सरकार नगर निगम को नहीं देगी दाखिल खारिज का अधिकार, सरकार ने दाखिल की पुनर्विचार याचिका

जिस तरह तहसीलें जमीनों के दाखिल खारिज (म्यूटेशन या नामांतरण) करती हैं उसी तरह नगर निकाय भी अपने सीमा क्षेत्रों में कर निर्धारण रजिस्टर के रूप में म्यूटेशन करती हैं। अधिकतर लोग चाहे वह नगर निगम क्षेत्र के क्यों न हों तहसील में ही म्यूटेशन करवाते हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 06 Aug 2021 11:05 AM (IST) Updated:Fri, 06 Aug 2021 11:05 AM (IST)
सरकार नगर निगम को नहीं देगी दाखिल खारिज का अधिकार, सरकार ने दाखिल की पुनर्विचार याचिका
सरकार नगर निगम को नहीं देगी दाखिल खारिज का अधिकार।

जागरण संवाददाता, देहरादून। जिस तरह तहसीलें जमीनों के दाखिल खारिज (म्यूटेशन या नामांतरण) करती हैं, उसी तरह नगर निकाय भी अपने सीमा क्षेत्रों में कर निर्धारण रजिस्टर के रूप में म्यूटेशन करती हैं। अधिकतर लोग चाहे वह नगर निगम क्षेत्र के क्यों न हों, तहसील में ही म्यूटेशन करवाते हैं। कुछ व्यक्ति तहसील के साथ-साथ नगर निगम में भी म्यूटेशन करवाते हैं।

हालांकि, इसे भवन या संपत्ति कर के रूप में ही अधिक तव्वजो दी जाती है। अब तक सबकुछ व्यक्ति विशेष की अपनी प्राथमिकता पर चल रहा था, मगर हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद पूरी व्यवस्था ही बदल गई है। कोर्ट के आदेश के मुताबिक, लैंड रेवेन्यू (एलआर) एक्ट में जो कार्य राजस्व विभाग करता है, वह नगर निकाय की सीमा में म्यूनिसिपल कार्पोरेशन एक्ट-1975 के तहत किए जाएंगे। संजय गुप्ता बनाम आयुक्त गढ़वाल मंडल के मामले में कोर्ट के आदेश के अनुरूप तहसील सदर में दाखिल खारिज पर रोक लगा दी गई है। साथ ही एलआर एक्ट के तहत पैमाइश, खसरा-खतौनी, विभिन्न भूमि वाद संबंधी मामलों में सुनवाई भी रोक दी गई है।

तहसील सदर देहरादून में ही नगर निगम क्षेत्र के 2500 से अधिक दाखिल खारिज के आवेदन लंबित पड़े हैं और तहसील अधिकारी इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे। विभिन्न राजस्व न्यायालयों में भी एलआर एक्ट के तहत दाखिल राजस्व वादों में भी सुनवाई नहीं की जा रही। अब सरकार को यह करना चाहिए था कि दाखिल खारिज का पूरा अधिकार राजस्व रिकार्ड के साथ नगर निकायों को सौंप दिया जाए। वहीं, लंबित वादों को खारिज कर संबंधित पक्षकारों को सिविल न्यायालय जाने के लिए स्वतंत्र कर दिया जाए। हालांकि, सरकार की मंशा ऐसी नजर नहीं आ रही। क्योंकि सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी है। याचिका पर निर्णय कब आता है, एकल पीठ के आदेश पर स्टे मिल पाता है या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा। मगर, इतना है कि जो लोग दाखिल खारिज के लिए भटक रहे हैं, या जिनके मामले लंबित चल रहे हैं, उन्हें सरकार ने उन्हीं के हाल पर छोड़ दिया है। यह भी स्पष्ट हो गया है कि सरकार दाखिल खारिज का अधिकार नगर निकायों को देने को तैयार नहीं है।

नगर निगम का दावा, राजस्व कार्यों में हैं सक्षम

देहरादून नगर निगम की बात करें तो यहां कर निर्धारण रजिस्टर के रूप में म्यूटेशन के कार्य किए जाते हैं। यहां जमीन से लेकर, संपत्ति तक के म्यूटेशन होते हैं। नगर निगम के कर अधीक्षक धर्मेश पैन्यूली के मुताबिक नगर निगम के पास वर्ष 1937 से जमीन के रिकार्ड हैं। हालांकि, इसमें नए जुड़े क्षेत्र शामिल नहीं हैं। इस तरह नगर निगम तहसील की भांति राजस्व कार्य करने में सक्षम हैं। यहां जमीनों वादों पर कोर्ट चलती है और असंतुष्ट होने पर इसके बाद सिविल न्यायालय की राह खुल जाती है। दूसरी तरफ राजस्व न्यायालयों में ऊपरी स्तर पर भी तमाम राजस्व न्यायालयों में मामला जाता है।

नए क्षेत्रों के रिकार्ड देने से बनेगी बात

पुनर्विचार याचिका में भी सरकार को राहत नहीं मिलती है तो दाखिल खारिज आदि का अधिकार नगर निकायों को सौंपने की राह साफ हो जाएगी। फिर भी इस राह में जमीन के रिकार्ड का पेच रहेगा। जो इलाके बाद में नगर निगम या संबंधित निकाय का हिस्सा बने हैं, उनके रिकार्ड तहसीलों के पास ही हैं। फिलहाल रिकार्ड सौंपने में कोई दिलचस्पी सरकारी मशीनरी दिखाने को तैयार नहीं।

मामला सुलझने तक कर सकते हैं निगम का रुख

जब तक इस मसले का हल नहीं निकलता, तब तक नगर निगम में म्यूटेशन करवाया जा सकता है। वैसे भी कर संग्रह के लिहाज से नगर निगम क्षेत्रों की संपत्ति का म्यूटेशन करवाना अनिवार्य है। इस तरह जमीन खरीदार को नामांतरण के रूप में एक कानूनी संरक्षण मिल सकेगा और नगर निगम के नियमों की पूर्ति भी हो सकेगी। अच्छी बात यह है कि रिकार्ड न होने के बाद भी नगर निगम नए जुड़े क्षेत्रों की संपत्ति का म्यूटेशन भी कर रहा है। इस तरह पुरानी खतौनी व नई रजिस्ट्री के आधार पर निगम अधिकारी अपना रिकार्ड भी अपडेट कर रहे हैं।

डा. आर राजेश कुमार (जिलाधिकारी, देहरादून) का कहना है कि हाई कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है। उम्मीद है कि इस दिशा में जल्द कोई आदेश जारी हो जाएगा। तब तक अस्थायी रूप में एलआर एक्ट के तहत दाखिल खारिज व अन्य कार्रवाई स्थगित की गई हैं।

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