उत्तराखंडी लोकजीवन के हर रंग में घुली है फूलों की महक, देखिए इनका अद्भुत संसार

देवभूमि उत्तराखंड में तो फूलों की आत्मा ही बसती है। मैदान से लेकर पहाड़ की कंदराओं तक खिले रहने वाले रंग-विरंगे फूल हर किसी को आकर्षित करते हैं। यही कारण भी है कि यहां के आंचलिक लोकजीवन के हर रंग में भी फूलों को पहली पांत में रखा गया है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Sat, 09 Oct 2021 06:02 PM (IST) Updated:Sat, 09 Oct 2021 09:14 PM (IST)
उत्तराखंडी लोकजीवन के हर रंग में घुली है फूलों की महक, देखिए इनका अद्भुत संसार
उत्तराखंडी लोकजीवन के हर रंग में घुली है फूलों की महक, देखिए इनका अद्भुत संसार।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। कुदरत की सबसे अनुपम देन हैं फूल और देवभूमि उत्तराखंड में तो फूलों की आत्मा ही बसती है। मैदान से लेकर पहाड़ की कंदराओं तक खिले रहने वाले रंग-विरंगे फूल हर किसी को आकर्षित करते हैं। यही कारण भी है कि यहां के आंचलिक लोकजीवन के हर रंग में भी फूलों को पहली पांत में रखा गया है। परिणामस्वरूप लोकगीतों में फूलों को भरपूर तवज्जो मिली है।

विषम भूगोल वाले उत्तराखंड की परिस्थितियां भले ही विषम हों, लेकिन प्रकृति ने यहां मुक्त हाथों से नेमत बख्शी हैं। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों ऋतुराज वसंत के आगमन का संदेश देती फ्योंली के पीले फूल और सुर्ख बुरांस मन को आनंदित कर देते हैं। ऐसे ही फूलों की लंबी श्रृंखला है, जो किसी न किसी रूप में लोकजीवन के हर भाव में समाए हुए हैं। यही कारण है कि फ्योली, बुरांस, ब्रह्मकमल, मालू, ग्वीराल, पंय्या जैसे अनगिनत फूलों की खूबसूरती के साथ ही इनके विषम परिस्थितियों में भी खिलखिलाने के संदेश को रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में भरपूर स्थान दिया है।

(ब्रह्मकमल...)

सदियों से लोकगीतों का हिस्सा रहे फूलों ने यहां के पारंपरिक गीत-नृत्यों में भी अमिट छाप छोड़ी है। लोकजीवन से गहरे तक जुड़े फूलों का जन्म से लेकर विदाई तक का महत्व है। ऐसे में इन्हें लोकगीतों, लोकनृत्यों में भला महत्व कैसे नहीं मिलता। थड़िया, चौंफला, बाजूबंद, छपेली, छौलिया, तांदी, रंवाई समेत अन्य पांरपरिक गीत-नृत्यों में फूलों को महत्वपूर्ण जगह मिली है।

(ग्वीराल के फूल...)

इन्हीं गीत नृत्यों के बीच फूलों की सुंदरता को लेकर बोल फूटते हैं-'मालू-ग्वीराला का बीच खिली सकिनी अहा..' (मालू और ग्वीराल के मध्य खिले साकिनी के फूल कितने सुंदर लग रहे हैं)। सुर्ख बुरांस के फूलों को मिली तवज्जो का अंदाजा इन गीत से लगाया जा सकता है-'चल रूपा बुरांसी का फूल बणि जौला', 'मेरा डांडी कांठियूं का मुलुक जैलू, वसंत ऋतु मा जैई।' ऐसे एक नहीं अनेक गीत हैं, जिनमें बुरांस के फूलों को जगह मिली है।

(फ्योंली और बुरांश का फूल...)

प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि मन की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सर्वसुलभ प्रतीक लिए जाते हैं। ऐसे में फूल सबसे आम प्रतीक हैं और ये राज्य में वर्षभर खिलते हैं। लोकजीवन से जुड़े होने के कारण ही फूलों को गीत व साहित्य में यथोचित स्थान मिला है।

(बुरांश का फूल...)

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