देहरादून की सड़कों के लिए सरकार के पास बजट नहीं Dehradun News
इस दफा मानसून सीजन ने दून की सड़कों को जमकर नुकसान पहुंचाया। मानसून की विदाई की औपचारिक घोषणा भी कर दी गई। ऐसे में सड़कों की मरम्मत शुरू कर दिए जाने चाहिए था।
देहरादून, सुमन सेमवाल। इस दफा मानसून सीजन ने दून की सड़कों को जमकर नुकसान पहुंचाया। पूरी बरसात लोग गड्ढों भरी सड़कों पर हिचकोले खाकर गुजरते रहे। बारिश का दौर दो हफ्ते पहले ही मंद पडऩे लगा था और शनिवार को मानसून की विदाई की औपचारिक घोषणा भी कर दी गई। ऐसे में सड़कों की मरम्मत के जो काम दो हफ्ते पहले ही शुरू कर दिए जाने चाहिए थे, उनके आसार इस माह भी बनते नहीं दिख रहे। वजह है शहर की सड़कों से जुड़े लोनिवि/राजमार्ग के पांच खंडों के पास बजट कमी। राजधानी जैसे शहर में भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधा के लिए बजट जारी करने में हो रही यह लेटलतीफी व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करने लगी है।
देहरादून शहर की सड़कें लोनिवि के प्रांतीय खंड, निर्माण खंड, अस्थायी खंड ऋषिकेश, राष्ट्रीय राजमार्ग खंड डोईवाला व राष्ट्रीय राजमार्ग खंड देहरादून के तहत आती हैं। शहर का कोई ऐसा कोना नहीं है, जहां की सड़कों को बारिश से नुकसान न पहुंचा हो। जब तक बरसात का सीजन था, तब तक सड़कों के गड्ढे पानी से ढके रहते थे। अधिकारी भी जनता की शिकायतों पर आसमान की तरफ इशारा कर अपनी असमर्थता जता देते थे। अब बारिश भी नहीं है और सड़कों के खुले गड्ढे अफसरों का मुंह चिढ़ाने लगे हैं। अब जनता के सवालों का ठोस जवाब भी अधिकारियों के पास नहीं है। खंड स्तर के अधिकारी जरूर ऊपर से बजट न मिलने की बात कहकर चुप्पी साध लेते हैं। मगर, बड़ा सवाल यह भी कि बजट कब आएगा और कब तक सड़कों की मरम्मत हो पाएगी, इसका वाजिब जवाब फिलहाल किसी के भी पास नहीं है।
हिमालयन कॉन्क्लेव तक का बजट नहीं मिला
जुलाई अंत में मसूरी में हिमालयी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों का सम्मलेन 'हिमालयन कॉन्क्लेवÓ आयोजित किया गया था। इस आयोजन के लिए प्रांतीय खंड ने करीब 93 लाख व अस्थायी खंड ऋषिकेश ने करीब 96 लाख रुपये के काम किए थे। यह राशि भी अब तक दोनों खंड को नहीं मिल पाई है।
हर खंड में 1.50 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान
दून की सड़कों की दशा सुधारने के लिए हर खंड को करीब 1.50 करोड़ रुपये चाहिए। यानी कि पांच खंडों के हिसाब से कम से कम छह करोड़ रुपये की जरूरत है। दून जैसे शहर की बेहतर सड़कों के लिए यह राशि कुछ भी नहीं है। बावजूद इसके इस राशि को जारी करने में भी शासन के हाथ तंग नजर आ रहे हैं।
चार माह बाद मिले 75 लाख, पलभर में हुए स्वाहा
सड़कों की मरम्मत एक नियमित प्रक्रिया है। लिहाजा, भरी-भरकम न सही कुछ न कुछ बजट इनकी देखरेख में निरंतर रूप से चाहिए होता है। इसके बाद भी 15 मार्च के बाद लोनिवि के खंडों को अगस्त में जाकर कुछ राशि मिल पाई और वो भी महज 70 से 75 लाख रुपये। यह राशि भी पिछले कुछ माह से चली आ रही तंगी के चलते पलभर में ही खर्च हो गई।
क्यों हर बार गड्ढों में समा जाते हैं 1.50 करोड़
बेशक इस समय सड़कों की मरम्मत को बजट जारी करने में शासन ने हाथ टाइट कर रखे हैं। मगर, बड़ा सवाल यह भी है कि जब भी सड़कों की मरम्मत की जाती है तो वह सालभर भी ढंग से क्यों नहीं चल पातीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि दून की सड़कों पर मरम्मत के नाम पर हर साल करीब डेढ़ करोड़ रुपये खपा दिए जाते हैं। हालांकि, ये काम इतने चलताऊ प्रकृति के होते हैं कि कुछ ही महीनों में सड़कों पर मरम्मत के नाम पर लगाए गए टल्ले उखड़ जाते हैं और बरसात आते ही हालात जस के तस हो जाते हैं। इस तरह से हर मानसून सीजन के बाद गड्ढे भरने की प्रक्रिया बजट खपाने का आसान जरिया बनती जा रही है। इस दफा भी लोनिवि के प्रांतीय खंड, निर्माण खंड, ऋषिकेश के अस्थायी खंड व राष्ट्रीय राजमार्ग खंड डोईवाला ने दून क्षेत्र की सड़कों के लिए मानसून के मध्य में करीब 50-50 लाख रुपये के बजट का अनुमान पैचवर्क के लिए लगाया गया है, जो कि अब बढ़कर प्रति खंड 1.5 करोड़ रुपये के आंकड़े पर पहुंच गया है।
इन्वेस्टर्स मीट में खर्च किए 10 करोड़ भी स्वाहा
सड़कों की मरम्मत का काम कितने अस्थायी ढंग से किया जाता है, इसका जीता जागता उदाहरण बनी है सितंबर माह में हुई इन्वेस्टर्स मीट। देश-दुनिया के निवेशकों को सुंदर दून के दर्शन कराने के लिए सड़कों को चकाचक किया गया था। तब दून क्षेत्र की सड़कों की मरम्मत व रंग-रोगन के नाम पर लोनिवि के प्रांतीय खंड, निर्माण खंड, अस्थायी खंड ऋषिकेश व राष्ट्रीय राजमार्ग खंड डोईवाला ने 10 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च की थी। तब लोनिवि के अधिकारियों ने दावे किए थे कि यह काम अगले दो-तीन सालों तक चलेगा। यह बात और है कि सड़कों के सुधारीकरण का यह दावा एक बरसात को भी नहीं झेल पाया। वर्तमान में सड़कों को देखकर लगता है कि जैसे इनमें कई सालों से मरम्मत की ही न गई हो।
अतिक्रमण हटाया, सड़क चौड़ी की और बनाना भूल गए
दून की सड़कों को चौड़ा कर ट्रैफिक की राह खोलने के लिए जो ऐतिहासिक अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जा रहा है, उस पर धीरे-धीरे पलीता लगता जा रहा है। क्योंकि अतिक्रमण को हटाकर सड़कों के जिन हिस्सों को चौड़ा किया गया, वहां अब तक कोई भी काम नहीं किया गया है। यहां तक कि अब भी जगह-जगह पड़ा मलबा पड़ा है और वहां वाहन नहीं चल सकते। बारिश में ऐसी सड़कों की स्थिति और भी खतरनाक हो गई है। इससे जाम की समस्या तो बढ़ ही रही है, दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ गया है। इसके अलावा जो खंभे पहले किनारे पर दिखते थे, वहां सड़कों को अतिरिक्त जगह मिल जाने के चलते बीच सड़क पर नजर आते हैं। इस स्थिति में सड़क पर जाम की समस्या और बढ़ रही है और यहां दोबारा से भी अतिक्रमण होने लगे हैं।
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यह स्थिति कहीं न कहीं सिस्टम की कमजोर इच्छाशक्ति को भी दर्शाती है। क्योंकि जून 2018 में यह अभियान भी हाईकोर्ट के आदेश के बाद चलाया गया था। यानि कि राजनीतिक दबाव के चलते अपनी जिम्मेदारी भूल बैठे अधिकारियों को कोर्ट की ढाल भी प्राप्त थी। खैर, पूरे शहर में न सही, बड़े क्षेत्र में अतिक्रमण जरूर हटाए गए और सड़कों के हिस्सों को वापस (री-क्लेम) भी किया गया। हालांकि, इसके बाद फिर मशीनरी अपने ढर्रे पर आ गई। यह जानने के भी प्रयास नहीं किए गए कि सड़कों का जो भाग चौड़ा किया गया है, वह वाहनों के चलने लायक बन सका भी है या नहीं। अधिकारियों की सुस्ती का नतीजा है कि अब सड़कों के इन हिस्सों पर दोबारा से कब्जे होने लगे हैं। सीधा सा मतलब है कि लोगों की राह सुगम करने के लिए जो आदेश हाईकोर्ट ने दिए थे, उसकी मंशा अभी तक पूरी नहीं हो सकी।
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20 करोड़ का प्रस्ताव तैयार, हिस्से में इंतजार
दून की जिन सड़कों को अतिक्रमण हटाने के बाद खोला गया, उनके खुले हिस्से को अतिरिक्त चौड़ाई के हिसाब से बेहतर बनाने के लिए यूं तो लोनिवि के चार खंडों ने 20 करोड़ रुपये से अधिक के प्रस्ताव तैयार किए हैं, मगर इन पर काम कब शुरू हो पाएगा, यह कहना मुश्किल है।
रायपुर रोड, नेशविला रोड, कालीदास रोड आदि की टेंडर प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है, जबकि आराघर से रिस्पना पुल तक के हिस्से पर आपत्ति लगाई गई है। इसके निस्तारण को लोनिवि अधिकारी जवाब तैयार कर चुके हैं। इससे इतर शेष सड़कों पर तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। लोनिवि अधिकारी यह दावा जरूर कर रहे हैं कि बरसात का सीजन थम जाने के बाद सभी सड़कों पर काम शुरू करा दिए जाएंगे। फिर भी अधिकारियों की मौजूदा कार्यप्रणाली को देखते हुए फिलहाल इसकी उम्मीद कम ही नजर आती है।
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