Uttarakhand Crime: 24 फर्जी फर्म बनाकर साढ़े 12 करोड़ की हेराफेरी, दो आरोपितों को किया गिरफ्तार

फर्जी फर्म और फर्जी बिलों के आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) का लाभ लेने के मामले थम नहीं रहे हैं। ऐसे ही एक मामले में डायरेक्टोरेट जनरल आफ जीएसटी इंटेलीजेंस (डीजीजीआइ) ने 12.60 करोड़ रुपये की हेराफेरी का पर्दाफाश कर दो आरोपितों को गिरफ्तार किया।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Sun, 03 Oct 2021 08:15 PM (IST) Updated:Sun, 03 Oct 2021 08:15 PM (IST)
Uttarakhand Crime: 24 फर्जी फर्म बनाकर साढ़े 12 करोड़ की हेराफेरी, दो आरोपितों को किया गिरफ्तार
12.60 करोड़ रुपये की हेराफेरी का पर्दाफाश कर दो आरोपितों को गिरफ्तार किया।

जागरण संवाददाता, देहरादून: Uttarakhand Crime फर्जी फर्म और फर्जी बिलों के आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) का लाभ लेने के मामले थम नहीं रहे हैं। ऐसे ही एक मामले में डायरेक्टोरेट जनरल आफ जीएसटी इंटेलीजेंस (डीजीजीआइ) ने 12.60 करोड़ रुपये की हेराफेरी का पर्दाफाश कर दो आरोपितों को गिरफ्तार किया। आरोपितों को सीजेएम कोर्ट में पेश करने के बाद 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।

जीएसटी इंटेलीजेंस की जांच में पता चला था कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व उत्तर प्रदेश में 24 ऐसी फर्म पंजीकृत हैं, जो सिर्फ आइटीसी का लाभ लेने के लिए फर्जी बिल तैयार करती हैं। ये फर्म आयरन इंगट व आयरन स्क्रैप की फर्जी खरीद दिखाकर इस पर आइटीसी का लाभ लेने के काम में लिप्त पाई गईं। फर्जीवाड़ा को अंजाम देने के लिए योजना के मास्टर माइंड बिजनौर निवासी आशीष राजपूत व मुजफ्फरनगर निवासी मयंक गौतम का देहरादून आना-जाना लगा रहता है। दोनों ने डांडा नूरूवाला में किराये पर घर भी ले रखा था। तभी से जीएसटी इंटेलीजेंस की टीम आरोपितों की धरपकड़ में जुट गई थी।

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जब जीएसटी इंटेलीजेंस को पुख्ता रूप से जानकारी मिल गई कि आशीष व मयंक घर पर ही हैं तो सहायक निदेशक पंकज मिश्रा के नेतृत्व में छापा मारकर दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। तलाशी में टीम को उनके आवास से आइटीसी फर्जीवाड़े से संबंधित तमाम दस्तावेज भी मिल गए। प्रारंभिक रूप से 12.60 करोड़ रुपये के फर्जी बिलों के आधार पर आइटीसी क्लेम प्राप्त करने की पुष्टि की गई है। जांच जारी है और माना जा रहा है कि यह फर्जीवाड़ा 30 करोड़ रुपये से अधिक का हो सकता है।

चार फीसद कमीशन था तय

पकड़े गए आरोपितों ने बताया कि वह बिना वास्तविक खरीद के फर्जी बिलों के आधार पर खरीद दिखाते थे और फिर आइटीसी का क्लेम प्राप्त करते थे। जो भी क्लेम विभाग से प्राप्त किया जाता, उसमें उनका चार फीसद हिस्सा होता। यह काम वह वर्ष 2018-19 से कर रहे थे। इसी तरह माल भेजने वाले व्यक्ति व फर्जी खरीद दिखाने वाली फर्म को भी चार-चार फीसद कमीशन दिया जाता था। इस काम के लिए टीम बनाई गई थी। एक व्यक्ति सिर्फ फर्जी खरीद के माल को ट्रांसपोर्ट करने के लिए ई-वे बिल बनाता था। वहीं, एक व्यक्ति के जिम्मे बैंक के ट्रांजेक्शन थे। वह तय करता था कि कौन सी राशि किस तरह एक से दूसरे बैंक में भेजी जानी है।

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