गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय बताएगा प्राकृतिक खेती के गुर, पढ़‍िए पूरी खबर

प्रदेश का प्रतिष्ठित गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय प्राकृतिक खेती के गुर भी बताएगा। उत्तराखंड में जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।नीति आयोग चाहता है कि कृषि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञ यह विश्वविद्यालय उत्तराखंड में प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा दे।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 04:14 PM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 04:14 PM (IST)
गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय बताएगा प्राकृतिक खेती के गुर, पढ़‍िए पूरी खबर
प्रदेश का प्रतिष्ठित गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय प्राकृतिक खेती के गुर भी बताएगा।

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून: प्रदेश का प्रतिष्ठित गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय प्राकृतिक खेती के गुर भी बताएगा। उत्तराखंड में जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। केंद्र सरकार इसके लिए राज्य को मदद भी दे रही है। नीति आयोग चाहता है कि कृषि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञ यह विश्वविद्यालय उत्तराखंड में प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा दे।इसके लिए विश्वविद्यालय को डेडिकेटेड सेंटर का प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया है।

ऐसा सेंटर स्थापित होने की सूरत में केंद्र सरकार से मदद का भरोसा भी बंधाया गया है। खास बात ये है कि आयोग ने इस संबंध में प्रस्ताव भी मांग लिया है। विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा देने की मांग जोर-शोर से की जा रही है। राज्य सरकार इसके लिए पुरजोर पैरवी कर रही है। दरअसल, विश्वविद्यालय के विकास और उसमें शोध कार्यों में तेजी लाने के लिए अधिक संसाधनों की दरकार है। इसलिए नजरें अब डबल इंजन पर टिक गई हैं।

बच्चों को वक्त निकालें स्कूल

शिक्षा विद्यार्थी केंद्रित हो तो ही अपने उद्देश्य को पूरा कर सकती है। बच्चों के चहुंमुखी विकास में विद्यालयों की बड़ी भूमिका है। सवाल ये उठ रहा है कि विद्यालयों में बच्चों को सर्वांगीण विकास का अवसर मिल भी रहा है या नहीं। विद्यालय वर्ष में करीब 200 दिन संचालित हो रहे हैं। प्रतिदिन शिक्षण कार्य औसतन छह घंटे हो रहा है। इस अवधि में मात्र पाठ्यक्रम ही पूरा हो पाता है। विद्यालयों में अन्य गतिविधियों के लिए न तो समय है और न ही इच्छाशक्ति। ऐसे में एक सुझाव यह भी सामने आया है कि विद्यालयों का समय भी सरकारी दफ्तरों की भांति बढ़ाकर आठ घंटे निर्धारित किया जाए। शिक्षा सचिव डा बीवीआरसी पुरुषोत्तम की मौजूदगी में शासन स्तर पर हुई बैठक में यह अहम सुझाव स्वयंसेवी संस्था अमेरिकन इंडियन फाउंडेशन के प्रतिनिधि की ओर से रखा गया। इस सुझाव को सुना तो गया, गौर नहीं किया जा सका।

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रूसा पर संशय से चिंता

केंद्रपोषित योजना राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान को आगे जारी रखने को लेकर संशय बना हुआ है। प्रदेश में उच्च शिक्षा के नीति नियंता इससे चिंतित हैं। यह अस्वाभाविक नहीं है। उच्च शिक्षा में इस परियोजना में डबल इंजन का दम देखा जा सकता है। राज्य के 33 सरकारी डिग्री कालेजों को भवन मिलना संभव हुआ है। पर्वतीय राज्य में राज्य सरकारों ने घोषणाओं पर अमल करते हुए नए सरकारी डिग्री कालेज खोले, लेकिन उनमें संसाधन कैसे जुटेंगे, इस पर मंथन नहीं किया गया। रूसा परियोजना ने राज्य की इस बड़ी जरूरत को पूरा किया है। अगले छह माह के भीतर कई भवनहीन डिग्री कालेजों के पास अपनी छत होगी। यह अहसास ही उच्च शिक्षा में नई उम्मीदें जगा रहा है। तीन विश्वविद्यालयों को भी निर्माण कार्यों को मदद मिली। अपने सीमित संसाधनों में कालेजों के भवनों के लिए बजट की व्यवस्था राज्य के लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहा है।

ड्रीम प्रोजेक्ट में अतिथि शिक्षक

अतिथि शिक्षकों पर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर रखने का बड़ा जिम्मा है। सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में बड़ी संख्या में शिक्षकों के रिक्त पदों पर अतिथि शिक्षकों की सेवाएं ली जा रही हैं। अब प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी अटल उत्कृष्ट विद्यालयों में भी शिक्षकों के पद रिक्त चल रहे हैं। शिक्षा की गुणवत्ता के लिहाज से किए गए इस प्रयोग को लेकर सरकार सतर्क है। शिक्षकों के रिक्त पदों को अतिथि शिक्षकों से भरने को कहा गया है। शर्त यही है कि अतिथि शिक्षक अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने में दक्ष होने चाहिए। ऐसे शिक्षकों की ढूंढ की जा रही है। विद्यालयों के प्रधानाचार्यों से लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इस काम में लगाया गया है। यह बीड़ा शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने उठाया है। यह योजना उनका भी ड्रीम प्रोजेक्ट है। जाहिर है, आने वाले विधानसभा चुनाव में इसे उपलब्धि के तौर पर भी पेश किया जाएगा।

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