावों व प्रयासों के बावजूद इसमें खास सफलता नहीं मिल पा रही है। स्थिति यह है कि प्रदेश में चिह्नित 2179 दुर्घटना स्थलों में से अभी तक 1110 पर काम ही शुरू नहीं हो पाया है। यह स्थिति तब है, जब इन स्थलों को 2017 में चिह्नित कर लिया गया था। ऐसा ही हाल तिराहों व चौराहों का है। प्रदेश में 3035 तिराहे व चौराहे चिह्नित हैं, जिनमें से 2505 पर दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए कोई सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाए गए हैं। विभागों की लापरवाही का आलम यह कि बजट भी पूरा खर्च नहीं कर पा रहे हैं। उपकरणों की खरीद में लापरवाही बरती जा रही है। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि प्रदेश में बीते वर्ष कोरोना के कारण लागू लाकडाउन के बावजूद 1041 दुर्घटनाएं हु़ईं। इनमें 674 व्यक्तियों की मौत हुई।
अतिक्रमण पर आंखे मूंदे है शासन
प्रदेश में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। इसे देखते हुए हाईकोर्ट के निर्देश पर शासन ने राजधानी देहरादून से अतिक्रमण हटाने की कवायद शुरू की। हाईकोर्ट ने शासन को चार सप्ताह के भीतर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे, लेकिन तीन वर्ष गुजरने के बावजूद अतिक्रमण पूरी तरह नहीं हट पाया है। शासन ने इस दौरान नौ हजार अतिक्रमण चिह्नित किए। इनमें से शहर के 50 फीसद से अधिक अतिक्रमण ज्यों के त्यों बने हुए हैं। इन पर लगे लाल रंग के निशान अब मिटने लगे हैं। उधर, कई स्थानों पर फिर से अतिक्रमण हो गया है। पैदल चलने वाले मार्गों पर फिर से बाजार सजने लगे हैं। गत वर्ष नए सिरे से अभियान चलाने की बात कही गई लेकिन कोरोना के कारण यह शुरू नहीं हो पाया। अब चुनावी साल आ गया है, तो अतिक्रमण करने वालों पर कार्यवाही बेहद मुश्किल है।
बाघों से आय को कोष नहीं
प्रदेश के राजाजी टाइगर रिजर्व में देशभर से पर्यटक बाघों का दीदार करने आते हैं। इससे होने वाली आय पर केवल विभाग का ही नहीं, बल्कि आसपास के गांव वालों का भी हिस्सा होता है। यह बात अलग है कि राजाजी टाइगर रिजर्व के आसपास बसे गांवों को आज तक हिस्सा नहीं मिला है। इसका कारण आय को जमा करने वाले कोष, यानी फाउंडेशन का गठन न होना है। दरअसल, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की गाइडलाइन के मुताबिक प्रत्येक टाइगर रिजर्व में फाउंडेशन का गठन अनिवार्य है। फाउंडेशन में जितनी भी रकम जमा होगी, उसका 20 प्रतिशत आसपास के गांवों के निवासियों की बेहतरी के लिए खर्च किया जाएगा। राजाजी टाइगर रिजर्व को अस्तित्व में आए छह वर्ष बीत चुके हैं लेकिन यह फाउंडेशन अभी तक नहीं बन पाया है। 2019 में इस दिशा में काम जरूर शुरू हुआ लेकिन यह मसला शासन स्तर पर लंबित चल रहा है।
कैसे रुक पाएगा पानी का दुरुपयोग
प्रदेश में पानी के इस्तेमाल की कोई सीमा तय नहीं है। सभी घरों से लगभग समान शुल्क लिया जा रहा है, चाहे कोई पानी कम खर्च करे या ज्यादा। इसे देखते हुए सरकार ने पांच वर्ष पूर्व पानी के दुरुपयोग को रोकने के लिए वाटर मीटर लगाने का निर्णय लिया। इस योजना के तहत घरों में डिजिटल वाटर मीटर लगाए जाने थे। कहा गया कि मीटर में डाटा डिजिटल रूप में रखा जाएगा। दूर से ही रिमोट के जरिये इसकी रीडिंग मिल जाएगी। एशियन डेवलपमेंट बैंक के सहयोग से इस काम को अंजाम देने की बात कही गई। इसके लिए बकायदा टेंडर आमंत्रित किए गए। इस बीच घरों में वाटर मीटर लगाने केा लेकर विरोध शुरू हो गया। तब तक चुनाव आ गए। इस कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। चुनाव हुए और नई सरकार भी आ गई, लेकिन वाटर मीटर की ओर किसी का ध्यान नहीं है।
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