इन गांवों के बीच पश्चाताप को होता है गागली युद्ध, जानिए इसके पीछे की कहानी

देहरादून जिले के उत्पाल्टा और कुरोली गांव के बीच दशहरे पर गागली युद्ध लड़ा जाता है। ये युद्ध पश्चाताप के लिए लड़ा जाता है जिसमें किसी की जीत या हार नहीं होती।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Tue, 16 Oct 2018 04:28 PM (IST) Updated:Tue, 16 Oct 2018 05:21 PM (IST)
इन गांवों के बीच पश्चाताप को होता है गागली युद्ध, जानिए इसके पीछे की कहानी
इन गांवों के बीच पश्चाताप को होता है गागली युद्ध, जानिए इसके पीछे की कहानी

साहिया, देहरादून[जेएनएन]: देहरादून जिले के कालसी ब्लॉक में दो गांव ऐसे भी हैं, जिनके बीच पश्चाताप के लिए युद्ध लड़ा जाता है। दोनों गांवों का नाम है उत्पाल्टा और कुरोली। इस युद्ध की अनोखी बात ये है कि इसे अरबी के पत्तों और डंठलों से लड़ा जाता है। इसका आयोजन दशहरे पर किया जाता है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। इसबार ये युद्ध 19 अक्टूबर को होगा। 

रावण दहन की बजाय होता हैै युद्ध  

कुमाऊं के चंपावत में जिसतरह परंपरा से जुड़ा पत्थर युद्ध (बग्वाल) प्रसिद्ध है, उसी तरह जनजातीय क्षेत्र जौनसार में गागली युद्ध भी परंपरा का हिस्सा बन चुका है। गागली युद्ध पाइंते यानि दशहरे पर आयोजित किया जाता है। इस दिन उत्पाल्टा और कुरोली गांव के लोग रावण का दहन नहीं करते बल्कि गागली युद्ध करते हैं। इस युद्ध के पीछे दो बहनों की काफी रोचक है जुड़ी है। 

 

गागली युद्ध की कहानी 

किवदंती है कि उत्पाल्टा गांव की दो बहनें रानी और मुन्नी गांव से कुछ दूर स्थित क्याणी नामक स्थान पर कुएं में पानी भरने गई थीं। रानी अचानक कुएं में गिर गई, मुन्नी ने घर पहुंचकर रानी के गिरने की बात सबको बतार्इ। जिसपर ग्रामीणों ने उसी पर रानी को धक्का देने का आरोप लगा दिया। इससे खिन्न होकर मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी।  

अपने इस कृत्य पर ग्रामीणों को बहुत पछतावा हुआ। इसी घटना को याद कर पाइंता से दो दिन पहले मुन्नी और रानी की मूर्तियों की पूजा होती है। पाइंता के दिन मूर्तियां कुएं में विसर्जित की जाती हैं। कलंक से बचने के लिए उत्पाल्टा व कुरोली के ग्रामीण हर वर्ष पाइंता पर्व पर गागली युद्ध का आयोजन कर पश्चाताप करते हैं। 

अरबी के पत्तों और डंठलों से लड़ते हैं जंग

गागली युद्ध में कुरोली और उत्पाल्टा के ग्रामीण गागली यानि अरबी के पत्तों और डंठलों से जंग लड़ते हैं। यह जंग ऐसी है, जिसमें किसी की हार या जीत नहीं होती। ये युद्ध सिर्फ पश्चाताप के लिए लड़ा जाता है।

ढोल-नगाड़ों की थाप पर होता है नृत्य   

कुरोली-उत्पाल्टा के ग्रामीण पाइंता पर्व पर अपने-अपने गांव के सार्वजनिक स्थल पर इकट्ठे होकर ढोल-नगाड़ों और रणसिंघे की थाप पर हाथ में गागली के डंठल व पत्तों को लहराते हुए नाचते-गाते हैं।

देवधार में होता है गागली युद्ध  

19 अक्टूबर को दशहरे के दिन ग्रामीण नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर देवधार नामक स्थल पर पहुंचेंगे। जहां पर दोनों गांवों के ग्रामीणों के बीच गागली युद्ध की शुरुआत होगी। गागली के पत्तों व डंठल से युद्ध इतना भयंकर होता है कि देखने वाला भी एक बार को घबरा जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि युद्ध में कोई हार जीत नहीं होती।

युद्ध समाप्त होने पर दोनों गांवों के ग्रामीण गले मिलकर एक दूसरे को पर्व की बधाई देते हैं। उसके बाद उत्पाल्टा गांव के सार्वजनिक स्थल पर ढोल नगाड़ों की थाप पर सामूहिक रूप से नृत्य का आयोजन होता है। जिसमें सभी ग्रामीण पारंपरिक तांदी, रासो, हारुल नृत्यों का आनंद लेते हैं। 

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